HomeBuddha Dhammaफाल्गुन पूर्णिमा को गाई गई नरसीह-गाथा

फाल्गुन पूर्णिमा को गाई गई नरसीह-गाथा

फाल्गुन पूर्णिमा के दिन पूरा कपिलवस्तु वासन्ती हवाओं से स्नान किया हुआ था, प्राकृतिक छटाओं से श्रंगार किया हुआ था, नर-नारी, युवा-बाल-वृद्ध सबके सब आनन्द में मग्न थे, और हो भी क्यों न कपिलवस्तु का राजकुमार कई सालों बाद पुनः कपिलवस्तु जो लौटे हैं. कभी ‘जटाय जटिता पजा’ सी, सांसारिक उलझनों में उलझी हुई जनता के सामाजिक-आध्यात्मिक दुःखों का मार्ग अन्वेषित करने राजकुमार सिद्धार्थ गए थे, किन्तु वापस उन प्रश्नों का समाधान खोजने वाले तथागत बुद्ध लौटे हैं.

कपिलवस्तु का राजमहल भी भला इस घटना से अपने आपको दूर कहाँ रख सकता था. जिस महल के कोने कोने में सिद्धार्थ का बचपन बीता है, जिस महल के जर्रे-जर्रे में महाप्रजापति गौतमी द्वारा सिद्धार्थ का पालन-पोषण किया गया है, जिस महल के कोने-कोने में यशोधरा का स्नेह जुड़ा है, भला उसे कौन भुला पाएगा? सिद्धार्थ और यशोधरा का पुत्र राहुल आज महल में प्रवेश करते हुए हजारों भिक्खुओं को देखकर अधीर हो जाता है और उनमें से स्वर्ण की तरह कांतिमान तथागत बुद्ध को देखकर अपनी मां यशोधरा से पूछने लगता है कि इतने सुंदर और हमारे बीच में अतुलनीय ये पुरुष कौन है? क्या ये उसके पिता हैं?

तब यशोधरा ने राहुल को समझाते हुए भगवान बुद्ध के शारीरिक और चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए ये 9 गाथाएं गाईं जिन्हें पालि साहित्य में हम नरसीह गाथाओं के नाम से जानते हैं. प्रत्येक गाथा का अंत *एस हि तुय्ह पिता नरसीहो. (ये नरसिंह तुम्हारे पिता हैं)* से होता है. इन गाथाओं का हमें स्मरण कर लेना चाहिए और ध्यान करते समय आरम्भिक ध्यान में धारणी करते हुए बुद्ध का स्वरूप याद करने में आसानी होगी। पालि भाषा सीखने में भी ये गाथा बहुत लाभकारी है. पालि के विद्वान् आचार्य डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल जी एसो और को शब्दों के प्रयोग को समझाते हुए इस पूरी गाथा का अर्थ करते हैं.

एसो पिता। (यह पिता।)
को पिता? (कौन पिता?)
एसो नरसीहो तुय्ह पिता। (यह नरसिंह तुम्हारा पिता।)
किदिसो एसो नरसीहो तुय्ह पिता? (किस प्रकार का यह नरसिंह तुम्हारा पिता है?)

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चक्क-वरंकित-रत्त-सुपादो,
लक्खण-मण्डित-आयत-पण्हि।
चामर-छत्त-विभूसित-पादो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 1।।

को पिता? (कौन पिता?)

(यो – जो)

1. चक्क-वरंकित-रत्त-सुपादो,
2. लक्खण-मण्डित-आयत-पण्हि,
3. चामर-छत्त-विभूसित-पादो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)।

(भावार्थ-जिनके रक्त-वर्ण चरण चक्र से अलंकृत हैं, जिनकी लम्बी एड़ी शुभ-लक्षण वाली है, जिनके चरण चंवर तथा छत्र से अंकित हो सुशोभित हो रहे हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 1 ।।)

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को पिता? (कौन पिता?)

(यो – जो)

सक्य-कुमार-वरो सुखुमालो,
लक्खण-चित्तिक-पुण्ण-सरीरो।
लोक-हिताय गतो नरवीरो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 2।।

को पिता?

(यो)

1. सक्य-कुमार-वरो सुखुमालो
2. लक्खण-चित्तिक-पुण्ण-सरीरो
3. लोक-हिताय गतो नरवीरो
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि।)

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को पिता?

पुण्ण-ससंक-निभो मुखवण्णो,
देवनरान पियो नरनागो।
मत्त-गजिन्द-विलासित-गामी,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 3 ।।

को पिता?

(यो)

1. पुण्ण-ससंक-निभो मुखवण्णो,
2. देवनरान पियो नरनागो,
3. मत्त-गजिन्द-विलासित-गामी,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो।

(भावार्थ-जिनका मुख पूर्ण चन्द्र के समान प्रकाशित है। ये जो नरों में हाथी के समान हैं तथा सभी देवताओं और नरों के प्रिय हैं, ये जो मद-मस्त गजराज की तरह चले जा रहे हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 3 ।।)

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को पिता?

