HomeBuddha Dhammaसामान्य गृहस्थों के चार सुख

सामान्य गृहस्थों के चार सुख

भगवान बुद्ध का धम्म संसार के सभी प्राणियों के लिए है. इंसान इस धम्म से सबसे ज्यादा लाभांवित हुआ है. खासकर ग्रहस्थ जीवन जीने वाले इंसानों के लिए बौद्ध धम्म ने विशेष फायदा पहुँचाया है. ऐसे ही लोगों के लिए यानि सामान्य गृहस्थों के लिए चार प्रकार के सांसारिक सुख गिनाए हैं.

#1- आनण्य सुख

ऋण न होने का सुख. ऋण के बोझ से दबा रहने वाला व्यक्ति कितना दुखी रहता है यह एक ईमानदार गृहस्थ खूब समझता है. ऐसा व्यक्ति जब ऋण से मुक्त हो जाता है तो अत्यंत सुखी होता है.

#2- अत्थि सुख

भले उसका उपभोग न करे, पर धन-दौलत, ऐश्वर्य-वैभव हो तो मन में जो मोद होता है उसका भी सुख होता है. मेरा बैंक बैलेंस बढ़ रहा है, सालाना टर्न-ओवर बढ़ रहा है. मेरी प्रापर्टी की कीमत बढ़ रह रही है. मेरे शेयरों के दाम बढ़ रहे हैं. इस मोद में मुदित रहने का सुख अत्थि सुख कहा जाता है.

#3- भोग सुख

अत्थिसुख जब भोगसुख बनता है तो गृहस्थ उससे और अधिक सुखी होता है. धन-दौलत के बल पर विभिन्न ऐंद्रिय सुखों का भोग भोगता है. आंख से सौंदर्य देख कर, कान से मधुर संगीत सुन कर, नाक से सुगंध सूंघ कर, जिह्वा से सुस्वादु रस चख कर और शरीर से स्पर्श सुख भोग कर सुखी होता है.

#4- अनवज्जसुख

सद्गृहस्थ के लिए उपरोक्त तीनों सुखों से बढ़ कर एक सुख और होता है – वह है धर्म द्वारा वर्जित कर्मों को न करने का सुख. गृहस्थ आत्म निरीक्षण करके देखता है कि वह हत्या नहीं करता, पराया धन नहीं हथियाता, व्यभिचार नहीं करता, झूठ बोल कर किसी को नहीं ठगता. वह कड़वी, चुगली और निंदा की वाणी बोल कर किसी का मन नहीं दुखाता. वह नशेपते का सेवन नहीं करता. अपनी आजीविका के लिए अस्त्र-शस्त्रों का, विष का, पशु-पक्षी आदि प्राणियों का, मांस का, मदिरा आदि नशीले पदार्थों का व्यवसाय नहीं करता. यह देख कर उसका मन प्रसन्नता से भर उठता है.

ऐसे दुष्कर्म करने पर इस लोक में सामाजिक निंदा तथा राज्यदंड आदि के और मरने पर परलोक में अधोगति प्राप्त करने के भय से ग्रस्त नहीं रहता. दूषित कर्म करने पर जो आत्मग्लानि होती है उस पीड़ा से भी मुक्त रहता है. इस प्रकार निर्दोषी व्यक्ति सदा प्रसन्न, अभीत और शांत चित्त रहते हुए जो सुख भोगता है वह अन्य सांसारिक सुखों से निस्संदेह श्रेष्ठ सुख है.

परंतु सब प्रकार के सुखों का नामकरण तो नहीं ही किया जा सका. वैसे एक बार अनेक सुखों का तुलनात्मक वर्णन करते हुए भगवान बुद्ध ने बताया कि कौन-सा हीन है, कौन-सा प्रणीत.  

जैसे-

(1) गृहस्थ-सुख तथा प्रव्रज्या सुख-

इन दो में प्रव्रज्या सुख श्रेष्ठ है.

(2) काम-भोगों का सुख तथा अभिनिष्क्रमण का सुख-

इन दो में अभिनिष्क्रमण का सुख श्रेष्ठ है.

(3) लौकिक-सुख तथा लोकोत्तर-सुख-

इन दो में लोकोत्तर-सुख श्रेष्ठ है.

(4) सानव-सुख तथा अनानव-सुख-

इन दो में अनानव-सुख श्रेष्ठ है.

(5) भौतिक-सुख तथा अभौतिक सुख-

इन दो में अभौतिक-सुख श्रेष्ठ है.

(6) आर्य-सुख तथा अनार्य-सुख-

इन दो में आर्य-सुख श्रेष्ठ है.

(7) शारीरिक-सुख तथा चैतसिक-सुख-

इन दो में चैतसिक-सुख श्रेष्ठ है.

(8) प्रीति-सहित सुख, प्रीति-विरहित सुख-

इन दो में प्रीति-विरहित सुख श्रेष्ठ है.

(9) आस्वाद-सुख तथा उपेक्षा-सुख-

इन दो में उपेक्षा-सुख श्रेष्ठ है.

(10) असमाधि-सुख तथा समाधि-सुख-

इन दो में समाधि-सुख श्रेष्ठ है.

(11) प्रीति-आलंबन सुख तथा अ-प्रीति-आलंबन सुख-

इन दो में अ-प्रीति-आलंबन सुख श्रेष्ठ है.

(12) आस्वाद-आलंबन-सुख तथा उपेक्षा-आलंबन-सुख –

इन दो में उपेक्षा-आलंबन-सुख श्रेष्ठ है.

(13) रूप-आलंबन-सुख तथा अरूप आलंबन-सुख-

इन दो में अरूप-आलंबन-सुख श्रेष्ठ है.

इसी भांति बुद्ध ने और भी अनेक प्रकार के सुख गिनाये हैं. जैसे-

कायिकसुखं, चेतसिकसुखं, दिब्बसुखं, मानुसकसुखं, लाभसुखं, सक्कारसुखं, यानसुखं, सयनसुखं, इस्सरियसुखं, आधिपच्चसुखं, गिहिसुखं, सामञसुखं, सासवसुखं, अनासवसुखं, उपधिसुखं, निरूपधिसुखं, सामिससुखं, निरामिससुखं, सप्पीतिकसुखं, निप्पीतिकसुखं, झानसुखं, विमुत्तिसुखं, कामसुखं, नैक्खम्मसुखं, विवेकसुखं, उपसमसुखं, सम्बोधसुखं.

वैसे भी सुख शब्द प्रासंगिक ही है. अलग-अलग प्रसंग से संबंधित अलग-अलग सुख.

– सत्य नारायण गोयन्का

— धम्मज्ञान —

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