HomeBahujan Heroजयंति विशेष: अनागरिक धम्मपाल जयंति 17 सितंबर

जयंति विशेष: अनागरिक धम्मपाल जयंति 17 सितंबर

आज अनागारिक धम्मपाल जी का जन्मदिन है जिन्होंने भारत में बुद्ध के नाम, उनसे जुड़े स्थलों व बुद्धवाणी को पुनर्जीवित किया और एशिया, यूरोप व अमेरिका तक पहुंचाया. इन्होंने ही शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में स्वयं को आवंटित समय में से कुछ समय देकर स्वामी विवेकानंद को भाषण का अवसर दिया था.

अनागारिक धम्मपाल जी का जन्म 17 सितंबर 1864 को कोलंबो के एक बहुत अमीर ईसाई परिवार में हुआ था. नाम था डेविड हेवावितरणे. डेविड थियोसॉफिकल सोसायटी के संस्थापक मैडम मैरी व कर्नल हेनरी के संपर्क में आए जो बुद्ध धम्म के विद्वान थे. युवावस्था में ही डेविड बुद्ध की शिक्षाओं से काफी प्रभावित हुए और पालि भाषा सीखी. तब अपना नाम अनागरिक धम्मपाल रखा. अनागरिक अर्थात अब किसी समुदाय या नगर के नागरिक नहीं. सामाजिक बंधनों से मुक्त व्यक्ति, सांसारिक आसक्ति नहीं.

सर एरनोल्ड की बुक “द लाइट ऑफ एशिया” पढ़ी तो मानो उन्हें बुद्धभूमि भारत ने बुला ही लिया. 1891 में बोधगया आए. यहां महाबोधि विहार पर पुरोहितों का कब्जा व कर्मकांड़ देखकर काफी दुखी हुए. इसी तरह कुशीनगर व सारनाथ की दुर्दशा देखी. फिर तय किया कि भारत में बुद्ध की वाणी को फिर से आगाज करेंगे. महाबोधि सोसाइटी की स्थापना की, जिसका ऑफिस कोलंबो से कोलकता लाए. पूरी दुनिया को भारत के बौद्ध स्थलों की दुर्दशा से अवगत कराया. आखिर उन्हीं के प्रयासों से बौद्धों का महाबोधि विहार में प्रवेश शुरू हुआ.

1893 में शिकागो में हुए विश्व धर्म संसद में बौद्ध प्रतिनिधि के रूप में भारत से अनागरिक धर्मपाल को आमंत्रित किया गया था. स्वामी विवेकानंद को अधिकृत निमंत्रण नहीं था उन दिनों स्वामी विवेकानंद कोलकाता में अनागरिक धम्मपाल के संपर्क में थे. मित्र थे इसलिए अनागरिक धम्मपाल ने आयोजकों से निवेदन पर अपने भाषण के समय में से तीन मिनट का समय स्वामी विवेकानंद को बोलने के लिए दिया.

धर्म संसद में अनागरिक धम्मपाल ने बौद्ध दर्शन पर दिए भाषण से धर्म संसद में आए दुनिया के विभिन्न धर्मों के विद्वान अचंभित रह गए और बुद्ध की शिक्षाओं व भारतभूमि से बहुत प्रभावित हुए. स्वामी विवेकानंद का हिंदू दर्शन पर भाषण हुआ.

भारत में बुद्ध धम्म को फिर से जीवित करने वाले इस महामानव ने 13 जुलाई 1931 को बौद्ध भिक्खु के रूप में प्रव्रज्या ली और भिक्खु देवमित्र धम्मपाल कहलाए.

लगातार चालीस वर्ष तक भारत, यूरोप व अमेरिका में करुणा व मैत्री के धम्म का प्रचार किया. 29 अप्रैल 1933 को परिनिर्वाण हुआ. उनके अस्थि अवशेष सारनाथ के मूलगंध कुटी विहार में सुरक्षित है. ऐसे बोधिसत्व को बार-बार नमन. उन्हीं की गौरव स्मृति में पूरी दुनिया में पालि गौरव दिवस (17 सितंबर) मनाया जाता है.

(लेखक: डॉ एम एल परिहार, जयपुर)

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