HomeBuddha Dhammaशारीरिक आकर्षण – एक प्रेरक बोधकथा

शारीरिक आकर्षण – एक प्रेरक बोधकथा

इस संसार में आकर्षण के कई प्रकार होते हैं.  किसी को व्यक्ति का आकर्षण तो किसी को पशु-पक्षियों का आकर्षण तो किसी को सजीव का तो किसी को निर्जीव वस्तुओं का आकर्षण होता हैं.

अर्थात इस संसार में हर तरह का आकर्षण मौजूद हैं.  किसी जीव/वस्तु और अपनी अधूरी इच्छाओं का निरंतर चिन्तन मनन करने से इन सभी विषयों पर आकर्षण बढ़ जाता हैं.

आकर्षण क्यों बढ़ जाता हैं?

क्योंकि हमारे मन और तन पर स्वयं का नियंत्रण नहीं है. मन में विभिन्न तरह के जो नकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं, ऐसे विचारों को “बुद्धिज़्म” में ‘मार’ कहा गया हैं.

पौराणिक कथाओं में मार को “मोहिनी” कहा गया हैं. जब यह मोहिनी किसी व्यक्ति विशेष पर हावी हो जातीं हैं तो व्यक्ति अपने लक्ष्य से विचलित हो जाता हैं और यह सब सिर्फ़ आकर्षण के कारण होता हैं.

सबसे घातक और नुकसानदेह आकर्षण य़दि कुछ हैं तो वह है शारीरिक आकर्षण.  तथागत बुद्ध ने अपने जीवन में शारीरिक आकर्षण पर अनेक प्रवचन दिए.

बुद्ध कहते हैं, सब अनित्य हैं. सब नष्ट होने वाला हैं, आज़ का सुन्दर शरीर यह कल का कुरूप शरीर होगा, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को बाल्यावस्था/ज़वानी और‌ बुढ़ापे से गुजरना हैं.

आज़ जो हैं, वह कल नहीं और कल जो हैं, वह आज़ नहीं.

इसलिए सब परिवर्तनशील हैं, आकर्षण भी सिर्फ़ क्षणिक समयों का ही होता हैं. जिसने स्वयं को जीत लिया, उस पर किसी भी आकर्षण का असर नहीं होता है. वर्तमान में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं हैं, जो आकर्षण मुक्त हैं.

छोटे-छोटे बच्चों को अपने माता-पिता का आकर्षण, बडे-बुजुर्गों को अपने सहयोगियों का आकर्षण. किसी को भूख का आकर्षण, किसी को पढ़ाई, किसी को नौकरी, खेलकूद, किसी को लिखने का तो किसी को अपनी धन-दौलत, संपत्ति का आकर्षण मतलब हर तरह के आकर्षण से आज़ का व्यक्ति पीड़ित हैं.

“बोधिसत्व” की कसौटी पर खरे उतरे लोग आकर्षण मुक्त होते हैं, क्योंकि उनका मार्ग यह ‘मध्यम मार्ग’ होता हैं. अगर हम किसी विषय पर लेख लिखते हैं तों हर तरफ़ से तारीफ़ की बौछार शुरू होती हैं, मन प्रसन्न हो जाता हैं और तारीफ़ करने वालों के तरफ़ मन आकर्षित हो जाता हैं. किन्तु मैंने किसी विषय पर लिखना नहीं चाहिए. बुद्धिज़्म के विषय पर तों बिल्कुल भी नहीं.

इसके लिए अगर कोई यंत्रणा काम पर लगतीं हैं तों मन अत्यन्त दुःखी हो जाता हैं और लिखने का आकर्षण कम होता हैं. मतलब मीठे बोलने वाले लोगों के बीच में भी एक तीखापन छुपा होता हैं. यहीं इससे सीख मिलतीं हैं.  

किन्तु जब आप किसी की प्रशंसा से, किसी की निन्दा से, किसी षडयंत्र से बिल्कुल भी नहीं डगमगाते और अपने लक्ष्य की तरफ़ निरंतर चलते रहते हैं? तों निश्चित रूप से जीत आपकी होती हैं. किन्तु एक बात याद रहें कि हमें जीतने से पहले ‘स्वयं का मूल्य’ पता होना चाहिए. क्योंकि अक्सर लोग किसी आकर्षण के कारण स्वयं का मूल्य खो देते हैं. जब प्रत्येक व्यक्ति स्वयं का मूल्य जानेगा, अपने जीवन में तथागत बुद्ध के उपदेश और उनकी शिक्षाओं को सही मायने में उतारेगा तभी वह व्यक्ति “बौद्ध उपासक” की कसौटी पर खरा उतरेगा.

इसलिए प्रत्येक बौद्ध अनुयायियों को तथागत बुद्ध के उपदेशों को अपने जीवन में उतरना चाहिए, तभी जाकर प्रत्येक व्यक्ति की हर तरह की पीड़ा और हर तरह के दुःख से मुक्ति संभव हैं.

(प्रस्तुति: रमेश गौतम, धम्म प्रचारक )

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