HomeBuddha Dhammaबौद्धों में "सफेद वस्त्र" पहनने का प्रचलन क्यों है?

बौद्धों में “सफेद वस्त्र” पहनने का प्रचलन क्यों है?

किसी भी संस्कार, उत्सव, समारोह एवं आयोजन में भाग लेते समय प्राय बौद्धों में सफेद वस्त्र पहनने का प्रचलन है.
ऐसा क्यों है? आओ आज इसी पर कुछ चर्चा परिचर्चा करें.

जैसा आपको विदित है. भगवान बुद्ध के वचन विनयानाम्बुद्धसासनस्स आयु-विनय बुद्ध शासन की आयु है अर्थात जब तक विनय रहेगा तब तक बुद्ध शासन रहेगा.

विनय का सरल-सा अर्थ है अनुशासन यानी कोड आफ कंडक्ट. विनय पिटक को बौद्धों का संविधान कहा जा सकता है. भारत से बुद्ध धम्म विदा क्यों हुआ? क्योंकि विनय विदा हो गया अथवा बौद्ध विरोधियों द्वारा विनय को विकृत या कि अपभ्रंशित कर दिया गया.
भगवान ने भिक्खु-भिक्खुनियों के लिए कासाय रंग का चीवर निर्धारित किया और गृहस्थ उपासक-उपासिकाओं के लिए सफेद परिधान निर्धारित किए.

सकल तिपिटक में बौद्ध उपासक-उपासिकाओं के लिए बार-बार श्वेतवस्त्रधारी संघ का सम्बोधन पढ़ने को मिलता है. वास्तव में एक-सी वेशभूषा का मन को शान्त करने में मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है.

उदाहरण के लिए, किसी विद्यालय में प्रार्थना के समय सारे छात्र-छात्राएँ एक-सी वेशभूषा, यानी यूनिफॉर्म में खड़े हों, लेकिन उनमें से कोई एक छात्र या छात्रा अन्यथा वेषभूषा में हो तो बार-बार निगाह अपने आप वहीं जाती है. जैसे वह विसंगति मन में व्यवधान पैदा करती है.

यदि ऐसी विसंगत वेशभूषा में दो छात्र या छात्राएँ हों तो निगाह दो तरफ बिखरती है. यदि ऐसे तीन छात्र या छात्राएँ असंगत वेशभूषा में हों तो जैसे निगाह तीन टुकड़ों में बिखर जाती है.

वेशभूषा की एकरूपता, यूनिफॉर्मिटी, मन को बिखरने नहीं देती, मन को एकाग्र करने में सहायक होती है. इसलिए सैनिकों की भी एक-सी वेशभूषा होती है. भगवान बुद्ध को संसार का सबसे बड़ा मनोवैज्ञानिक कहा जाता है.

उपासक-उपासिकाओं के लिए सफेद वस्त्र निर्धारित करने के पीछे भी एक गहरा मनोविज्ञान है. जिस दिन व्यक्ति सफेद वस्त्र पहनता है उस दिन वह अपने वस्त्रों के प्रति कुछ ज्यादा ही सजग रहता है- कहीं दाग़ न लग जाए!

ध्यान-साधना के द्वारा यही सजगता जब अन्तर्मुखी हो जाती है. तब व्यक्ति अपने चित्त के प्रति सजग हो जाता है. किसी अकुशल विचार से मेरा मन मलिन न हो जाए, मेरे मन में दाग न लग जाए, चित्त मैला न हो जाए.

इसलिए भगवान बुद्ध ने गृहस्थ उपासक-उपासिकाओं के लिए सफेद परिधान धारण करने का विनय बनाया. लेकिन, जब इस देश में बुद्ध धम्म को विकृत करने का अभियान चला तो सफेद वस्त्र विधवा का परिधान निर्धारित कर दिया गया. इसी को बोधिसत्व बाबासाहेब ने क्रांति-प्रतिक्रांति कहा है.

उत्सव व शान्ति के सफेद रंग को शोक का रंग प्रचारित कर दिया गया. किसी समय बौद्ध समाजों में शादी का जामा-जोड़ा सफेद हुआ करता था, जो कि बहुत-से समाजों में आज भी प्रचलन में है कि शादी का जोड़ा-जामा सफेद होता है. शादी के समस्त संस्कार सफेद जोड़े-जामे में सम्पन्न होते हैं. हेला, बंसफोड़, धानुक, धनकार, धनुवंशी, बिनहे, कठेरिया, बसोर, बहेलिया, रजक, लालबेग, काछी, कुशवाहा, शाक्य, दोहरे, अहिरवार आदि जाति-बिरादरियों में शादी के समय बारात के पहले वर-वधु के सफेद जोड़े-जामे का आदान-प्रदान होता है.

इन समाजों के किसी समय बौद्ध होने का यह बहुत बड़ा प्रमाण है. शादी के समय ये रंग बिरंगे कपड़ों का चलन अभी दो-तीन सौ वर्षों में शुरू हुआ है. गुलामी के दौर में.

ऐतिहासिक तथ्य यह है कि बोधिसत्व बाबासाहेब ने जब अपने लाखों अनुयायियों के साथ बुद्ध धम्म अंगीकार किया तब भी सब दीक्षार्थियों ने सफेद परिधान धारण किए थे, नागपुर एवं चन्द्रपुर में, सन 1956 में, स्वयं बोधिसत्व बाबासाहेब भी सफेद परिधानों में थे.
बौद्ध देशों में यह विनय आज भी जीवित है. गृहस्थ उपासक-उपासिकाएं धम्म के आयोजनों में सफेद वस्त्रों में सम्मिलित होते हैं.

गवान बुद्ध का यह विनय इतना लोकप्रिय हुआ कि ईसाई समाज में भी शादी के समय वधु सफेद गाउन धारण करती है. ईद की नमाज़ के दिन मुस्लिम भाई अधिकांशतः सफेद पोशाक में रहते हैं. आधुनिक काल में प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के अनुयायियों का परिधान भी सफेद है. हमारे सिक्ख भाई गुरुद्वारों में प्रायः सफेद परिधानों में जाते हैं.

सफेद रंग के साथ सबसे बड़ा विज्ञान यह है कि यह रंग नकारात्मक ऊर्जाओं को, निगेटिव एनर्जीस को तीव्रता से वापस ढकेल देता है और सकारात्मक ऊर्जाओं को सोख लेता है. नकारात्मक ऊर्जाएं यानी दृश्य-अदृश्य सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाएं और सकारात्मक ऊर्जाएं, पॉजिटिव एनर्जीस, यानी दृश्य-अदृश्य सभी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जाएं.

आप स्वयं सफेद वस्त्र पहने वाले दिन अपनी मनोदशा पर गौर कीजिए. आप पाएंगे कि आप अकारण ख़ुश और सकारात्मक हैं. उपोसथ के दिन उपासक-उपासिकाओं को भगवान के दिए विनय में अर्थात सफेद परिधानों में रहना चाहिए. यह भी उपोसथ व्रत का एक अंग है तथा सफेद वस्त्रों से जुड़े अंधविश्वास को तोड़ने का एक साहसी तरीका भी है. जिन परिधानों में बुद्ध वंदना की जाए वे परिधान हर अवस्था मे मंगल होते हैं.

(प्रस्तुति: रमेश गौतम , धम्म प्रचारक)

— भवत सब्ब मङ्गलं —

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