बुद्धत्व प्राप्ती के बाद “बुद्ध” बनकर पहली बार राजकुमार गौतम अपने पिता के आग्रह पर अपने पैतृक गाम पधारे हैं. गाम में पर्व का माहौल हैं, लोगों ने अपने घरों की साफ-सफाई करके उन्हे खूब सजाया हुआ है.
भगवान बुद्ध का स्वागत करने के लिए दीप जलाएं हुए हैं और घरों की मूंडेर, दरवाजों, खिड़कियों से लोग उनके लाड़ले राजकुमार (अब बुद्ध) की एक झलक पाने के लिए टकटकी लगाएं इंतजार कर रहे हैं.
इस बीच राहुल भी अपने कमरा के सामने छज्जा पर खड़ा होकर माता से उत्सुकता पूर्वक पूछ रहा हैं कि माता ये जो लोग एक जैसी पोशाकों में हमारी तरफ बढ़े चले आ रहे हैं इनमें से मेरा पिता कौन है?
तब राहुल-माता जिन शब्दों में अपने बेटे को उसके पिता के बारे में बताती हैं उन्हे नरसीह गाथा कहते हैं.
नरसीह गाथा
चक्क-वरङ्कित-रत्त-सुपादो, लक्खण-मण्डित-आयतपण्हि।
चामर-छत-विभूसित-पादो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥1॥
सक्य-कुमार-वरो सुखुमालो, लक्खण-चित्तिक-पुण्ण-सरीरो।
लोकहिताय गतो नरवीरो, एस हि तुय्ह नरसीहो॥2॥
पुण्ण-ससङ्क-निभो मुखवण्णो, देवनरान पियो नरनागो।
मत्त-गजिन्द-विलासित-गामी, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥3॥
खत्तिय-सम्भव-अग्गकुलीनो, देव-मनुस्स-नमस्सित-पादो।
सील-समाधि-पतिट्ठित-चित्तो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥4॥
आयत-युत्त-सुसण्ठित-नासो, गोपखुमो अभिनील-सुनेत्तो।
इन्दधनु-अभिनील-भमूको, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥5॥
वट्ट-सुवट्ट-सुसण्ठित-गीवो, सीहहनु मिगराज-सरीरो।
कञ्चन-सुच्छवि उत्तम-वण्णो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥6॥
सिनिद्ध-सुगम्भीर-मञ्जु-सुघोसो, हिङ्गुलबद्ध-सुरत्त-सुजिव्हो।
वीसति-वीसति सेत सुदन्तो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥7॥
अञ्जन-वण्ण-सुनील-सुकेसो, कञ्चन-पट्ट-विसुद्ध-नलाटो।
ओसधि-पण्डर-सुद्ध-सुवण्णो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥8॥
गच्छति नीलपथे विय चन्दो, तारगणा-परिवेठित-रूपो।
सावक-मज्झगतो समणिन्दो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥9॥
नरसिंह-गाथा हिंदी में
जिनके रक्त-वर्ण चरण चक्र से अलंकृत हैं, जिनकी लम्बी एड़ी शुभ-लक्षण वाली है, जिनके चरण चंवर तथा छत्र से अंकित हो सुशोभित हो रहे हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं. ॥1॥
ये जो कुमार हैं, वे श्रेष्ठ शाक्य सुकुमार हैं, ये जो सुंदर-चिन्हों से युक्त सुंदर सशीर से संपन्न हैं, जिन्होंने लोकहित के लिए गृहत्यात किया है, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं. ॥2॥
जिनका मुख पूर्ण चांद के समान प्रकाशित है, ये जो नरों में हाथी के समान हैं तथा सभी देवताओं और नरों के प्रिय हैं, ये जो मद-मस्त गजराज की तरह चले जा रहे हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं. ॥3॥
ये जो अग्र खत्तिय कुल में उत्पन्न हैं, ये जिनके चरणों की देव-मनुष्य सभी वंदना करते हैं, ये जिनका चित्त शील-समाधि में सुप्रतिष्ठित है; ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं. ॥4॥
ये जिनकी नाक चौड़ी तथा सुडौल है, बछड़ा की तरह जिनकी पलकें हैं, जिनकी आँखे सुनील वर्ण हैं, ये जिनकी भौहें इंद्रधनुष के समान हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं. ॥5॥
ये जिनकी गर्दन गोलाकार है, सुगठित है, जिनकी ठोड़ी मृगराज के समान है तथा जिनका शरीर मृगराज के समान है, जिनका वर्ण सुवर्ण के समान आकर्षक है, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं. ॥6॥
जिनकी वाणी स्निग्ध हैं, गंभीर हैं, सुंदर है; जिनकी जीभ सिंदूर के समान रक्तवर्ण है, जिनके मुहं में श्वेत वर्ण के बीस-बीस दांत हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं. ॥7॥
जिनके केस (बाल) सुरमे के समान सुनील वर्ण हैं, ये जिनका ललाट कञ्चन के समान दीप्त है, जिनके भौंहोंके बीच के बाल औषधि-तारे के समान शुभ्र वर्ण है, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं. ॥8॥
जो आकाश में तारों से घिरे चांद के समान बढ़े चले जा रहे हैं; जो श्रमणों में श्रेष्ठ भिक्खुओं से उसी प्रकार घिरे हुए हैं जैसे चांद तारों से, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं. ॥9॥
— भवतु सब्ब मङ्गलं —