बोधगया, राजगृह, नालंदा धम्म यात्रा -3
आप अगली बार बोधगया के दर्शन करने जाए तो उन मार्गों पर चले जहाँ-जहाँ भगवान बुद्ध के चरण पड़े थे. जिनकी तलाश में सम्राट अशोक, महान चीनी बौद्ध भिक्खु फाहियान, ह्नेनसांग और इत्सिंग चले थे.
अगली बार आप बोधगया के आस पास के उन सुंदर जंगलों,पहाड़ों, नदियों और मार्गों को वंदन करते हुए चले जहाँ सिद्धार्थ गौतम के चरण पड़े थे.
महाबोधि विहार जाए तो बोधिवृक्ष के आस पास तथागत ने सत्य की खोज में सात सप्ताह गुज़ारे थे. वहाँ आप रात के आख़िरी पहर में सूर्योदय से पहले कुछ पल ध्यान लगाए और अनुभव करें कि बुद्ध ने बोधिवृक्ष के नीचे आख़िर संसार के कौनसे सत्य को कैसे जाना था.
आप उस मार्ग को देखते हुए महसूस करें जब भगवान राज़गृह से एक विशेष प्रकार की चट्टान की लंबी पर्वत श्रृंखला की तलहटी से गुज़रते हुए उरुवेला वन में पहुँचे. गयासीस पर्वत की गुफा में शरीर को कष्ट देने वाली कठिन तपस्या की.
आप उस मार्ग पर और स्थान पर चलें जहाँ शाक्यमुनि ने सुजाता की खीर खायी. निरंजना नदी को पार किया और आख़िर दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ बोधि वृक्ष के नीचे वज्रासन में विराजे.
आप उस पथ पर चले, देखें और महसूस करें जहाँ भगवान आस पास के गांवों में भिक्षाटन के लिए जाते थे. गुरुपाद पर्वत, व उस पर्वत तक भी जाए जहां उरुवेला कश्यप अपने कई शिष्यों के साथ भगवान के धम्म की शरण आए थे.
आप वहां के विपस्सना केन्द्र और विदेशों के उन विशाल विहारों में जाए जहां देश विदेश के साधक भिक्षु भिक्षुणी व उपासक लंबे समय तक रहकर पालि भाषा, ध्यान सीखते हैं तिपिटक का अध्ययन करते हैं.
अब बुद्धगया काफ़ी बदल रहा है. देश विदेश के धाम्मिक प्रबुद्धजनों का हर दिन रैला चलता रहता है. सुविधाओं के लिए कई विकास कार्य हो रहे हैं. म्यूज़ियम, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट व आसपास का नया स्वरूप निखर रहा है. क्षेत्र में दूर तक कई देशों के नए नए भव्य बुद्ध विहार व विश्राम गृह बन रहे हैं.
अगली बार आप एक यात्री की तरह नहीं बल्कि बुद्ध,धम्म और संघ के आस्थावान साधक, उपासक की तरह जाए. और यह तय कर लौटे कि शेष जीवन में लोगों के कल्याण के लिए भगवान की वाणी को जन जन तक पहुँचाने के लिए एक प्रचारक की तरह कार्य करेंगे.
सबका मंगल हो..सभी प्राणी सुखी हो
जारी…
(लेखक: डॉ एम एल परिहार)
— धम्मज्ञान —