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पालि भाषा क्यों सीखनी चाहिए?

हमें  पालि भाषा क्यों सीखनी चाहिए?

यह एक बड़ा सवाल है और अक्सर बौद्ध अनुयायियों के मन में यह सवाला आता है कि क्या बौद्धों को पालि भाषा सीखनी चाहिए? क्या बुद्ध को मानने वाले लोगों को पालि भाषा आनी चाहिए?

इस सवाल का जवाब देने के लिए आपके सामने पेश हैं कुछ बातें जिनके आधार पर आप खुद फैंसला करें कि क्या हमें पालि भाषा सीखनी चाहिए?

पालि भाषा क्यों सीखनी चाहिए?

पालि बुद्ध की भाषा है. पालि धम्म की भाषा है. पालि हमें एकता के सूत्र में बांधती है. पालि हमें धम्म का पाठ पढ़ाती है. पालि हम में धम्म का एहसास है.

पाली ति-पिटक की भाषा है. सारे बौद्ध-ग्रंथ पालि में हैं. पालि जाने बिना ति-पिटक पढ़ा नहीं जा सकता. पढ़े बिना इसमें शोध व चिंतन किया नहीं जा सकता. क्या आज हमारे युवाओं को ति-पिटक ग्रंथों पर शोध नहीं करना चाहिए?

अगर गीता और मानस पर नए-नए शोध प्रबन्ध लिखे जाते हैं तो ति-पिटक ग्रंथों पर शोध-प्रबन्ध क्यों नहीं लिखे जाना चाहिए?

शोध-प्रबन्ध लिखने से धम्म के नए-नए आयाम खुलेंगे. हमारे पथ-प्रदर्शक बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने पालि सीखकर ही तो ‘बुद्धा एण्ड धम्मा’ लिखा था. पालि पढ़े बिना क्या ऐसा कालजयी ग्रंथ लिखना संभव था? 

असोक-काल में पालि लोक-भाषा थी. असोक-काल में पालि राष्ट्र-भाषा थी. क्या यह जानने की आवश्यकता नहीं है कि असोक के समय पालि राष्ट्र-भाषा क्यों थी?

क्योंकि, असोक बुद्ध की तरह धम्म का प्रचार पालि में चाहते थे. धम्म ही पालि है. पालि ही धम्म है. और इसलिए असोक ने पालि को राष्ट्र-भाषा के रूप में स्वीकार किया.   

असोक के सारे सिला-लेख पालि में हैं. जब असोक स्वयं अपने सिला-लेखों में लिखवाता है कि यह ‘धम्म-लिपि’ है तो फिर ‘यह ‘ब्राहमी-लिपि’ क्यों और कैसे हो गई?

बुद्ध-वचनों के अर्थ का अनर्थ ब्राह्मण अपने वर्ग-हित के लिए किस प्रकार करते हैं, असोक अच्छी तरह जानते थे. उसे स्वयं हजारों भिक्खुओं के प्राण-दंड का, अनजाने में भागीदार होना पड़ा था.
क्या बुद्ध की देशना ऐसी हो सकती है कि एक तरफ तो वह ‘आत्मा’ को नकार दे और दूसरी तरफ पुनर्जन्म भी मान ले? इतिहास गवाह है कि इस तरह की दो मुंही बातें ब्राह्मण अपने ‘भगवानों’ से कराते रहे हैं.

असोक के सिला-लेख में साफ-साफ लिखा है कि यह धम्म-लिपि है. फिर, यह ‘ब्राहमी-लिपि’ कब और कैसे हो गई? क्या हमारे लोगों को यह जानने की आवश्यकता नहीं है? और अगर हमारे लोग, पालि नहीं सीखेंगे तो ऐसा होना ही है.

असोक के सिला-लेखों को पढ़ते हमें आना चाहिए. हमें पढ़ते इसलिए भी आना चाहिए क्योंकि, इन सिला-लेखों में बुद्ध-वचन हैं. अंग्रेजों ने क्या पढ़ा, अथवा हमें क्या पढ़ाना चाहा, क्या हमें इसकी जांच नहीं करनी चाहिए? और, बिना पालि सीखें यह कैसे संभव है?

धम्म प्रचार का कार्य असोक पालि में करता है. राजकीय मुद्रा का एक बड़ा भाग वह पालि के प्रचार-प्रसार पर खर्च करता है.

पालि हमें इसलिए भी सीखनी चाहिए क्योंकि, पालि हमारे संस्कारों  की भाषा है. पालि हमारे आचार और विचारों की भाषा है. हमारे यहां, बच्चे को होश में आते ही उसे जो संस्कार दिए जाते हैं, वे पालि में होते हैं.

क्योंकि, हमारे घरों में, बुद्ध विहारों में बुद्ध-वन्दना पालि में होती है. बोधि-पूजा, चैत्य-पूजा आदि की सारी गाथाएं पालि में हैं. दैनिक सुत्त-पठन पालि में होता है.

पालि भाषा सीखने से क्या लाभ होगा?

पालि सिर्फ भाषा मात्र नही है यह वो रास्ता है जो आपको इतिहास से बतलाने का सुअवसर देता है. अगर हिन्दी, मराठी अथवा अंग्रेजी की तरह पालि भी हम पढ़ना-लिखना सीख लें तो-

  • पालि जानने वालों की संख्या में इजाफा होगा. लोकतंत्र में सारी योजनाएं संख्या के आधार पर होती है. सरकार, पालि के विकास पर ध्यान देगी. पालि, तीसरी भाषा के रूप में स्कूल-कॉलेजों में पढ़ायी जा सकेगी. पालि में रोजगार के अवसर खुलेंगे.
  • बुद्ध-वन्दना की गाथाएं और सुत्त हम ठीक से समझ पाएंगे. हमारी विरासत, ति-पिटक ग्रंथों की ओर लोगों का ध्यान जाएगा. इनके अनुवाद और पठन-पाठन पर शोध-परक काम होगा. लोग अपनी-अपनी प्रादेशिक भाषाओं में इनका अनुवाद करेंगे.
  • भारत को बौद्धमय बनाने में मदद मिलेगी.

पालि सीखने के लिए क्या करना चाहिए?

पालि दुनिया में मौजूद अन्य भाषाओं की तरह एक भाषा है. जिस तरह हम अन्य भाषाओं को सीखने का प्रयत्न करते हैं. ठीक वही काम हम पालि सीखने के लिए कर सकते हैं. आजकल तो कॉलेजों में भी पालि भाषा उपलब्ध हो चुकी है. इसलिए, पालि साहित्य में बी ए, एम ए, सर्टिफिकेट कोर्स, डिप्लोमा आदि की पढा‌ई करके पालि सीखी जा सकती है.

ऑनलाइन भी पालि सीखने के विभिन्न साधन उपलब्ध है. आप अंग्रेजी माध्यम से पालि सीखना चाहते हैं तो आपको दर्जनों वेब पोर्टल मिल जाएंगे. जो आपको मुफ्त में पालि भाषा सिखा सकते हैं.

हिंदी, मराठी या अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से पालि सीखने के लिए अभी ज्यादा विकल्प इंटरनेट पर मौजूद नही हो पाएं है. हम धम्मज्ञान पोर्टल के माध्यम से पालि सिखाने का एक छोटा सा प्रयास कर रहे हैं.

अंत में आपसे एक ही बात कहेंगे कि अपने घर की दीवार पर लिखलों कि ‘मुझे पालि भाषा सीखनी है’.

— भवत सब्ब मङ्गलं —

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