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दीक्षा भूमि नागपुर: अशोक विजयादशमी धम्म श्रद्धा का जनसैलाब और किताबों का अनूठा मेला

68 साल पहले नागवंशियों की यह पावन भूमि बोधिसत्व बाबासाहेब के आह्वान पर लाखों नर नारियों से भर गई थी. अपनी मुक्ति के मार्ग धम्म पर चलने की दिशा में लाखों बच्चे, महिलाएँ पुरुष सिर पर आटे चावल की पोटली और ओढ़नी के पल्लू में कुछ सिक्के बाँध कर नागपुर आए थे. उन सभी में अपार उल्लास, उमंग और प्रसन्नता के भाव भरे हुए थे.

वह सम्राट अशोक की विजया दशमी का दिन था. भगवान बुद्ध के मानव कल्याण और सुख शांति के मार्ग धम्म की शरण जाने का अपार गौरव था. आख़िर अपने मुक्तिदाता बाबासाहेब का आह्वान था.

धम्म दीक्षा ग्रहण करने के बाद लाखों नर नारी खुले आसमान में जगह जगह खाना बनाते, नाचते गाते अपनी मुक्ति के गीत गाते हुए रहे थे.

समय गुज़र गया लेकिन बाबा साहब का धम्म कारवां तेज़ी से आगे बढ़ रहा है चार दिन लाखों लोग इस पावन भूमि को नमन करने और बोधिसत्व बाबा साहब के प्रति अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करने आते हैं कि उन्होंने एक ऐसा मार्ग दिखाया जिस पर आज पूरी दुनिया चल पड़ी है.

हाँ. 68 साल बाद आज इस मेले में लोग भले ही आटा दाल चावल की पोटली लेकर नहीं आते हैं क्योंकि भोजन दान की अच्छी सुविधा होती हैं लेकिन रात के खुले आकाश में अब भी क्या अनपढ़ और क्या पढ़े लिखे पैसे वाले, सभी अपनी अपनी चादरें बिछाकर परिवार सहित बैठ कर चर्चा करते हैं अपने पुरखों के उस साहस को सलाम करते हैं और यहीं रात गुज़ार कर अपने को धन्य समझते हैं.

वाक़ई यह दुनिया का अनूठा मेला है जहां लोग अपने सुख सुविधाओं के सामान की बजाए धम्म सागर में डूबने के लिए किताबें ख़रीदने आते हैं. सैकड़ों बुक स्टॉल बुद्ध बाबासाहेब और अन्य महापुरुषों के जीवन दर्शन के साहित्य से भरे रहते है लोग बड़ी संख्या में किताबें ख़रीदते हैं फिर गांवों में दान करते हैं.

विचित्र बात यह भी है कि बुद्ध और बाबासाहेब के लाखों अनुयायी चार दिन के मेले में अपने ही अनुशासन में रहते हैं. और समारोह शांतिपूर्ण सम्पन्न होता है. अंधभक्ति से परे ये लोग वैचारिक आस्था व धम्म श्रद्धा से भरे होते हैं. वाक़ई यह अनूठा संगम है. लेकिन राजनीतिक पार्टियों के हमारे लोग इस विशाल क्षेत्र के अलावा नागपुर शहर में स्वयं के बड़े बड़े कटआउट और होर्डिंग लगाकर धम्म माहौल को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं.

मैं भी इस पावन समारोह में शामिल होकर अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ. मेरे माता पिता की स्मृति में “धम्मपद” ग्रंथ भेंट कर धन्य हुआ.

भगवान बुद्ध के बताए धम्म को सम्राट अशोक ने जगत में फैलाया. बाबासाहब ने यह अनमोल मोती धम्म रत्न हमें दिया. अब इम्तिहान की इस नाज़ुक घड़ी में हमें चाहिए कि दूसरे जाति धर्म की सिर्फ़ आलोचना,निंदा या कोसने की बजाए स्वयं धम्म को आचरण में उतारें और लोक कल्याण के लिए धम्म प्रचार की ज़िम्मेदारी निभाए. भविष्य प्रगतिशील, वैज्ञानिक और मानवतावादी विचारों का है. भविष्य बुद्ध का है.

सबका मंगल ..सभी प्राणी सुखी हो

(प्रस्तुती: एम एल परिहार, जयपुर)

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