HomeBuddha Dhammaगांधी के तीन बंदर: जानिए सच्चाई तीन बन्दर किसके गांधी के या...

गांधी के तीन बंदर: जानिए सच्चाई तीन बन्दर किसके गांधी के या बुद्ध के?

मेरे कार्यालय परिसर में आम का एक पेड़ है, अमरूद का भी एक पेड़ है. इस समय आम, अमरूद का मौसम तो नहीं है, लेकिन आम के पेड़ के सहारे भवन की छत पर से कुछ बन्दर पेड़ से नीचे उतर कर मेरे ऑफिस के द्वार पर आ जाते हैं. स्वाभाविक है कि चौकीदार, परिचर उन्हें छड़ी लेकर भगाने लगते हैं. एक दिन मैंने देख लिया, रोका और तुरन्त एक दर्जन केले मंगवाए, उन बन्दरों को खिलाएं…

फिर एक दिन बन्दर आ गये. अपने अनुचर से केले मंगाए, वो जब तक केले मेरे हाथ में देता, उसके हाथ से बन्दर ने केले छीन लिए और पेड़ पर चढ़ कर खाने लगा…

एक दिन क्या हुआ कि मेरे ऑफिस का दरवाजा खुला, मुझे लगा कि कोई मिलने आया है, लेकिन वह एक बन्दर था, आकर मेरी टेबल पर बैठ गया. मैंने उससे कहा- अभी खाने को कुछ नहीं है, बैठो तो मंगाऊँ…

इतनी बात सुनी, वह टेबल से उतरा, जितनी शराफत से दरवाजा खोल कर अन्दर आया था, वैसे ही शराफत से टेबल से नीचे उतर कर, दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया, पेड़ पर बैठ गया. मैंने फिर भी केले मंगा कर पेड़ के नीचे रख दिये, वह उठा कर ले गया.

जल्दी ही एक दिन फिर जब मैं ऑफिस आया तो देखा कि दो बन्दर मेरे ऑफिस के बाहर बैठे हैं. मैं ऑफिस में आ गया, तुरन्त केले मंगवाए, जब खिलाने के लिए मैं ऑफिस के बाहर आया तो देखा कि मात्र दो नहीं बल्कि बन्दरों का पूरा कुनबा था. मैंने तुरन्त दर्जन भर केले और मंगवाए, फिर वहीं अपने ऑफिस के आंगन में पूरे कुनबे को केले खिलाये…उस क्षण में बड़ी सुखद अनुभूति हो रही थी.

बन्दरों में छीनाझपटी मच गयी, एक को देने लगूँ, दूसरा लपक कर छीन ले, मेरी गोदी में चढ़ कर हक से उठा ले, मेरे हाथ से छीन ले…वो मुझसे निर्भय और मैं उनसे निर्भय…

एक मित्र ने पूरी वीडियो बना ली, एक ने मोबाइल में फोटो खींच लिए…

वो बन्दर मुझसे मित्रवत हो गये हैं. इसमें मेरी कोई विशेषता नहीं है, विशेषता बन्दरों की है कि वे हिंसक नहीं हैं, मित्रवत हैं…मैं उनसे नहीं डरता, वो मुझसे नहीं डरते…मैं उन्हें नहीं डराता, वो मुझे नहीं डराते…

मुझे उनके साथ मैत्री की अनुभूति और निर्भयता मात्र यह सोच कर होती रहती है कि जब भगवान बुद्ध द्वारा जंगल में वस्सावास किया गया था तो बन्दरों ने भगवान को शहद खिलाया था, हाथी ने केले खिलाए थे, पशु-पक्षियों ने वस्सावास की अवधि में भगवान को भोजनदान दिया था. बन्दरों ने भगवान को शरद पूर्णिमा के दिन शहद का भोजनदान दिया था. उस स्मृति में आज भी बौद्ध श्रद्धालु शरद पूर्णिमा के दिन संघ को शहद या खीर खिलाते हैं.

जब जंगल में वस्सावास किया था तब भगवान ने बन्दरों को सांकेतिक भाषा में उपदेश दिया था:

  1. मुँह पर हाथ रखा अर्थात बुरा मत बोलो
  2. कान पर हाथ रखा अर्थात बुरा मत सुनो
  3. आँख पर हाथ रखा अर्थात बुरा मत देखो

मात्र इन सीलों (शील) के पालन से वे पशुयोनि से मुक्त हो गये.

भगवान के जीवन की यह घटना भारत से यात्रा करते हुए चीन, कोरिया के रास्ते जापान तक पहुँच गयी और वहाँ के एक बुद्ध विहार में तीन बन्दरों के शिल्पांकन के रूप में अंकित हो गयी. वो तीन बन्दरों से गांधी जी प्रभावित हुए, तीन बन्दरों की मूर्ति वह जापान से भारत लाए और भारत में गाँधी जी के तीन बन्दरों के रूप में प्रसिद्ध हो गये. उन तीन बन्दरों के शिल्पांकन की उत्पत्ति भगवान बुद्ध के जीवन के वस्सावास से जुडी है.

