HomeBuddha Dhammaपगोड़ा क्या होता है और इसकी संरचना की जानकारी

पगोड़ा क्या होता है और इसकी संरचना की जानकारी

अपने व्यापक आधार से पगोडा बहुत ही सुन्दर ढंग से परिष्कृत तरीके से ऊपर की ओर बढ़ता है और एक नुकीले हीरे में शिखर पर संपूर्ण होता है.  इसी तरह धम्म के मार्ग पर प्रगति करते हुए धीरे-धीरे अशुद्धियों का उन्मूलन होता है. पहले-पहले सारे स्थूल सङ्घार निकलते हैं और साधना करते-करते सारे सूक्ष्म संस्कारों का उन्मूलन (निर्जरा) होता है. अनुसय क्लेस दूर करने के साथ पथ का अंत और परम सत्य प्राप्ति होती है और इससे दुखों का अंत होता है.

पगोडा का व्यापक आधार इस दृष्टि से लिया जा सकता हैं की जहाँ अधिकतम मानवजाति अविज्जा के कारण दुक्खों में उलझी है.

ऊपर की ओर बढ़ते हुए, अगले तीन खंड दुक्ख के कारण का प्रतिनिधित्व करते हैं: लोभ, द्वेष, मोह.

अगले भाग में, अष्टकोणीय छतें आर्य अष्टांगिक मार्ग पर एक साधक के शुरुआती चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं और दुःख के इन तीन कारणों की शुरुआती स्वभाव की समझदारी प्राप्त होती हुई दर्शाता है.  यहाँ साधक इस बात की सराहना करने लगता है कि इस दुःख से मुक्ति का मार्ग है.

अगला चरण पगोडा के आकार का एक प्रमुख हिस्सा है. इस स्तर पर एक साधक सक्रिय रूप से दुःख से मुक्ति के मार्ग पर नियमित अभ्यास करता है. इसे आमतौर पर घंटी के रूप में जाना जाता है, इस आकार को एक उल्टे भिक्षा पात्र के रूप में लिया जाता है. यह एक शक्तिशाली प्रतीक है.

यहाँ उल्टे पात्र का आकार धम्म अभ्यास के उस चरण का प्रतिनिधित्व करता है जहाँ कोई अब मन को असंयमित रखने और नई पीड़ा पैदा करने से इंकार करता है, अर्थात नए सङ्घार नहीं बनाता है. विपस्सना के अभ्यास से प्रिय और अप्रिय संवेदना के होने पर अंधी प्रतिक्रिया की पुरानी आदत को बदलने का प्रयास करता है. इसे पूरा करने के लिए, साधक वीर्य जगाता है और शारीरिक संवेदनाओं के स्तर पर निरंतरता से अनित्यता को समझने का प्रयास करता है.  इस अवस्था में उल्टा पात्र, साधक के आडम्बर भोगने को छोड़कर राग और द्वेष से बाहर निकलने के दृढ़ संकल्प का प्रतिनिधित्व है.

उल्टे भिक्षा पात्र को तीन गोलाकार से घेरा हुआ है. यह तीन गोलाकार, आर्य अष्टांगिक मार्ग की तीन बुनियादों को दर्शाता है, यह तीन स्तम्भ हैं- शील, समाधी और प्रज्ञा. ये तीन गोलाकार और उल्टे हुए कटोरे एक मजबूत आधार के साथ पथ पर चलने का प्रतिनिधित्व करते हैं. शील, समाधी और प्रज्ञा अगले उच्च चरण के लिए आधार हैं.

यहां सात घेरे बनाये हुए हैं जो की विशुद्धिकरण के सात चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह खंड, विपस्सना साधना में आगे बढ़ते हुए मन की कुल विशुद्धि के सात चरणों का प्रतिनिधित्व करतें हैं.

ऊपर की ओर बढ़ते हुए, अगला तत्व कमल खंड है, इसे दो भागों में विभाजित किया गया है. निचला चरण यह दर्शाता है कि एक साधक अभी भी नए सङ्घार बनाने में सक्षम है, लेकिन ऊपरी हिस्से में यह संभव नहीं है. इस प्रकार कमल के हार के रूप में यहाँ निर्वाण के साक्षात्कार को एक महत्वपूर्ण संक्रमण में दर्शाया गया है, जो की इस संसार से परे की अवस्था है.

श्रोतापन्न के प्रारंभिक अनुभव के बाद साधक इस संसार (कामुक क्षेत्र) में लौट आता है, लेकिन अब कोई भी नए सङ्घार का निर्माण करने में सक्षम नहीं है जिसके परिणामस्वरूप उसका नीचे के लोकों में पुनर्जन्म हो सके.  बिलकुल एक कमल के समान, जो की कीचड़ में खिलने पर भी उस कीचड़ से अछूता रहता है. इसी तरह एक विपस्सना साधक संसार में रहकर भी, दृढ़तापूर्वक नए सङ्घार न बनाते हुए सांसारिक जंजालो से दूर रहता है.

इसके बाद हम प्रमुख घुमावदार बेलनाकार रूप की ओर बढ़ते हैं, जिसे केले की कली के रूप में जाना जाता है. एक केले का पेड़ अपने जीवनकाल में केवल एक बार फल देता है. यह खंड उस चरण का प्रतिनिधित्व करता है जहां एक साधक ध्यान की उच्च अवस्था से गुजरता है और उस अवस्था तक पहुंच जाता है, जहां सभी सङ्घार ख़त्म हो चुके हैं और वो कुछ नया बना नहीं रहा है. श्रमण अभी ध्यान की अंतिम अवस्था को प्राप्त कर चुके हैं.  वह अभी एक अरहंत हो गये हैं और उनका दोबारा किसी भी लोक में जन्म लेना साध्य नहीं.

मानव अनुभव के इस उच्च स्थिति के प्रति श्रद्धा दर्शाते हुए सजावटी छत्र के द्वारा दिखाया गया है और इस विशाल भवन की चोटी पर हीरा रखा गया है, जो यह दर्शाता है की अब सारे दोषों का उन्मूलन होने पर परम सत्य का साक्षात्कार, पूर्ण निर्वाण की अवस्था है.

Must Read

spot_img