HomeBuddha Dhammaआषाणी पूर्णिमा : बौद्ध भिक्खुओं के "वर्षावास" का महात्म्य

आषाणी पूर्णिमा : बौद्ध भिक्खुओं के “वर्षावास” का महात्म्य

वर्षावास को पालि भाषा में वस्सावास कहते हैं. वर्षावास का अर्थ वर्षा के मौसम में किसी एक जगह पर वास करना या निवास करना होता है. बौद्ध परंपरा में आषाढ़ मास की पूर्णमासी से वर्षावास प्रारंभ होता है और आश्विन मास की पूर्णमासी को समाप्त होता है. उपसंपदा संपन्न भिक्खुओं को श्रद्धावंत बौद्ध जनता वर्षावास हेतु आमंत्रित करती है अथवा कोई भिक्खु अपनी साधनात्मक स्थिति के अनुसार, स्थल/अरण्य के मालिक से निवेदन करके, सहमति लेकर स्थान का चयन कर वर्षावास का अधिष्ठान यानि दृढ़ संकल्प लेते हैं.

वर्षावास की आचार संहिता

1. यह वर्षावास 3 माह का होता है.

2. यदि किसी कारण से कोई भिक्खु अषाढ़ी पूर्णिमा को वर्षावास प्रारंभ नहीं कर पाता तो वह भिक्खु जिस तिथि को वर्षावास का अधिष्ठान लेंगे, उसी तिथि से तीन माह की अवधि पूरा करना होता है.

3. पवारणा तिथि वर्षावास के समापन की तिथि होती है.

4. वर्षावास स्थल से दैनिक भिक्खा हेतु क्षेत्र निर्धारित करके सीमा बाँधकर भिक्खु आमन्त्रित या स्वचयनित बुद्ध विहार/आवास/अरण्य कुटी मे वर्षावास का अधिष्ठान लेते हैं.

5. इस दौरान बौद्ध भिक्खु उसी बुद्ध विहार में रहकर अध्ययन करते हैं, ध्यान साधना करते हैं, ज्ञान अर्जन करते हैं, बँधी सीमा का अतिक्रमण नहीं करते.

6. यदि किसी धर्म कार्य या विपदा के कारण सीमा के बाहर जाना पड़ा तो उस सप्ताह के अंदर ही पुनः अधिष्ठान वाले विहार मे आना अनिवार्य है, अन्यथा वर्षावास खण्डित हो जाता है.

7. पवारणा के बाद भिक्खु गण वर्ष के शेष महीनों में सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय हेतु धर्म-चारिका करने निकल पडते हैं.

वर्षावास काल में पड़ने वाली पूर्णिमाओं का महत्व

#1 आषाढ मास की पूर्णिमा को सिद्धार्थ गौतम मानवता के कल्याण के लिए गृहत्याग किए थे, जिसे बौद्ध सभ्यता एवं संस्कृति में महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है.

इसी दिन बोधगया में बुद्धत्व प्राप्ति के उपरांत सारनाथ/इसीपत्तन मृगदाय में पंचवग्गीय भिक्खुओं को प्रथम बार धर्म उपदेश दिया था अर्थात पहला ज्ञान दिया था. इसलिए इसे धम्मचक्कप्पवत्तन कहा जाता है.

#2 सावन मास की पूर्णमासी को बौद्ध धम्म परिषद द्वारा मगध नरेश बिंबसार के पुत्र अजातशत्रु के शासनकाल में राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में महाकस्सप की अध्यक्षता में 483 ई.पू. में प्रथम बौद्ध संगीति हुई थी जिसमें अरहत आनंद और उपाली ने तथागत गौतम बुद्ध के उपदेशों को सुत्तबद्ध किया था.

#3 भादों या भाद्रपद मास की पूर्णमासी जिसे मधु पूर्णमासी कहा जाता है. इस पूर्णमासी को बुद्ध ने भिक्खु संघ में उत्पन्न विवाद को शांत करने के लिए बुद्ध विहार को छोड़कर वन को गए थे और वन में वन के जीव-जंतुओं ने जैसे- हाथी, बंदर, तोता आदि ने इनके लिए भोजन की व्यवस्था की थी. उसी भोजन में शहद की भी व्यवस्था हुई थी. भोजन के रूप में मधु या शहद की व्यवस्था के कारण इसे मधु पूर्णिमा भी कहते हैं.

#4 आश्विन मास की पूर्णिमा जिसे बौद्ध पवरण पूर्णिमा कहते हैं. इस दिन बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के 16वें वर्ष बुद्ध ने अपनी मां महाप्रजापति गौतमी को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी थी.

पवारणा दिवस का अर्थ

भिक्खुओं के एकांत एक स्थान पर धर्माभ्यास के समाप्ति का दिन, यानि वर्षावास के समाप्ति का दिन होता है. इस दिन धम्म देशना… पूजा…  ध्यानाभ्यास के साथ बौद्ध जनता द्वारा भिक्खु संघ यानि बौद्ध भिक्खुओं को चीवर दान, भोजन दान और उपहार दिए जाते हैं. बुद्ध विहारों को सजाया जाता है. यथा सामर्थ्यनुसार बौद्ध जनता धम्मोत्सव का आयोजन करती है. वर्षावास काल मे चार माह- आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन मास- की पूर्णमासी पड़ती है. इन चारों माह की पूर्णमासी का बौद्ध परंपरा में उपरोक्त घटनाओं के कारण बुद्ध शासन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है.

(प्रस्तुति: रमेश गौतम, धम्म प्रचारक)

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