HomeBuddha Dhammaकार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व (Importance of Kartika Purnima or Poya Day)

कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व (Importance of Kartika Purnima or Poya Day)

बौद्धों में अन्य पूर्णिमाओं की भांति ही कार्तिक पूर्णिमा का भी बड़ा महत्त्व है. जहाँ तक संभव हो इस दिन विहारों में जाकर और संभव न हो तो घर पर ही किसी भी भन्ते से (मोबाइल फोन पर भी) अट्ठसील (अष्टशील) ग्रहण करके उपोसथ करना चाहिए.

ज्यादातर देखा जाता है कि लोग अपने सांस्कृतिक पर्वों को मनाने की अपेक्षा दूसरों के पर्व – त्यौहारों की मीन-मेख निकालने में, आलोचना – प्रत्यालोचना करने में समय बर्बाद ज्यादा करते हैं. मिथकों में हारे हुए लोगों को जबरदस्ती अपना नायक स्वीकार करते हैं और एक अथाह दुःख और निराशा से भरकर द्वेष को बढ़ाते रहते हैं. राजनीतिक चीजें और किताबी बातें कई बार वर्तमान को भी दुःखमय अनायास बना देती हैं, अतः समझदारी के साथ में विद्वान का ध्येय हितकारी व लाभकारी वचन को वर्तमान के अनुकूल बनाना होना चाहिए न कि उस वचन से द्वेष को बढ़ाना। अस्तु ये चर्चा का विषय है, आज की कार्तिक पूर्णिमा के वैशिष्ट्य पर चर्चा करते हैं.

1. धम्मसेनापति भंते सारिपुत्र परिनिर्वाण दिवस

पालि साहित्य में 84,000 देशनाएँ संग्रहित हैं, जिनमें 82,000 सम्यक सम्बुद्ध की हैं और 2,000 भंते सारिपुत्र एवं भंते महामौद्गलायन की हैं. भंते सारिपुत्र भगवान बुद्ध के शिष्यों में प्रमुख थे और उन्हें भगवान ने धम्मसेनापति कहा था. जब वे बोलते थे तो लगता था सिंहनाद हो रहा है. महायान में तो भगवान बुद्ध की आभिप्रायिक देशनाओं का व्याख्यान भंते सारिपुत्र से ही कराया गया है.

ऐसे महान सपूत को भला कितने दिनों तक भारत भुला सकता था. मगध ने अपने माटी के उस लाल को आजादी के सात दशक बाद याद किया है, देर आए दुरुस्त आए की पहल पर, बिहार सरकार ने भन्ते सारिपुत्र के महत्त्व को स्वीकार करते हुए वर्ष 2012 में, उनके महापरिनिर्वाण दिवस अर्थात कार्तिक पूर्णिमा को सारिपुत्र दिवस घोषित किया था.

2. देवानं पिय पियदसि सम्राट अशोक का परिनिर्वाण दिवस है कार्तिक पूर्णिमा

विभिन्न पालि एवं संस्कृत स्रोतों से यह ज्ञात होता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही चक्रवर्ती सम्राट अशोक का निधन हुआ था, अतः आज का दिन उनके स्मृति दिवस के रूप में याद किया जाता है.

अपने जीवन के अंतिम क्षणों में सम्राट अशोक ने जब मगध का नेतृत्व अपने पौत्र सम्राट दशरथ के सुपुर्द कर दिया था, तब सम्राट अशोक के पास जो कुछ भी निजी सम्पति थी, उससे प्रतिदिन भिक्खु संघ को दान किया करते थे. ऐसा उल्लेख मिलता है कि उन्होने अपने भोजन के बर्तन तक दान में दे दिए थे और कार्तिक मास की एकादशी के दिन उन्होंने आधे आंवले का दान दिया जो उनका अंतिम दान माना जाता है. इसी वजह से आंवला एकादशी के रूप में भारत में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी स्मृत की जाती है.

एकादशी के कुछ दिन बाद ही कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन वे पंचतत्त्व में विलीन हो गए. यदि किंवदंतियों का मानें तो ऐसा जनसामान्य में प्रचलित है कि दाह संस्कार के दौरान, सम्राट अशोक का शरीर सात दिन और रातों तक जलता रहा. उत्तरविहारठ्ठकथा के अनुसार सम्राट अशोक की अस्थियों पर सारनाथ में धम्मराजिक स्तूप का निर्माण करवाया गया जहां सम्यक संबुद्ध ने धम्मचक्क प्रवर्तन किया था.

3. कठिन चीवर दान का अंतिम दिन

सावन (श्रावण), भादों (भाद्रपद) और क्वार (आश्विन) ये तीन माह वस्सावास के होते हैं जिसमें बिना किसी आपातकाल के भिक्खु – भिक्खुणियों का यात्रा करना विनय के नियमों के अनुसार निषिद्ध है. उन्हें एक स्थान पर रहकर साधना करनी होती है और बौद्ध शास्त्रों का अध्ययन करना होता है. एक तरह से पूरी साल की तैयारी का समय वर्षा का ये मौसम होता है. इस वस्सावास का आरम्भ आषाढ मास की पूर्णिमा से होता है और समापन आश्विन पूर्णिमा के दिन होता है. आश्विन पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक कठिन चीवरदान के समारोह होते हैं जिनमें उपासक – उपासिकाऐं विभिन्न महाविहारों में जाकर दान करते हैं.

आओ कार्तिक मास पूर्णिमा पर आज भिक्खु सारिपुत्र और सम्राट अशोक को याद करें और जनसामान्य के उद्धार के लिए समर्पण और स्नेह उनसे सीखें. ऐसी बहुविध पावनी कार्तिक पूर्णिमा की आप सभी को कोटिशः मंगलकामनाएँ.

लेखक: डॉ. विकास सिंह, संस्कृत विभागाध्यक्ष, मारवाड़ी कॉलेज, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा

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