पंचशील
श्रेष्ठ होना है मनुज तो, शील सब पालन करो ।
दुख नहीं जीवन बचेगा, धैर्य तुम धारण करो ।।
झूँठ हिंसा वासना के, कुछ निकट रहना नहीं ।
मत करो चोरी नशा तुम, दुख रहे बचना नहीं ।।
व्यस्त हिंसा मे रहे जो, मिल उन्हें समझाइये ।
डाकु अंगुलिमाल गाथा, सब उन्हें बतलाइये ।।
जान कुदरत ने दिया है, कोइ होए शक नहीं ।
दे नहीं सकते जो सांसें, छीनने का हक नहीं ।।
पाप हो जग चोरि करना, हम सभी पढते रहे ।
पर सजा पाते वही जग, कम बहुत करते रहे ।।
काम छुप करते रहें जो, कम नहीं अपराध है ।
खा रहे हक गैर का जो, अति खराबी साध है ।।
वासना सागर उफनता, फिर लहर उठती रहे ।
है कुदरती चीज जिससे, सृष्टि जो चलती रहे ।।
नारि नर संसार में हों, सब नियम पालन करें ।
मान रिश्तों का रखें सब, भावना उज्वल करें ।।
जग जो मिथ्यावादी रहते, अन्त में पछता रहें ।
हाथ खाली जब धरा को, छोड़ कर वे जा रहें ।।
सब धरा के ही मुसाफिर, है यहाँ टिकना नहीं ।
झूठ में सत्ता जगत की, पर तुम्हें बिकना नहीं ।।
हो नशा सबसे बुरा जग, सूर दिखना ही सभी ।
भूल रिश्ते सब जगत के, भाव खाये ही सभी ।।
हो दुराचारी अधिकता, गलतियाँ करता फिरे ।
यदि नहीं सुधरा जगत में, एंड़ियाँ घिसके मरे ।।
(रचनाकार: बुद्ध प्रकाश बौद्ध)