एवं मे सुतं-
एकं समयं भगवा सावित्थियं विहरति जेतवने अनाथ-पिण्डिकस्स आरामे। अथ खो अञ्ञतरा देवता अभिक्कन्ताय रत्तिया अभि-क्कन्तवण्णा केवलकप्पं जेतवनं ओभासेत्वा येन भगवा तेनुपसङ्कमि उपसङ्कमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं अट्ठासि। एकमन्तं ठिता खो सा देवता भगवन्तं अज्झभासि-
बहु देवा मनुस्सा च, मङ्गलानि अचिन्तयुं।
आकङ्खमाना सोत्थानं, ब्रुहि मङ्गलमुत्तमं॥1॥
असेवना च बालानं, पण्डितानञ्च सेवना।
पूजा च पूजनीयानं, एतं मङ्गलमुत्तमं॥2॥
पतिरूप-देसवासो च, पुब्बे च कतपुञ्ञता।
अत्तसम्मापणिधि च, एतं मङ्गलमुत्तमं॥3॥
बाहुसच्चञ्च सिप्पञ्च, विनयो च सुसिक्खितो।
सुभासिता च या वाचा, एतं मङ्गलमुत्तमं॥4॥
माता-पितु-उपट्ठानं, पुत्तदारस्स सङ्गहो।
अनाकुला च कम्मन्ता, एतं मङ्गलमुत्तमं॥5॥
दानञ्च धम्मचरिया च, ञातकानं च सङ्गहो।
अनवज्जानि कम्मानि, एतं मङ्गलमुत्तमं॥6॥
आरति विरति पापा, मज्जपाना च संयमो।
अप्पमादो च धम्मेसु, एतं मङ्गलमुत्तमं॥7॥
गारवो च निवातो च, सन्तुट्ठि च कतञ्ञुता।
कालेन धम्मस्सवणं, एतं मङ्गलमुत्तमं॥8॥
खन्ति च सोवचस्सता, समणानञ्च दस्सनं।
कालेन धम्म-साकच्छा, एतं मङ्गलमुत्तमं॥9॥
तपो च ब्रह्मचरियञ्च, अरियस्च्चान-दस्सनं।
निब्बान-सच्छिकिरिया च, एतं मङ्गलमुत्तमं॥10॥
फुट्ठस्स लोकधम्मेहि, चित्तं यस्स न कम्पति।
असोकं विरजं खेमं, एतं मङ्गलमुत्तमं॥11॥
एतादिसानि कत्वान, सब्बत्थमपराजिता।
सब्बत्थ सोत्थिं गच्छन्ति, तं तेसं मङ्गमुत्त’न्ति॥12॥
महामङ्गल-सुत्त हिंदी में अर्थ और अनुवाद
ऐसा मैंने सुना-
एक समय भगवान बुद्ध सावत्थि (श्रावस्ति) में अनाथपिण्डक द्वारा निर्मित जेतवनाराम में विहार कर रहे थे. उस समय, रात्री के अंतिम पहर में एक देव अपनी दीप्ति से समस्त जेतवन को आलोकित करते हुए भगवान के पास आया और उन्हे प्रणाम कर एक ओर खड़ा हो गया. इस प्रकार खड़े होकर वह एक गाथा बोला-
मंगल की इच्छा करते हुए बहुत से देव एवं मनुष्यों ने मंगल कार्यो पर विचार किया है. आप बतावें कि उत्तम मंगल कार्य क्या हैं. 1
तथागत ने कहा – मूर्खों की संगत नहीं करना, विद्वानों की संगत करना एवं पूजनीय व्यक्तियों की पूजा (सम्मान) करना, यह उत्तम मंगल हैं. 2
उचित स्थान पर निवास करना, पुण्य कार्यों का संचय करना तथा सम्यक स्व-निरीक्षण यह उत्तम मंगल हैं. 3
बहुश्रुत होना, शिल्पादी कलाएं सीखना, शिष्ट व्यवहार होना, श्रेष्ठ शिक्षा लेना, सुभाषित युक्त वाणी होना यह उत्तम मंगल हैं. 4
माता-पिता की सेवा करना, बच्चों व पत्नी का पालन-पोषण करना, कोई गलत कार्य न करना यह उत्तम मंगल हैं. 5
दान देना, धम्म का आचरण करना, बंधु-बांधवों का आदर-सत्कार करना, दोष रहित कार्य करना यह उत्तम मंगल हैं. 6
तन-मन व वाणी के पापों को त्यागना, मद्यपान न करना, आलस्य रहित हो धम्म कार्यों पर तत्पर रहना यह उत्तम मंगल हैं. 7
प्रतिष्ठा पाना, विनम्र होना, संतुष्ठ रहना, कृतज्ञ होना एवं उचित समय पर धम्म सुनना उत्तम मंगल हैं. 8
क्षमाशील होना, आज्ञाकारी होना, श्रमणों के दर्शन करना व उचित समय पर धम्म-चर्चा करना यह उत्तम मंगल हैं. 9
तप करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, चार धम्म-सत्य का दर्शन एवं समझना, निर्वाण का साक्षात्कार करना यह उत्तम मंगल हैं. 10
जिसका चित्त प्रचलित लोक धर्मों (लोक स्वभाव) (लाभ-हानि, यश-अपयश, निंदा-प्रशंसा, सुख-दुख) से विचलित नहीं होता वह शोकरहित, निर्मल एवं निर्भय रहता है यह उत्तम मंगल हैं. 11
इस प्रकार के कार्य करके सर्वत्र अपराजित हो लोग कल्याण प्राप्त करते हैं. यह कार्य सभी मनुष्यों के लिए उत्तम मंगलदायी हैं. 12
— भवतु सब्ब मङ्गलं —