बोधगया,राजगृह, नालंदा धम्म यात्रा -1
आप गौरव महसूस करें कि दुनिया में बुद्ध का धम्म एशियाई देशों से आगे पूरे यूरोप और अमेरिका के बुद्धिजीवी, विचारकों, धनी और समझदार लोगों में तेज़ी से फैल गया है.
यह द्वितीय बुद्ध शासन है कुछ साल पहले तक बोधगया के महाबोधि विहार में सिर्फ़ जापान, कोरिया, श्रीलंका,थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, ताइवान, चीन,म्यांमार आदि एशियाई देशों के बुद्ध धम्म के परम्परागत श्रद्धालु ही कभी कभी आते थे.
लेकिन मैंने देखा कि अब परिदृश्य काफ़ी बदल गया है. अब फ़्रान्स,जर्मनी, इटली, इंग्लैंड, स्विट्ज़रलैंड आदि के साथ अमेरिका से भी काफ़ी संख्या में भिक्खु भिक्खुणी संघ और उपासक उपासिकाएँ पूरे साल बोधगया में उस बोधिवृक्ष (Bodhi Tree) के दर्शन करने और ध्यान साधना करने के लिए आते रहते हैं.
सूरज उगने से पहले रात के आख़िरी पहर से ही अलग-अलग देशों की मोनेस्ट्रीज में ठहरे हुए भिक्खु भिक्खुणी के नेतृत्व में उपासकों के समूह कतारबद्ध ढंग से महाबोधि विहार की ओर चल पड़ते हैं. गंभीर,शांत चित्त, श्रद्धा व अनुशासन से भरे बुद्ध के ये अनुयायी हम भारतीय बुद्ध उपासकों को सोचने विचारने पर मजबूर करते हैं कि धम्म को जीवन में कैसे जिया जाता है?
ये समूह सम्राट अशोक द्वारा बनाए इस महाविहार में विराजमान भगवान बुद्ध की करुणामयी प्रतिमा के दर्शन कर, बुद्ध वन्दना और सुत्त का पठन करते हैं. भगवान बुद्ध और उनके धम्म के प्रति इनकी गहरी श्रद्धा देख कर हमें सुखद अनुभूति होती है.
यहाँ के बाद ये समूह वरिष्ठ भिक्खु भिक्खुणी के नेतृत्व में बिहार, उ.प्र., नेपाल के उन सभी जगहों के दर्शन करने जाते हैं जहाँ-जहाँ भगवान के चरण पड़े थे.
आप भी समूह के साथ साल में कम से कम एक बार इन पावन स्थलों के दर्शन ज़रूर करें. वहां ध्यान साधना करें और समाज में प्रेम, करूणा,मैत्री व मानव कल्याण के धम्म प्रचार की प्रेरणा जाग्रत करें.
सबका मंगल हो…सभी प्राणी सुखी हो
जारी…
(लेखक: डॉ एम एल परिहार)
— धम्मज्ञान —