HomeBuddha Dhammaजयंति विशेष: आओ नमन करें सर एलेक्जेंडर कनिंघम को उनके जन्मदिवस पर

जयंति विशेष: आओ नमन करें सर एलेक्जेंडर कनिंघम को उनके जन्मदिवस पर

Sir Alexander Cunningham: सभ्यताएँ जन्म लेती हैं और समय के साथ संस्कृति के रूप में वे परम्परा बन समाज में विद्यमान रह जाती हैं. एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ये परम्पराएँ विभिन्न स्वरूपों में, विभिन्न विचारों में, विभिन्न क्रियाकलापों के रूप में हस्तांतरण होती रहती हैं. कभी-कभी तो लगता ही नहीं कि ये सदियों पुराने विचार हैं, नित नूतनता लिए हुए ये विचार सदैव समकालिक प्रतीत होते हैं. सांस्कृतिक मूल्यों की यही पहचान है कि वे कालातीत होते हैं या कहें कि कालजयी होते हैं.

जब इन्हीं सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति श्रद्धा और विश्वास का बीज आपके हृदय में उत्पन्न होता है तो आप निकल पड़ते हो सर एलेक्जेंडर कनिंघम की तरह देश-देशाटन पर और धरती के हृदय में समाई हुई पूरी की पूरी संस्कृति को उत्कीर्ण कर बाहर निकाल लाते हो और उसकी रोशनी से पुनः पूरी दुनिया को लाभान्वित कर देते हो. सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति ये चित्त करोड़ो में किसी-किसी के ही उद्भूत होता है और यथोचित पुष्पित, पल्लवित होकर वह यथेष्ठ मार्ग का सृजन करता है.

भारतीय इतिहास में बौद्ध सांस्कृतिक धरोहर लहलहाती थी जिसे विभिन्न राजवंश समय-समय पर अग्रसर करते रहते थे. नालन्दा, तक्षशिला, विक्रमशिला, सोमपुरा, जगद्दलपुरी, ओदंतपुरी आदि अनेक विश्वविद्यालयों से धम्मरश्मियाँ प्रसूत होकर पूरे विश्व को लाभान्वित किया करती थीं. लगातार होते विदेशी आक्रमणों और आंतरिक भितरघातों से धूसरित होती ये संस्कृति शनैः-शनैः क्षीण होने लगी किन्तु इसकी लौ हिमालय के पर्वतीय भागों में भारत में सदैव बनी रही और एशियाई देशों में तो इसकी कांति कभी फीकी न पड़ी. अग्रेंजों के आगमन के साथ ही अंग्रेजों में से एक ऐसा वर्ग भी निकला जो भारत से बेहद प्रेम करता था. वो यहाँ की हर एक वस्तु को सहेजना चाहता था ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी उसे देख पाएं और अपने भव्य अतीत को जान पाएं. इन्हीं प्राच्यविदों में अग्रगण्य और सर्वप्रमुख हैं सर एलेक्जेंडर कनिंघम.

हे कनिंघन! बौद्ध समाज आपके कृत्यों के प्रति सदैव कृतज्ञ रहेगा. आपके उत्खननों ने न केवल तथागत गौतम बुद्ध को ऐतिहासिक सिद्ध किया, अपितु उनके मानवीय अस्तित्व और उनसे संबंधित समस्त स्थलों का पता समस्त जगत् को हुआ. आपने विश्वविख्यात चीनी बौद्ध भिक्खुओं ह्वेनत्सांग और फाह्यान के यात्रा वृत्तान्तों को आधार बनाकर अविभाजित भारतवर्ष के तक्खसिला (तक्षशिला), सागल (स्यालकोट), अहिछत्त (अहिछत्र), बैराट (वैराट), संकिसा, सावत्थि (श्रावस्ती), कौसाम्बी, वैसाली (वैशाली), नालन्दा आदि अनेक बौद्ध स्थलों की उत्खनन के द्वारा ऐतिहासिक पुष्टि की. आपने 1871 में भारत का प्राचीन भूगोल नामक पुस्तक की भी रचना की.

तथागत बुद्ध के मार्ग पर चलकर तथा लोककल्याणकारी राज्य व्यवस्था स्थापित करके अजातशत्रु, कालाशोक, महापद्मनन्द, अशोक, कनिष्क, मिनाण्डर, कुमारगुप्त, गौतमीपुत्र शातकर्णी, हर्षवर्धन, कुबले खान (मंगोलिया), अल्तान खान (मंगोलिया), मिंग (चीन), याओ सिंग (चीन), तांग डेजंग (चीन) तथा अन्य देशी-विदेशी शासक न केवल प्रसिद्ध हुए, अपितु इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है. बुद्ध वचनों पर विभिन्न ग्रंथ लिखने वाले नागार्जुन, आर्यदेव, धर्मकीर्ति, दिड़्नाग, रत्नकीर्ति, पद्मसंभव, अतीश दीपंकर आदि तथा बुद्ध वचनों और शास्त्रों का अनुवाद करने वाले दाओ एचोन, कुमारजीव आदि चीनी; तारानाथ तथा अन्य तिब्बती अनुवादक; दुनिया की प्रत्येक भाषा में बुद्ध वचनों को अनूदित करने वाले लोग भी प्रसिद्ध हुए.

हे कनिंघन! आपके द्वारा तथागत की ऐतिहासिक तथता के प्रमाणों का खोजा जाना, विश्व इतिहास में आपको स्वर्णाक्षरों से अंकित करता है. आपके जन्मदिन (23 जनवरी 1814) के अवसर पर हम आपका पुण्यानुमोदन करते हैं.

 

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