HomeBuddha Dhammaबाबासाहेब ने विजयादशमी को दीक्षा क्यों ली?

बाबासाहेब ने विजयादशमी को दीक्षा क्यों ली?

14 अक्टूबर. इस दिन को कुछ लोग धम्म क्रांति दिवस मनाते हैं तो कुछ लोग बौद्ध महोत्सव के रूप में मनाते हैं और लोगों को बताते हैं कि आज ही के दिन बाबासाहब डॉ  भीमराव अंबेडकर ने नागपुर में 5 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहण की थी.

जबकि बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का 14 अक्टूबर से कोई सरोकार नहीं था.  उन्होंने तो अशोक विजयदशमी का महत्वपूर्ण दिन दीक्षा ग्रहण करने के लिए चुना था.  संयोगवश उस दिन 14 अक्टूबर का दिन पड़ रहा था. लेकिन, आज बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर के कुछ अनुयायी 14 अक्टूबर को बौद्ध महोत्सव के रूप में मनाकर डॉ. भीमराव अंबेडकर की सोच के विरुद्ध काम कर रहे हैं.  

भारत में विजय दशमी का दिन ऐतिहासिक दिन रहा है. इसीदिन चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहण की थी. इस ऐतिहासिक दिन को इतिहास के पन्नो से गायब करने के उद्देश्य से मनुवादियों ने इस दिन को रावण की मौत से जोड़कर दशहरे के रूप में प्रचारित करने का काम किया.

लेकिन बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर को यह कतई मंजूर नहीं था. इसलिए, उन्होंने अशोक विजयीदशमी का दिन बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहण करने के लिए निर्धारित कर यह संदेश देने का काम किया था कि विजयदशमी का रावण की मौत से कोई मतलब नहीं है बल्कि चक्रवर्ती सम्राट अशोक की बौद्ध धम्म दीक्षा के कारण यह दिन ऐतिहासिक दिन बना था. इसलिए हम कह सकते हैं कि 14 अक्टूबर से डॉ बाबासाहब भीमराव अंबेडकर का कोई मतलब नहीं था. उन्होंने तो चक्रवर्ती सम्राट अशोक की धम्म दीक्षा ग्रहण करने वाले दिन को पुनः ऐतिहासिक बनाने के लिए अशोक विजयी दशमी का दिन दीक्षा लेने के लिए निर्धारित किया था.

यह अलग बात है कि संयोगवश उस दिन 14 अक्टूबर का दिन पड़ रहा था. कई वर्षों तक नागपुर की दीक्षा भूमि पर 14 अक्टूबर को ही धम्म दीक्षा महोत्सव मनाया जाता रहा है. लेकिन सच्चाई समझ में आने के बाद अभी पिछले कुछ वर्षों से अब वहाँ पर अशोक विजयदशमी के दिन 3 दिनों तक चलने वाला समारोह आयोजित किया जाता है जिसमें पूरे देश से करीब 10 लाख लोग शामिल होते हैं. अतः डॉ. भीमराव अंबेडकर की सोच को समझते हुए 14 अक्टूबर की बजाय अशोक विजयदशमी के दिन ही बौद्ध महोत्सव वगैरह मनाया जाना चाहिए.

दशहरा का वास्तविक इतिहास क्या है?

विजयदशमी बौद्धों का पवित्र त्यौहार है. अशोक विजयदशमी सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध में विजयी होने के दसवें दिन तक मनाये जाने के कारण इसे अशोक विजयदशमी कहते हैं.

इसी दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी. ऐतिहासिक सत्यता है कि महाराजा अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद हिंसा का मार्ग त्याग कर बौद्ध धम्म अपनाने की घोषणा कर दी थी. बौद्ध बन जाने पर वह बौद्ध स्थलों की यात्राओं पर गए. तथागत गौतम बुद्ध के जीवन को चरितार्थ करने तथा अपने जीवन को कृतार्थ करने के निमित्त 84 हजार स्तूपों शिलालेखों व धम्म स्तम्भों का निर्माण कराया.

सम्राट अशोक के इस धार्मिक परिवर्तन से खुश होकर देश की जनता ने उन सभी स्मारकों को सजाया-संवारा तथा उस पर दीपोत्सव किया. यह आयोजन हर्षोलास के साथ 10 दिनों तक चलता रहा दसवें दिन महाराजा ने राजपरिवार के साथ पूज्य भंते मोग्गिलिपुत्त तिष्य से धम्म दीक्षा ग्रहण की धम्म दीक्षा के उपरांत महाराजा ने प्रतिज्ञा की कि आज के बाद मैं शास्त्रों से नहीं बल्कि शांति और अहिंसा से प्राणी मात्र के दिलों पर विजय प्राप्त करूंगा. इसीलिए सम्पूर्ण बौद्ध जगत इसे अशोक विजयदशमी के रूप में मनाता है.

