International Buddhist Flag Day: दुनियाभर में 8 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय बुद्ध धम्म ध्वज दिवस मनाया जाता है. इस खास दिन धम्म पताका के महत्व पर प्रकाश डाला जाता है और विभिन्न आयोजनों के माध्यमों से बौद्ध अनुयायियों को धम्म ध्वज के बारे में जानकारी दी जाती है.
इस लेख के माध्यम से डॉ विकास सिंह जी भी बता रहे हैं धम्म ध्वज का महत्व. तो आइए जानते हैं अपने बौद्ध ध्वज अथवा धम्म पताका को.
इस ध्वज की क्षैतिज धारियां सद्भाव में रहने वाले वैश्विक लोगों का, खड़ी पट्टियां शाश्वत विश्व शांति का, रंग बुद्धत्व और धर्म की पूर्णता का तथा रंग संयोजन बुद्ध की शिक्षा के सत्य का प्रतीक हैं. इस ध्वज में छः रंग होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. नीला (नील) – भगवान बुद्ध के बालों और आंखों से भरी नीली रोशनी जो सभी प्राणियों के लिए सार्वभौमिक करूणा की भावना का प्रतीक है. ध्वज वन्दना में कहा गया है –
वजिर संघात कायस्स अंगोरसस्स तादिनो।
केसमस्सहि अक्खीनं नीलट्ठानेहि रंसियो।
नीलवण्णानिच्छरन्ति अनन्तकास भूदके।।
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के सिर और दाड़ी के बालों एवं आँखों के नील स्थानों से प्रभावित होने वाले नीले रंग से समुद्र, धरती और आकाश व्यापित हो रहे हैं.
2. पीला (पीत) – भगवान बुद्ध के बह्यत्वचा से तेज़ जो कि बुद्ध के बाह्यत्वचा का प्रतीक होता है वह सबसे दूर से बचता है और संतुलन और मुक्ति लाता है. ध्वज वन्दना में कहा गया है –
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो।
छवितोचव अक्खीनं, पीतट्ठानेहि रंसियो।
पीतवण्णा निच्छरन्ति अनन्तकास भूदके॥
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध की पीले रंग के त्वचा से और आँखों के पीले स्थानों से प्रभावित होने वाले पीले रंग से समुद्र, धरती और आकाश व्यापित हो रहे हैं.
3. लाल (लोहित) – बुद्ध के मांस से भरी यह लाल रोशनी का प्रतीक है जो बुद्ध की शिक्षा का अभ्यास करता है. ध्वज वन्दना में कहा गया है –
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो।
मंस लोहित अक्खीनं, पीतट्ठानेहि रंसियो।
लोहितवण्णा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके।।
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के पास में आँखों में जो रक्त स्थानों से प्रभावित होने वाले लाल रंग से समुद्र, धरती और आकाश व्यापित हो रहे हैं.
4. श्वेत (ओदात) – बुद्ध की हड्डियाँ और दाँतों से भरी सफेद रोशनी का प्रतीक बुद्ध की शिक्षा और मुक़्ति का प्रतीक होता है. ध्वज वन्दना में कहा गया है –
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो।
अट्ठि दन्तेहि अक्खीनं, सेतट्ठानेहि रंसियो।
सेतवण्णा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके।।
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के दाँत से, अस्थियों से और आंखों में जो सफेद स्थानों से प्रभावित होने वाले सफेद रंग से समुद्र, भूमि और आकाश व्यापित हो रहे हैं.
5. मंजीठ (मंजेट्ठ) – बुद्ध के वृक्षों, हील्स और होंठों की अविचल रोशनी जो बुद्ध की शिक्षा के अविचल ज्ञान का प्रतीक है. ध्वज वन्दना में कहा गया है –
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो।
तेसं-तेसं सरीरानं, नानाट्ठानेहि रंसियो।
मज्जिट्ठका निच्छरन्ति अनन्ताकास भूदके ॥5॥
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के अलग-अलग अवयवों से प्रभावित होने वाला मंजीठ या बादामी रंग से समुद्र, भूमि और आकाश व्यापित हो रहे हैं।
6. प्रभास्वर (चमकदार) – भगवान बुद्ध के शरीर के पांच रंगों के सम्मिश्रण से उत्पन्न तेज को ही प्रभास्वर रंग के रूप में गिना जाता है. ध्वज वन्दना में कहा गया है –
वजिर संघात कायस्स अंगीरसस्स तादिनो।
तेसं-तेसं सरीरानं, नानाट्ठानेहि रंसियो।
पभस्सरा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके॥
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के सभी अंगों से ऊपर कहे पाँच रंगों के सम्मिश्रण से उत्पन्न प्रखर के तेजस्वीपन के प्रभाव से समुद्र, धरती और आकाश व्यापित हो रहे हैं.
इन छः रंगों से परिपूर्ण यह धम्म ध्वज सदैव स्तुतियोग्य है, वंदना करने योग्य है. ध्वज वन्दना में कहा गया है –
वजिर संघात कायस्स अंगीरसस्स तादिनो।
एवं सब्बण रंसिहि, निच्छरन्तं विसो-दिसं।।
अनन्त अधो उद्धञ्च, अमतं व मनोहरं।
कायेन वाचा चित्तेन, अंगीरसस्स नमाम्यहं॥
अर्थात वज्र के समान अभेद और ऊपर के रंगों से परिपूर्ण हुए अनन्त में, और दस दिशाओं से अमृत के समान सन्तोष देने वाले, भगवान बुद्ध के धम्म ध्वज की मैं मन, वाणी और शरीर से वन्दना करता हूँ.
धम्म ध्वजारोहण के समय ज्यादातर लोग त्रिशरण और पंचशील का उच्चारण करते है; उसके स्थान पर “धम्म ध्वज वन्दना” कहनी चाहिए-
वजिर संघात कायस्स अंगीरसस्स तादिनो।
केसमस्सहि अक्खीनं नीलट्ठानेहि रंसियो।
नीलवण्णानिच्छरन्ति अनन्तकास भूदके ।। 1।॥
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो।
छवितोचव अक्खीनं, पीतट्ठानेहि रंसियो।
पीतवण्णा निच्छरन्ति अनन्तकास भूदके ॥2॥
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो।
मंस लोहित अक्खीनं, पीतट्ठानेहि रंसियो।
पीतवण्णा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके ।।3॥
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो ।
अट्ठि दन्तेहि अक्खीनं, सेतट्ठानेहि रंसियो।
सेतवण्णा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके ।।4॥
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो।
तेसं-तेसं सरीरानं, नानाट्ठानेहि रंसियो।
मज्जिट्ठका निच्छरन्ति अनन्ताकास भूदके ॥5॥
वजिर संघात कायस्स अंगीरसस्स तादिनो।
तेसं-तेसं सरीरानं, नानाट्ठानेहि रंसियो।
पभस्सरा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके ॥ 6॥
वजिर संघात कायस्स अंगीरसस्स तादिनों।
एवं सब्बण रंसिहि, निच्छरन्तं विसो-दिसं।।
अनन्त अधो उद्धञ्च, अमतं व मनोहर।
कायेन वाचा चित्तेन, अंगीरसस्स नमाम्यहं ॥7 ॥
आओ अंतरराष्ट्रीय बौद्ध धम्म ध्वज दिवस (8 जनवरी) मनाएं, अपने नौनिहालों को उनका इतिहास बताएं. आप सभी को पुनश्च अंतरराष्ट्रीय धम्म ध्वज दिवस (8 जनवरी) की मंगलकामनायें.
(लेखक: डॉ विकास सिंह)
— भवतु सब्ब मंङ्गलं —