बोधगया, राजगृह, नालंदा धम्म यात्रा -2
बोधगया महाबोधि विहार अंधविश्वास, कर्मकांड, गंदगी, शोरगुल और अव्यवस्था के संकट के दौर में
जो महाबोधि विहार साफ़ सुथरा,सुगंधित व धम्म के शांत वातावरण से भरा नज़र आता था वह आजकल भगवान बुद्ध के नाम पर तंत्र मंत्र, अंधविश्वास व कर्मकांडों के कारण दयनीय दशा में बदल गया है. बोधि वृक्ष के आस-पास दूर-दूर तक ऐसे भिक्खुओं व उपासकों ने अपने-अपने छोटे तम्बूनुमा कई घर बना दिए हैं जहाँ वे सुबह आते हैं और दिन भर तरह-तरह के कर्मकांड कर शाम को अपनी जगह को मोटे पॉलीथिन से ढक कर चले जाते हैं. और ये सिलसिला साल भर चलता रहता है.
इस कारण से महाविहार प्रांगण में कहीं भी जगह नहीं बची है. यही नहीं इनमें से कई लोग माइक लगाकर मंत्रों की तरह सूत्तपठन का कर्मकांड करते हैं. ऐसे शोरगुल से महाविहार में बोधिवृक्ष के आस-पास अमेरिका, जापान, श्रीलंका, कोरिया, म्यांमार, वियतनाम आदि देशों के धम्म के प्रति गंभीर भिक्खु भिक्खुणी व विद्वान उपासकों को थोड़ी देर के लिए भी ध्यान करने व देशना करने में बहुत व्यावधान पड़ता है.
यही नहीं ऐसे कर्मकांडों मे पूरे प्रांगण हज़ारों की संख्या में जगह-जगह स्टील के कटोरों में हर दिन पानी भरकर रखा जाता है पूरे परिसर में पानी, कचरे, इधर-उधर बिखरे फूलों के कारण कीचड़ फैला रहता है.
इस कारण पूरे परिसर में मच्छरों की भरमार इतनी अधिक है कि आप दो मिनट बोधिवृक्ष के नीचे ध्यान नहीं कर सकते.
और हाँ, वहां लावारिस कुत्तों की इतनी बड़ी संख्या हर दम रहती है कि ध्यान साधना करने वाले की गोद में कब कोई कुत्ता आकर बैठ जाए या मुँह सूँघ ले, कह नहीं सकते.
इससे भी आगे यह है कि पूरे परिसर में चीवर पहने हुए नक़ली भिक्खु जगह-जगय बैठे रहते हैं या घुमते हुए विदेशी श्रद्धालुओं के आगे रुपयों के लिए भिक्षापात्र फैलाते नज़र आते हैं. चीवर व भिक्षापात्र का इससे अधिक अपमान और क्या होगा.
गया में अपने पूर्वजों का तर्पण करने आने वाले हिंदू लोग भी वहीं बैठ कर पंडे के द्वारा कर्मकांड करवाते हैं.
विडम्बना यह है कि वहां कोई किसी को रोकने वाला नज़र नहीं आता. ऐसा लगता है कि महाविहार का मैनेजमेंट यही चाहता है कि ऐसी अव्यवस्था के कारण लोगों की धम्म के प्रति श्रद्धा कम हो. फिर दूसरों का क्या दोष देवे, इसके लिए अंधविश्वासी कर्मकांडी बौद्ध भी काफ़ी ज़िम्मेदार है.
भगवान बुद्ध की धम्म के मर्म को समझे बिना सिर्फ़ तंत्र मंत्र व कर्मकांडों पर ज़ोर देने वाले भिक्खु व उपासकों के कारण अधिक चिंता व दुख यूरोप, अमेरिका, जापान, कोरिया, चीन, म्यांमार, थाईलैंड, वियतनाम, श्रीलंका आदि जैसे देशों के भिक्खु संघ और उन उपासकों को होती हैं जो धम्म को बहुत गहराई से अध्ययन करते हैं समझते है ध्यान अभ्यास करते हैं और स्वयं से आगे धम्म प्रचार में रात दिन लीन रहते हैं.
परमपूज्य अनागारिक धम्मपाल जी ने इस महाबोधि विहार की दूसरों से मुक्ति के कितना संघर्ष किया था.यह हमें हर समय याद रखना होगा.और इसकी धाम्मिक पवित्रता बनाए रखना होगा.
सबका मंगल हो ….सभी प्राणी सुखी हो
जारी…
(लेखक: डॉ एम एल परिहार)
— धम्मज्ञान —