‘गाँधी जी के तीन बन्दर’ भारतीय जनमानस में यह वाक्यांश एक मुहावरे की तरह लोकप्रिय है. वह तीन बन्दर बड़ा प्रतीक संदेश देते हैं- बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो, बुरा मत देखो. गाँधी जी के ये तीन बन्दरों के प्रतीक गाँधी जी की अपनी सर्जना नहीं है. ये तीन बन्दरों के प्रतीक गाँधी जी ने जापान के एक बुद्ध विहार से लिए, निक्को शहर के शिन्तो चैत्य से.

तीन बन्दरों के ये प्रतीक गाँधी जी ने बौद्ध दर्शन से लिए हैं. जापान के निक्को शहर के एक चैत्य की दीवारों पर ये तीन बन्दर मूर्तियों व आकृतियों के रूप में अंकित हैं. जैसे चीन में बुद्ध धम्म लाओत्से के ताओ के साथ समन्वित होकर विकसित हुआ, वैसे ही जापान में बुद्ध धम्म शिन्तो मत के साथ समन्वित होकर विकसित हुआ. ये तीन बन्दर जापान के ज़ेन गुरुओं के उपदेशों का अंग थे. सत्रहवीं शताब्दी में जापान के बुद्धानुरागी सम्राट तोकुगावा लेयासू इन तीन बन्दरों के प्रतीकों से बड़े प्रभावित थे. उनके निधन के बाद उनके वंशजों ने उनकी समाधि परिसर के मुख्य द्वार पर इन तीन बन्दरों की मूर्तियाँ बनवाईं.

जापानी भाषा में इन तीन बन्दरों को कीकाजारू, मीजारू और ईवाजारू बोलते.

  • जो बन्दर कान पर हाथ रखे है वह कीकाजारू,
  • जो बन्दर आँखों पर हाथ रखे है वह मीजारू
  • और जो बन्दर मुँह पर हाथ रखे है वह ईवाजारू.

इन तीन बन्दरों से प्रभावित होकर टर्किश फिल्म निर्देशक नूरी बिल्गे गीलैन (Noori Bilge Gylan) ने एक फिल्म भी बनाई थी- थ्री मंकीज- जोकि वर्ष 2008 में पुरस्कृत भी की गयी.

इस प्रकार जापान के एक शिन्तो चैत्य की दीवारों पर अंकित तीन बन्दर भारत में गाँधी के तीन बन्दर बन गये.

भारत में प्रवास कर रहे जापान के वयोवृद्ध भन्ते नागार्जुन सुरेई ससाई को एक बार नागपुर के एक कार्यक्रम में व्याख्यान देते सुना था:

“तीन बन्दरों वाली मूर्ति गाँधीजी को जापान के एक भिक्खु ने दी थी.”

आपको यह जानना भी रोचक लगेगा कि ये तीन बन्दरों के प्रतीक जापान कैसे पहुँचे? कौसाम्बी में भिक्खुओं के विवाद के बाद भगवान बुद्ध ने एक वस्सावास (वर्षावास) जंगल में पशुओं के साथ किया था. बुद्ध की मैत्री प्राणीमात्र के प्रति है. उन्होंने पशु योनि में भटक रहे प्राणियों पर अनुकम्पा करने के लिए वन में वस्सावास किया. जंगल में भगवान ने सांकेतिक भाषा में पशुओं को पशु योनि से मुक्ति के उपाए बताए, सांकेतिक भाषा में उन्हें सीलपालन की देसना की- कान पर हाथ रख कर संकेत किया कि बुरा मत सुनो, मुँह पर हाथ रख कर संकेत किया कि बुरा मत बोलो और आँख पर हाथ रख कर संकेत किया कि बुरा मत देखो. उन्होंने संकेतों के माध्यम से बन्दरों को सील का उपदेश किया.

यही प्रसंग किंवदन्ती के रूप में भारत से यात्रा करते-करते चीन पहुँचा, वहाँ वह कन्फ्यूशियस की शिक्षा का अंग बन गया और फिर चीन से यात्रा करते हुए वह जापान में बौद्ध गुरुओं के उपदेशों का अंग बन गया. फिर वहाँ की दीवारों पर अंकित हो गया. जिसके द्वार पर वो तीन बुद्धिमान बन्दर शिल्पित हैं, 17वीं शताब्दी का वह शिन्तो चैत्य आज यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल है.

गाँधी जी ने तीन बन्दरों के ये प्रतीक जापान की बौद्ध परम्परा से लिए. आप गाँधी जी की पूरी जीवनचर्या को देखें तो पाएंगे कि स्वयं उन पर भी बौद्ध दर्शन का गहरा प्रभाव था, यद्यपि कि वे अपनी मान्यताओं के साथ भी पूरे दृढ़ रहे. एक धोती में सादगी से रहना बुद्ध के चीवर जैसी सादगी थी, गाँधी जी भी बुद्ध की भांति चारिका करते थे- दाण्डी मार्च, असहयोग आन्दोलन अपनी मौलिकता में बौद्ध मूल्य हैं. गाँधी दर्शन को इस दृष्टिकोण से भी देखे जाने की जरूरत है.

(लेखक: राजेश चंद्रा)

Must Read

spot_img