श्रीलंका की भूमि से व्युत्पन्न अनागारिक धम्मपाल के बाद पूज्य भदन्त डा. के. श्री धम्मानन्द कदाचित दूसरे ऐसे थेरवादी बौद्ध व्यक्तित्व हुए हैं जिनका वैश्विक प्रभाव रहा है. पश्चिमी जगत को थेरवाद की मूल शिक्षाओं से अवगत कराने वाले विद्वान भिक्खुओं में पूज्य भन्ते जी सर्वोपरि गणनीय हैं. उनके सम्पादन में रोमन लिपि में तैयार महापरित्त पाठ के एक ग्रन्थ की भूमिका में उन्होंने परित्त सुत्तों के पाठ करने की विधि का बड़ा प्रमाणिक विवरण दिया है- अंग्रेज़ी शीर्षक से “How Should We Chant Suttas” जिसका यथारूप हिन्दी अनुवाद दे रहा हूँ, जो हर बौद्ध श्रद्धालु के लिए पठनीय व मननीय है।
डा. के. श्री धम्मानन्द लिखते हैं:
भगवान बुद्ध के द्वारा श्रद्धालुओं की मंगलमयता और रक्षण लिए पालि भाषा में उच्चारित कुछ सुत्तों का संगायन परित्त पाठ है. पूरे विश्व में प्रचलित बौद्धों की यह एक सुविदित प्रथा है, विशेषकर के थेरवादी बौद्ध देशों में, जहाँ पाठ के लिए पालि भाषा प्रयोग की जाती है.
आप श्रद्धा और विश्वास से बुद्ध की इन विशिष्ट देशनाओं का पाठ करते हैं. मात्र पाठ करने भर से आप कुछ प्रकार के आशीष पाएंगे भी. हम इन सुत्तों का पाठ आपको आशीष देने के लिए करते हैं. आप आशीष पाएंगे यदि आप अपने मन में श्रद्धा और विश्वास विकसित करें.
लेकिन यह आशीष वैसे ही है जैसे सिर दर्द होने पर दो गोली पैनाडाॅल ले लिया जाए. इस प्रकार के आशीषों की यह प्रकृति है, नैसर्गिकता है. मन को शान्त कर देने के लिए, मन से भय को कम करने के लिए और अपने मन में कुछ आत्मविश्वास पैदा करने के लिए. मुख्य रूप से शुरुआती चरण में यह आशीष बहुत महत्वपूर्ण है.
तथापि आपको इन देशनाओं अथवा सुत्तों का वास्तविक आशय समझना होगा. बुद्ध ने सिर्फ पाठ करने के लिए इनका सूत्रपात नहीं किया है. बिना कुछ किये सिर्फ इनका पाठक भर करना, यह बात तो निश्चित ही नहीं है. यह इस तरह होगा. जब आप बीमार होते हैं, तो आप डाक्टर या सिनसेह (चीनी चिकित्सक) के पास जाते हैं. वह आपको नुस्खा देता है, कई सारी दवाइयों के नाम लिखता है. आप घर वापस आते हैं और उन दवाइयों के नाम जपने लगते हैं, सोचते हैं कि दवाइयाँ खरीदे बिना, सेवन किये बिना आप बीमारी से ठीक हो जाएंगे. आप हर दिन बस दवाइयों के नामों का पाठ करते हैं.
सुत्तों का सिर्फ पाठ करना ठीक ऐसा ही है कि अपने मानसिक विकारों (बीमारियों) का उपचार किये बिना सिर्फ दवाइयों के नाम रटना. हमारे लिए कुछ करणीय भी है, कुछ बीजारोपण करना, विकसित करना, कुछ उन्मूलन करना, प्रगति करना. इन सुत्तों को बहुत लोग जानते हैं, लेकिन उन्हें यह मालूम नहीं है कि यह सिर्फ पाठ करने भर के लिए नहीं हैं. हम यूँ भी समझ सकते हैं कि स्वयं बुद्ध ने घर पर रहते हुए ही किस प्रकार एक बौद्ध जीवन जीना शुरु किया, तब उसे विकसित करते गये, करते गये जब तक निर्वाण को उपलब्ध नहीं हो गये, न कि समस्याओं से भागना.
हम एक उदाहरण लेते हैं: महामंगल सुत्त का.
मंगल का अर्थ होता है आशीष अथवा शुभ. एक देवता बुद्ध के पास आए और उनसे यह प्रश्न पूछा: “मंगलमयता के बारे में लोगों के भिन्न-भिन्न मत हैं. क्या आप हमें बताने की कृपा करेंगे कि वास्तव में मंगलमयता क्या है?”
तब बुद्ध इस मंगल सुत्त की देशना देना शुरू करते हैं और व्याख्या करते हैं कि वास्तविक या सर्वोच्च मंगलमयता क्या है. इस सुत्त में 38 मंगलकारक बातें सिर्फ पाठ भर करने के लिए नहीं हैं बल्कि अभ्यास भी करने के लिए हैं. तब इस सुत्त के पाठ से आप मंगलमयता पाते हैं, वास्तविक मंगलमयता, वास्तविक रक्षण.
बुद्ध वचनों की सत्यता की शक्ति का आह्वान करने लिए आप इन सुत्तों का श्रद्धा और विश्वास से पाठ कीजिये. उनके अर्थ को समझिये और उनको अभ्यास में लाने का प्रयास कीजिए. तब आप अंतिम मुक्ति निब्बान उपलब्ध करने के निमित्त मन में विश्वास रोपित करने के हेतु से नाना अमंगलों, दुर्भाग्योंं, उपद्रवों, बीमारियों और पापग्रहों के दुष्प्रभावों से सशक्त रक्षण व कवच निर्मित करने में समर्थ होते हैं.
(लेखक: राजेश चंद्रा)