HomeGood Questions Good Answers9. नसीब और भविष्य

9. नसीब और भविष्य

सवाल: बुद्ध ने भविष्य और जादू विद्या के बारे में क्या कहाँ?

जवाब: ज्योतिष विद्या, रक्षा कवच, ईमारत निर्मिति के लिए स्थान चुनना तथा शुभ दिन देखना आदि को उन्होने व्यर्थ बताया और अपने शिष्यों को उसमे न उलझने को कहां. उन्होने इसे ‘हीन विद्याए’ कहाँ. उन्होन कहा:

“कुछ धार्मिक लोग अपना गुजारा करने के लिए हस्तसामुद्रिक, शुभ संकेत देना, स्वप्न के अर्थ बताना … अच्छा या बुरा नसीब बनाना… शुभ स्थान निश्चित करना आदि में इसका उपयोग करते हैं, बुद्ध ऐसी हीन विद्याओं के उपयोग से, ऐसी असम्यक आजीविका से विरत रहने को कहते हैं.” D.I.9-12

सवाल: फिर क्यों लोग ऐसी विद्याओं में विश्वास कर उसका उपयोग करते हैं?

जवाब: अज्ञान, भय और लोभ के कारण. जैसे लोग बुद्ध की शिक्षा समझते हैं वैसे उन्हे पता चलता हैं कि निर्मल ह्रदय किसी भी कागज या धातु के टुकडे या मंत्रों से ज्यादा संरक्षण देता हैं, और फिर वे ऐसी बाते नही मानते. बुद्ध की शिक्षा के अनुसार प्रमाणिकता, दयाभाव, समझ, संयम, क्षमाशीलता, दान, निष्ठा और अन्य सदगुण हमें सच्ची सुरक्षा और संपन्नता देते हैं.

सवाल: पर कुछ जादू काम करता हैं, हैं ना?

जवाब: मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो नसीब बनाने के तंत्र बेचता हैं. वो अच्छा नसीब, संपति, लॉटरी में सफलता का दावा करता हैं. पर फिर भी वो अमिर क्यों नहीं हैं? अगर उसका जादू काम करता हैं तब वो खुद क्यों नही हर हफ्ते लॉटरी जीत जाता? उसका इतना ही नसीब हैं कि कोई मुर्ख उसका ग्राहक बन जाता हैं.

सवाल: पर क्या नसीब जैसी कोई बात हैं?

जवाब: शब्दकोश के अनुसार; ‘जो कुछ भी अच्छा, बुरा जीवन में घटता हैं वह नसीब के कारण हैं ऐसा विश्वास, या धारणा नसीब हैं.’ बुद्ध ने इसे पूर्णत: नकारा. हर परिणाम के पीछे एक या अधिक कारण होते हैं. जैसे की बीमार होने के पीछे कारण होते हैं. कमजोर प्रतिरोधक शक्ति वाले का रोगाणु से संपर्क, यह बीमरी के लिए आवश्यक हैं. एक निश्चित कार्य (बीमारी) और कारण (रोगाणु संसर्ग और कमजोरी) इसमें कुछ संबंध दिखाई देता हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि रोगाणु अंदरूनी अंगों पर हमला करता हैं जिससे बीमारी आती हैं. लेकिन कागज पर लिखे कुछ अक्षर और संपति या परीक्षा में सफलता पाने का कोई संबंध नहीं दिखाई देता. बुद्ध की शिक्षाओं में अपने चित की शुद्धि करना बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं. उन्होने कहा:

“माता-पिता का सम्मान करना, पत्नी-बच्चों का ख्याल रखना, अपने व्यवहार में प्रमाणिक रहना इसी से अच्छा नसीब बनता हैं. दान करना, न्यायी होना, रिश्तेदारों को मदद देना और अपने व्यवहार शुद्ध रखना इसी से अच्छा नसीब बनता हैं. दुष्कर्म और नशाखोरी से दूर रहना और शील का संकल्प से पालन करना इसी से अच्छा नसीब बनता हैं. भिक्षु का सम्मान, विनम्रता, संतुष्टि, अहोभाव और सधम्म का श्रवण इसी से अच्छा नसीब बनता हैं.” Sn. 262-6

Must Read

spot_img