सुप्पटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, उजुप्पटिपन्नो भगवतो
सावकसंघो, ञायप्पटिपन्नो भगवतो सावकसंघो,
सामीचिप्पटिपन्नो भगवतो सावकसंघो,
यदिदं चत्तारि पुरिसयुगानी अट्ठ पुरिस पुग्गला
एस भगवतो सावकसंघो, आहुनेय्यो, पाहुनेय्यो,
दक्खिणेय्यो, अञ्जलिकरणीयो, अनुत्तरं पुञ्ञक्खेतं
लोकस्सा’ति।
संघं याव जीवितं सरणं गच्छामि॥1॥
ये च संघा अतीता च, ये च संघा अनागता।
पच्चुप्पन्ना च ये संघा, अहं वन्दामि सब्बदा॥2॥
नत्थि मे सरणं सञ्ञम, संघो मे सरणं वरं।
एतेन सच्चवज्जेन, होतु मे जयमङ्गलं॥3॥
उत्तमङ्गेन वन्दे हं, संघं च तिविधुत्तमं।
संघे यो खलितो दोसो, संघो खमतु तं ममं॥4॥
संघ वंदना हिंदी में अर्थ और अनुवाद
भगवान का श्रावक संघ उत्तम मार्ग पर सुप्रिष्ठित है. भगवान का श्रावक संघ सरल मार्गपर प्रतिष्ठित है, भगवान का श्रावक संघ न्याय मार्ग पर आरुढ है, भगवान का श्रावक संघ उचित मार्ग पर आरूढ है.
भगवान का यह श्रावक संघ चार प्रकार से पहुँचे हुए युग्मों और आठ प्रकार के श्रेष्ठ पुरुषों से विभूषित है.
यह आमंत्रण करने के योग्य है, यह पाहुना बनाने योग्य है, यह दान देने योग्य है, यह हाथ जोड़कर वंदन करने योग्य हैं, यह लोग में पुण्य का सर्वोत्तम क्षेत्र है और सभी जनो का सच्चा साथी है. मैं जीवन भर के लिए ऐसे संघ की सरण में जाता हूँ. 1
अतीत में जो ऐसे संघ रहे, भविष्य में जो ऐसे संघ होंगे और वर्तमान में जो ऐसे संघ हैं मैं उन सबकी वंदना करता हूँ. 2
अन्य कोई मेरी सरण नहीं है केवल संघ ही उत्तम सरण हैं, इस सत्य वचन से मेरी जय और मंगल हो. 3
मैं तीन प्रकार (काया, वाचा, मन) से उत्तम और पवित्र उस संघ की सिर झुकाकर वंदना करता हूँ. यदि संघ के प्रति अनजाने में मुझ से कोई गलती हुई हो तो संघ मुझे माफ करें. 4
— भवत सब्ब मङ्गलं —