अशोक विजयदशमी के अवसर पर ही 14 अक्टूबर 1956 के दिन बाबासाहब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने नागपुर की दीक्षाभूमि पर अपने 5 लाख समर्थको के साथ तथागत भगवान गौतम बुद्ध की शरण में आये और बौद्ध धर्म ग्रहण किया. इस कारण इस दिन को धम्म चक्र परिवर्तन दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. सम्राट अशोक विजयदशमी त्यौहार को खत्म करने के लिए आर्यों ने षडयंत्र किया. मराठी में लोग जिसे दसरा कहते हैं हिन्दी में लोग उसे दशहरा कहते हैं. दशहरा = दश + हरा दश = दस मुख का अर्थात रावण.

हरा = हराया, पराजित किया

·       पराजित करने वाले दिन को दशहरा नाम दिया गया और सम्राट अशोक विजयादशमी को गायब कर दिया गया.

·       रावण का जो प्रतीक है उसमें रावण को 10 मुख का बताया गया.

·       बौद्ध धम्म में दस परमिताओं दस शीलों का बहुत अधिक महत्व है. इसलिए रावण को दस मुख का बताया गया. 8, 9 या 11 मुख का क्यों नहीं बताया गया?

·       सम्राट अशोक विजयादशमी के त्यौहार को समाप्त करने के लिए आर्यों ने दशहरा नामक त्यौहार शुरू किया.

·       आर्यों के इस षडयंत्र को डॉ. अंबेडकर खत्म करना चाहते थे. इसलिए सोच समझकर योजना बनाकर 2500 साल का समय निर्धारित किया और वह समय 14 अक्टूबर 1956 को सम्राट अशोक विजयादशमी आ रही थी. वह विजयादशमी 2500वीं विजयादशमी थी. तब लगा कि यह 14 अक्टूबर के दिन से कोई सरोकार नहीं है. यह सम्राट अशोक विजयादशमी है.

·       तब तक बात सामने आ गयी कि डॉ बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर का जो धर्म परिवर्तन है. सम्राट अशोक विजयादशमी के साथ जुड़ा हुआ है.

मौर्य शासकों की सूची (323 -184) ईसा पूर्व

(1) सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य

(2) सम्राट बिन्दुसार मौर्य

(3) सम्राट अशोक महान

(4) सम्राट कुणाल मौर्य

(5) सम्राट दशरथ मौर्य

(6) सम्राट सम्प्रति मौर्य

(7) सम्राट शालिसुक मौर्य

(8) सम्राट देववर्मन मौर्य

(9) सम्राट शतधन्वन मौर्य

(10) सम्राट बृहद्रथ मौर्य

 

मौर्य साम्राज्य के अन्तिम बौद्ध सम्राट बृहद्रथ मौर्य को ही आर्यों ने रावण बनाया तथा सम्राट बृहद्रथ मौर्य के हत्यारे पुष्यमित्र शुंग को राम  के रूप में प्रचारित किया. यह मौर्य वंश के 10वें बौद्ध सम्राट बृहद्रथ मौर्य को मारकर उनके 10 पीढ़ियों के अस्तित्व को समाप्त करने के कारण दशहरा (दस +हरा = दस को मारने वाला) नाम प्रचारित किया गया.

इसलिए आप सभी लोग इसे सम्राट अशोक विजयादशमी के रूप में मनाऐं जिस प्रकार सम्राट अशोक महान इस दिन बौद्ध धम्म में दीक्षित हुए थे और अशांति पर शांति की, हिंसा पर अहिंसा की, क्रोध पर करूणा की विजय हुई  जिसे विजयकाल कहा गया और उसी दिन से यह दिन राष्ट्रीय पर्व बन गया. सम्राट अशोक स्वयं इस पर्व में भाग लेते थे.  यह दिन धम्म विजय का पर्व बन गया.

आज भी इस पर्व को संपूर्ण एशिया में बौद्ध उपासक सम्राट अशोक विजयादशमी के रूप में प्रति वर्ष दशहरे के दिन बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाते हैं.

 (प्रस्तुति: रमेश गौतम, धम्म प्रचारक)

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