सब्ब पापस्स अकरण, कुसलस्स उपसंपदा।
सचित्तपरियोदपनं, एतं बुद्धान सासनं॥1॥
धम्मं चरे सुचरितं, न तं दुच्चरितं चरे।
धम्मचारी सुखं सेति, अस्मिं लोके परम्हिच॥2॥
न तावता धम्मधरो, यावता बहु भासति।
यो च अप्पम्पि सुत्वान, धम्मं कायेन पस्सति।
स वे धम्मधरो होति, यो धम्मं नप्पमज्जति॥3॥
नत्थि मे सरणं अञ्ञं, बुद्धो मे सरणं वरं।
एतेन सच्चवज्जेन होतु मे जयमङ्गलं॥4॥
नत्थि मे सरणं अञ्ञं, धम्मो मे सरणं वरं।
एतेन सच्चवज्जेन होतु मे जयमङ्गलं॥5॥
नत्थि मे सरणं अञ्ञं, संघो मे सरणं वरं।
एतेन सच्चवज्जेन होतु मे जयमङ्गलं॥6॥
नमो बुद्धाय
नमो धम्माय
नमो संघाय
साधु! साधु! साधु!
धम्मपालन गाथा हिंदी में अर्थ और अनुवाद
सभी पापों का न करना, कुशल कर्मों का करना तथा स्वयं के मन की परिशुद्धि करना, यही बुद्ध की शिक्षा है. 1
सुचरित धम्म का आचरण करें, दुराचार न करें, धम्मचारी इस लोक और परलोक दोनों जगह सुख पूर्वक सोता है. 2
बहुल बोलने से धम्मधर नही होता, प्रत्युत जो थोड़ा भी सुनकर धम्म को काय से साक्षात करता है और जो धम्म से प्रमाद नही करता, वही धम्मधर होता है. 3
मेरी अन्य कोई सरण नही है, केवल बुद्ध ही उत्तम सरण है. इस सत्य वचन से मेरी जय हो मंगल हो. 4
मेरी अन्य कोई सरण नही है, केवल धम्म ही उत्तम सरण है. इस सत्य वचन से मेरी जय हो मंगल हो. 5
मेरी अन्य कोई सरण नही है, केवल संघ ही उत्तम सरण है. इस सत्य वचन से मेरी जय और मंगल हो. 6
— भवतु सब्ब मङ्गलं —