बुद्ध पूर्णिमा अथवा बुद्ध जयंति, भगवान बुद्ध के जीवन की तीन प्रमुख घटनों का जश्न मनाने का पर्व है. इस दिन राजकुमार गौतम का जन्म, उन्हे बुद्धत्व की प्राप्ती तथा महापरिनिर्वाण हुआ था.
इस दिन को बुद्ध जन्मोत्सव, वेसाक डे, वैशाख पूर्णिमा आदि नामों से भी जानते हैं. गांवों मे इस दिन को पीपल पूर्णिमा भी कहते हैं.
यह पर्व हर्षोल्लास और खुशियों का समय है. बौद्धों को एक-दूसरे से मिलने, तिसरण लेने और बुद्ध की शिक्षाओं के बारे में और अधिक जानने का मौका देता है. इसलिए, पूरी दुनियाभर में लोग बुद्ध जयंति मनाते हैं.
इस दिन उपासक-उपासिकाएं बुद्ध विहारों में भिक्खुओं के लिए भोजन दान करते हैं और उनके लिए मोमबत्तियां तथा फूल ले जाते हैं. बदलें में भिक्खु उन्हे ध्यान करातें हैं, भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को बतातें हैं.
सभी लोग इस दिन को खूब धूमधाम और खुशी-खुशी मनातें हैं. बुद्ध जयंति के दिन लोग अपने-अपने घरों की साफ-सफाई करके उन्हे फूलों और धम्म-ध्वज से सजाते हैं. यही कार्य आसपास के बुद्ध विहारों तथा गलियों में किया जाता है. और नहाकर नए शुभ्र वस्त्र पहनते हैं.
नजदीकि बुद्ध विहार, सार्वजनिक स्थल (या फिर अपने घर का आँगन) में लोग इकट्ठा होते हैं और भगवान बुद्ध की प्रतिमा को ऊँचे साफ-सुथरे स्थान पर रखकर उसके सामने आरामदायक स्थिति में बैठ जाते हैं. प्रतिमा को फूलों से सजाया जाता है तथा मोमबत्ति जलाकर प्रकाश किया जाता हैं.
प्रकाश को ज्ञान का प्रतीक माना गया है. इसलिए, जिस तरह भगवान बुद्ध ने अपने ज्ञान के प्रकाश से पूरे जग से पाखंड, अधंविश्वास, हिंसा के अंधकार को दूर किया. हमें भी स्वयं शिक्षित होने तथा दूसरों को शिक्षित करने हैतु प्रयासरत रहना चाहिए.
यहीं क्रम प्रत्येक बौद्ध उपासक-उपासिका द्वारा दोहराया जाता हैं. जब तक उपस्थित सभी लोग यह काम नहीं कर लेते हैं. इसके बाद सामुहिक बुद्ध वंदना होती हैं और तिसरण तथा पञ्चसील ग्रहण किया जाता हैं.
बुद्ध पूर्णिमा के दिन उपासक-उपासिकाएं मिष्ठान के साथ अन्य पकवान बनाते हैं. जिनमे खीर प्रमुख होता है. यानि इस दिन सभी बौद्धों के घर “खीर” जरूर पकाई जाती हैं. लोग एक-दूसरे को मंगलकामनाएं देते हैं, उपहार भेजते हैं तथा असहाय, निर्धन, गरीबों को क्षमतानुसार आवश्यक चीजों का दान जरूर करते हैं.
— भवतु सब्ब मंगलं —