प्रकृति की गोद में, मैं कभी-कभी तो अपने आपको भी भूल जाता हूँ। कभी भी मैं प्रकृति से अलग होकर सोच भी नहीं पाता। मुझे लगता है कि सिद्धार्थ में बोधि का संचरण इसी प्रकृति के पास जाकर हुआ। जब तक वे राजमहल में थे, उनके दिमाग में केवल प्रश्न थे, जबाव तो प्रकृति ने ही दिए। बौद्ध धर्म-दर्शन का केन्द्रीय सिद्धांत प्रतीत्यसमुत्पाद इसी पर्यावरणीय पारिस्थितिकी को देखकर उत्पन्न हुआ। भगवान बुद्ध ने लोगों को मेत्ता, करुणा व मुदिता को इतने उच्च स्तर तक जानने और अनुभूत करने के लिए सजग किया ताकि आप जान पाओ कि दुनिया बहुत सुंदर है और प्रकृति का चक्र ही उस सुंदरता का कारण है।
आज मंचों पर बौद्ध धर्म पर केवल बातें होती हैं, वस्तुतः यथार्थ बौद्ध धर्म तो कुछ और ही है, जो छूटा हुआ है आपके मस्तिष्क से। आप बौद्ध धर्म को एक टूल के रूप में प्रयोग करना चाह रहे ताकि बाइनरी से तैयार हुई आपकी भेदवादी बुद्धि अन्य मतावलंबी को नीचा दिखा सके या कमतर सिद्ध कर सके। ऐसा करना भी अधम्म को ही बढ़ावा देना है। ये निकृष्ट कोटि के लोगों की चिंतनधारा है। सम्यक सम्बुद्ध के पथ पर अग्रसर हो भारत का सृजन करने वाले सम्राटों के सम्राट देवानं पियदस्सि राजा अशोक ने अपने समय में बौद्धेतर विभिन्न सम्प्रदायों को मुक्त हस्त से दान दिया और किसी भी शिलालेख में दूसरे मतावलम्बी को कलुषित चित्तवृत्ति से युक्त या अपशब्द कहकर नहीं उत्कीर्ण करवाया, क्योंकि सम्राट अच्छे से जानते थे सद्धम्म का मार्ग कभी भी उस तरीके से स्थापित नहीं हो सकता। किसी को परिवर्तित करने का एक ही तरीका है आप अपने विचार के अनुसार कार्य करो, दुनिया का अपने समय का सबसे विशाल राजतंत्र होते हुए भी सम्राट अशोक ने लोककल्याणकारी राज्य की संकल्पना को साकार किया। न केवल मानवों के उपचारार्थ अस्पताल खुलवाए अपितु पशु – पक्षियों तक भी अपनी करुणा का विस्तार किया। सम्राट ने अपने प्रत्येक शिलालेख में सर्वांग सुंदर भगवान बुद्ध की देशनाओं में से किसी न किसी को उत्कीर्ण करवाया ताकि लोग उन्हें अपने जीवन का हिस्सा बना पाएं और स्वयं का उद्धार कर पाएं।
स्वयं सम्यक सम्बुद्ध और परवर्ती बौद्ध दार्शनिक शब्द प्रमाण के खिलाफ थे, शास्ता बुद्ध तो अपने सिद्धांतों और कही गई बातों को भी जाँचने-परखने की बातें करते थे। अंगुत्तरनिकाय का कालाम सुत्त अथवा केसमुत्तसुत्त इस और आपको ले जाएगा यदि आप अध्ययन करेंगे तो। तथागत की बातों में यत्किंचित भी किसी के प्रति वैर नहीं है, द्वेष नहीं है, उद्विग्नता नहीं है, कलुषता नहीं है, वे सदैव अवैर (प्रेम) की स्थापना करते हैं। प्रत्येक पद आपको उस स्नेह से सराबोर करने की ओर ले जाता है जहाँ करुणा, मैत्री और मुदिता बरसती है।
मायादेवीसुत के बुद्धत्व को समझकर, उस पर चलकर, उसका लाभ उठाकर विभिन्न मत – मतान्तरों में उलझे हुए प्रज्ञावान मनुष्य, दूषित वृत्तियों से आजीविका कमाने वाले स्त्री – पुरुष, तमाम सद्गृहस्थ, धम्मवान उपासक – उपासिकाएँ, अनगिनत सत्त्व आदि ने अर्हत पद प्राप्त किया है। कच्चानगोत्त सुत्त में तथागत ने मध्यम मार्ग की देशना दी है, जो आपको बाइनरी से बाहर निकालती है। क्योंकि आप केवल बाइनरी में उलझने वाले ही बने रहना चाहते हो तो बाबासाहेब की धम्मदीक्षा के 66 साल इस वर्ष सम्पूर्ण होने जा रहे हैं तो एक बार पुनः धम्मचक्क की ओर देखने की जरूरत है। आपको सदैव दूसरे की निंदा करने, उसमें कमियाँ निकालने, उसको सुधारने में ही यदि आनन्द आता है तो आप आजतक मध्यम मार्ग के उपदेष्टा शास्ता की बातों से अनभिज्ञ ही हो, सम्यक सम्बुद्ध का दर्शन आपको आपकी व्यक्तिगत कुंठाओं और अनैतिक इप्साओं से भी बाहर निकालकर सद्धम्म की ओर ले जाता है जहाँ आपका मन वास्तविक अर्थों में भेदभावरहित और दूषित चित्त से रहित होता है, वो नितांत निर्मल होकर अवैर के दर्शन को, करुणा के दर्शन को, मैत्री के दर्शन को सर्वत्र प्रसारित करता है।
पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म – दर्शन अपने इन्हीं मैत्री, करुणा आदि उदात्त गुणों की वजह से ही स्थापित हुआ है, न कि किसी पर आरोप – प्रत्यारोप लगाकर। जब भी आपको लगे कि कोई आपको उकसा रहा है किसी व्यक्ति, समुदाय या धर्म के प्रति तो उसी समय ठहरिए और थोड़ा क्यों, किसलिए, कैसे आदि प्रश्नों पर गौर से सोचिए। किसी से तोड़ना बड़ा आसान है, व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ना बहुत मुश्किल है। ये बाइनरी निर्माण का काम सदैव राजनीतिक होता है। जनतंत्र में ध्रुवीकरण बहुत महत्त्वपूर्ण होता है, सदियों से ही अल्पसंख्यकों (कम संख्या के समुदाय) का भय दिखाकर बहुसंख्यको को एकत्रित किया जाता रहा है। इसका दोहरा असर होता है ध्रुवीकरण दोनों तरफ होता है, आजकल ये ध्रुवीकरण सिद्धांत जातियों के आधार पर, मजबूत जातियों में भी क्षेत्रों के आधार पर उनके वोट बैंक को तोड़ने के लिए किया जाता है। ज्यादातर पत्रकार जिनकी आजीविका ही इस तरह के बाइनरी निर्माण पर टिकी हुई है, आपको नहीं पता आपकी कई दशकों की मेहनत को पल भर में ही नष्ट कर देते हैं। सर्वप्रथम वो आपका मन हरते हैं, पहले आपके विषयों पर बात करते हैं, धीरे – धीरे जैसे ही चुनाव आने लगते हैं वे आपको दूसरे समाज से तोड़ने के लिए जाल बिछाते हैं और उसको दाना – पानी मिलता है आपके महापुरुषों के सन्दर्भों को अन्य अर्थ में प्रयोग करने से और अंततः जब आपकी पार्टी ही (दूसरे द्वारा तैयार किए गए मन से पूर्ण) आपकी ही बातों से इतर अपनी राजनीतिक पारी खेलती है तो आप उसे गलत समझते हो और केवल क्रोध के कारण किसी ऐसे व्यक्ति को वोट दे देते हो जहाँ वो केवल और केवल आप जैसे तमाम लोगों को बरगला के एकत्रित किया जाता है। जब परिणाम आते हैं तो दोनों ही पार्टी हारती हुई दिखाई देती हैं और अंततः वो पक्ष विजयी हो जाता है जिसके खिलाफ आप और आपके फेवरेट पत्रकार माहौल बना रहे थे। अब वो पत्रकार पुनः उसी ढर्रे पर दूसरे इलेक्शन की तैयारी में लग जाता है और आप जैसे हजारों मूर्ख उसकी बातों में आ जाते हैं और ये मिथ्या दृष्टि या अविद्या ऐसे ही चलती रहती है। अतःएव क्षणिक भावावेश को संभालिए और अपने चित्त को किसी का दास मत बनने दीजिए। यदि वो दूषित मत की ओर जाता है तो विपश्यना से उसे साधिए। अपनी संस्कृति के प्रचारार्थ, अपने चिंतन के उद्धारार्थ उसे लगाइए, न कि अपनी ऊर्जा को किसी दूसरे मत – मतांतर को गाली देने में या उसकी आलोचना करने में।
मंचों से किसी को गाली- गलौच करने से कोई भी धर्म – संस्कृति कभी भी आगे नहीं बढ़ती, धर्म और दर्शन तो अनुभूति से आगे बढते हैं, अपनी संस्कृति के अध्ययन और उसके प्रचार से आगे बढ़ते हैं। मंचों से कुछ लोगों को समझाया जा सकता है वो भी तब समझाने वाला यदि खुद अनुभूत किया हो, अन्यथा वो गिसा-पिटा भेदवादी ज्ञान आपके किसी काम का नहीं। आप अनुभूति की ओर बढ़िए, कसम से बौद्ध धर्म और दर्शन आपकी श्वासों में दौड़ने लगेगा और आप भेद से अभेद की ओर अनवरत बढ़ेंगे।