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8. शाकाहारवाद

सवाल: क्या बौद्धों को शाकाहारी होना चाहिये?

जवाब: जरूरी नही हैं. बुद्ध शाकाहारी नही थे, उन्होने अपने शिष्यों को शाकाहारी बनने को नही कहा. और आज भी बहुत लोग हैं जो शाकाहारी नही हैं परंतु अच्छे बौद्ध हैं. बुद्ध के अनुसार अगर किसी भोजन को केवल आपके स्वाद के लिये हिंसा से उत्पन्न किया हो तब वह पूर्णत: त्याज्य हैं. इसमें प्राणियों के दु:ख के प्रति संवेदनशील होने कि शिक्षा दी गयी हैं. बौद्ध ग्रथ में कहा गया हैं:

“कठोर होना, करुणा न करना, पीछे से वार करना, मित्रों के प्रति उदासीन, ह्रदय शून्य, कठोर, क्षुद्र, कृपण होना यह सब अशुद्ध भोजन हैं, न की मांसाहार करना. अनैतिक होना, कर्ज न चुकाना, विश्वासघात करना, व्यवसाय में धोका देना, लोगों में भेदाभेद करना करना यह अशुद्ध भोजन हैं, न की मांसाहार करना. प्राणी हत्या करना, चोरी, दूसरों को चोट पहुँचाना, क्रुरता, कठोरता और दूसरों का अनादर यह अशुद्ध भोजन हैं न की मांसाहार करना.” Sn. 244-6

सवाल: पर अगर हमने मांसाहार किया तो हम प्राणी के मृत्यु के लिये जिम्मेदार हैं. तो क्या यह शील का उल्लंघन नही?

जवाब: यह सच हैं कि अगर आपने मांसाहार किया हैं तो उस प्राणी के लिये आप अप्रत्यक्ष या अंशत: जिम्मेदार हैं. परंतु तब भी यह हिंसा होती हैं जब आप शाकाहारी हैं. किसानों को उनके खेतों में किटनाशक और जहर इस्तेमाल करना पडता हैं ताकि आपकी थाली में सब्जियां आ सके. बेल्ट और बैग बनाने की चमडी के लिय, जो साबुन आप इस्तेमाल करते हैं उसके लिए तेल और उसी प्रकार की हजारों जरूरत की चीजों के लिए प्राणियों को मारा जात हैं. किसी भी जीव की हिंसा के अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेवार हुए बिना हम जीवित नही रह सकते. यह पहले आर्य सत्य का उदाहरण हैं: संस्कारित जीवन में दु:ख और असमाधान हैं. जब आप पहला शील लेते हैं तब आप प्रत्यक्ष हिंसा से विरत रहने का प्रयास करते हैं.

सवाल: महायान बौद्ध धम्म में मांसाहार नही किया जाता?

जवाब: यह सच नही हैं, चीन में शाकाहार पर बहुत जोर दिया जाता हैं, परंतु आमतौर से जापान, मंगोलिय और तिब्बत में भिक्षु और उपासक मांसाहार करते हैं.

सवाल: लेकिन मुझे लगता हैं कि बौद्धों को शाकाहारी होना चाहिए?

जवाब: अगर कोई शाकाहारी होते हुए भी स्वार्थी, अप्रमाणिक और दुष्ट हैं और दूसरा मांसाहारी होते हुए भी परोपकारी, प्रमाणिक, दानी और दयालु हैं तब इनमे से कौन बेहतर बौद्ध हैं?

सवाल: वह व्यक्ति जो ईमानदार और दयालु हैं.

जवाब: क्यों?

सवाल: क्योंकि ऐसा व्यक्ति सह्रदय हैं.

जवाब: सही हैं. जो व्यक्ति मांसाहार करता हैं उसका ह्रदय शुद्ध हो सकता हैं, जैसे जो मांसाहार नही करता उसका ह्रदय अशुद्ध हो सकता हैं. बुद्ध के उपदेश में महत्वपूर्ण बात यह हैं कि आपका ह्रदय कैसा हैं, ना की आपका भोजन क्या हैं. बहुत से लोग मांसाहार कभी भी न करने का प्रयास करते हैं परंतु स्वार्थ, क्रुरता या मत्सर से दूर रहने का प्रयास नहीं करते. वे उनका आहार बदलते हैं क्योंकि वह आसान हैं जबकि ह्रदय परिवर्तन करने को नजर अंदाज करते हैं. तो बौद्ध धम्म में आपका मन परिवर्तन महत्वपूर्ण हैं, आप शाकाहारी हैं या मांसाहारी यह नहीं.

सवाल: परंतु, बौद्ध धम्म के अनुसार क्या मांसाहारी सह्रदय व्यक्ति से शाकाहारी सह्रदय व्यक्ति अच्छा हैं?

जवाब: अगर कोई शाकाहारी सह्रदय व्यक्ति का मांसाहार टालना प्राणियों के प्रति करुणा की वजह से हैं, और औद्योगिक दुनिया की क्रुरता में सम्मिलित नहीं होना चाहते इसलिए हैं, तब उन्होने निश्चित ही करुणा को विकसित किया हैं. कई लोगों का अनुभव हैं कि धम्म आचरण के साथ उनका मांसाहार स्वभावत: छूट जाता हैं.

सवाल: मुझे लगता हैं कि बुद्ध की मृत्यु सुअर के विषाक्त मांसाहार से हुई. क्या यह सच हैं?

जवाब: यह सच नहीं हैं. धर्म ग्रंथ कहते हैं कि, बुद्ध का अंतिम भोजन सुकर माद्दव था. इसका अर्थ बहुत समय तक मालुम नहीं था, किंतु सुकर का अर्थ सुअर हैं; तो इसका मतलब सुअर का मांस बनाने से उतना ही हैं जितना की कोई शाकाहारी पदार्थ या आटे से बने हुये खाने के पदार्थ से हो. चाहे जो भी हो पर लोग इस भोजन को बुद्ध के देहांत का कारण समझते हैं. बुद्ध की उम्र उस समय 80 वर्ष थी और वे कुछ समय से बीमार चल रहे थे. उनका देहांत वृद्धावस्था के कारण हुआ हैं.

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