खत्तिय-सम्भव-अग्गकुलीनो,
देव-मनुस्स-नमस्सित-पादो।
सील-समाधि-पतिट्ठित-चित्तो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 4 ।।

को पिता?

(यो)

1. खत्तिय-सम्भव-अग्गकुलीनो,
2. देव-मनुस्स-नमस्सित-पादो,
3. सील-समाधि-पतिट्ठित-चित्तो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)।

(भावार्थ-ये जो अग्र क्षत्रिय कुलोत्पन्न हैं। ये जिनके चरणों की देव-मनुष्य सभी वन्दना करते हैं, ये जिनका चित्त शील-समाधि में सुप्रतिष्ठित है; ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 4 ।।

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को पिता?

आयत-युत्त-सुसण्ठित-नासो,
गोपखुमो अभिनील-सुनेत्तो।
इन्दधनु-अभिनील-भमूको,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 5 ।।

को पिता?

(यो)

1. आयत-युत्त-सुसण्ठित-नासो,
2. गोपखुमो अभिनील-सुनेत्तो,
3. इन्दधनु-अभिनील-भमूको,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)

(भावार्थ-ये जिनकी नासिका चैड़ी तथा सुडौल है, गाय के बछड़े की तरह जिनकी बरौनियाँ (पलकें) हैं, जिनके नेत्र सुनील वर्ण हैं, ये जिनकी भौहें इन्द्रधनुष के समान हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 5 ।।)

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को पिता? (कौन पिता?)

वट्ट-सुवट्ट-सुसण्ठित-गीवो,
सीहहनु मिगराज-सरीरो।
कञ्चन-सुच्छवि उत्तम-वण्णो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 6 ।।

को पिता?

(यो)

1. वट्ट-सुवट्ट-सुसण्ठित-गीवो,
2. सीहहनु मिगराज-सरीरो,
3. कञ्चन-सुच्छवि उत्तम-वण्णो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)

(भावार्थ-ये जिनकी ग्रीवा गोलाकार है, सुगठित है, जिनकी ठोढ़ी मृगराज के समान है तथा जिनका शरीर मृगराज के समान है, जिनका वर्ण सुवर्ण (स्वर्ण) के समान आकर्षक है, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 6 ।।)

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को पिता? (कौन पिता?)

सिनिद्ध-सुगम्भीर-मञ्जु-सुघोसो,
हिंगुलबद्ध-सुरत्त-सुजिव्हो।
वीसति वीसति सेत-सुदन्तो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 7 ।।

को पिता?

(यो)

1. सिनिद्ध-सुगम्भीर-मञ्जु-सुघोसो,
2. हिंगुलबद्ध-सुरत्त-सुजिव्हो,
3. वीसति वीसति सेत-सुदन्तो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)।

(भावार्थ-जिनकी वाणी स्निग्ध है, गम्भीर है, सुन्दर है; जिनकी जिह्ना सिंदूर के समान रक्तवर्ण है, जिनके मुख में श्वेत वर्ण के बीस-बीस दांत हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 7 ।।)

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को पिता?

अञ्जन-वण्ण-सुनील-सुकेसो,
कञ्चन-पट्ट-विसुद्ध-नलाटो।
ओसधि-पण्डर-सुद्ध-सुवण्णो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 8 ।।

को पिता?

(यो)

1. अञ्जन-वण्ण-सुनील-सुकेसो,
2. कञ्चन-पट्ट-विसुद्ध-नलाटो,
3. ओसधि-पण्डर-सुद्ध-सुवण्णो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)।

(भावार्थ-जिनके केस सुरमे के समान सुनील वर्ण हैं, ये जिनका ललाट कंचन (सोने) के समान दीप्त है, जिनके भौंहों के बीच के बाल औषधि-तारे के समान शुभ्र (हल्के पीले) वर्ण है, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 8 ।।)

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को पिता? (कौन पिता?)

गच्छति नीलपथे विय चन्दो,
तारगणा-परिवेठित-रूपो।
सावक-मज्झगतो समणिन्दो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 9 ।।

को पिता?

(यो)

1. गच्छति नीलपथे विय चन्दो,
2. तारगणा-परिवेठित-रूपो,
3. सावक-मज्झगतो समणिन्दो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)

(भावार्थ-जो आकाश में तारागण से घिरे चंद्रमा के समान बढ़े चले जा रहे हैं; जो श्रमणों में श्रेष्ठ (श्रमणेन्द्र) भिक्खुओं से उसी प्रकार घिरे हुए हैं-जैसे चन्द्रमा तारों से। वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 9 ।। )

— भवतु सब्ब अङ्गलं —

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