राजगृह, नालंदा, बोधगया धम्म यात्रा- 4
आप अगली बार राजगृह जाओ तो सम्राट बिम्बिसार की जेल के खंडहर की खिड़की के पास खड़े होकर सम्राट की भगवान बुद्ध के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा का अंदाज़ा लगाना, जब पुत्र अजातशत्रु ने पिता को मारने के लिए जेल में डाला. सम्राट ने मंज़ूर किया और लेकिन पुत्र से इच्छा ज़ाहिर की कि जेल में एक खिड़की भी बनवाए ताकि जब बुद्ध राजगृह से भिक्षाटन करने के बाद गृद्धकुट पर्वत के शिखर पर अपनी गंधकुटी तक पहुँचे तो वे रोज़ उनको एक टक निहारते हुए दर्शन करते रहे…आज भी वहाँ यह दृश्य मानो जीवंत हो उठता है.
आप राजग्रह जाओ तो गृद्धकूट पर्वत (Vulture Hill) पर सफ़ेद वस्त्र पहन कर भगवान बुद्ध की गंधकुटी के दर्शन करना, वहाँ कुछ पल ध्यान करना और सुत्तपठन करना मत भूलना. और देखना कि दुनिया के कोने कोने से आस्थावान यहाँ कितनी श्रद्धा से नमन करने आते है.
आप एक एक क़दम उस पावन पथ की चढ़ाई पर चढ़ना जहाँ सम्राट बिम्बिसार अपना भव्य रथ पर्वत की तलहटी पर रोक कर पैदल ही भगवान के दर्शन करने और उपदेश सुनने के लिए शिखर तक जाते थे.
आप पर्वत पर उन जगहों पर नमन, वंदन करना जहाँ भगवान के धम्म सेनापति सारिपुत्र, महामोग्गलान, आनंद व अन्य भिक्षु अलग अलग गुफ़ाओं में ध्यान साधना करते थे .
यह वही गृद्धकूट पर्वत है जहाँ भगवान ने 82 हज़ार सुत्त में से कई महत्वपूर्ण उपदेश किये थे. सम्राट अशोक के एक भाई पाटलिपुत्र के साम्राज्य की बजाए भिक्षु बने. बुद्ध, धम्म व संघ की शरण आकर लंबे समय तक यहीं रहे थे. उनकी स्मृति में सम्राट अशोक ने यहाँ भव्य स्तूप बनाया था.
यहाँ एक समय थेर आनंद भगवान की गंधकुटी से सटी हुई गुफा में ध्यान कर रहे थे और मार सेना ने उन को डराकर भटकाना चाहा. भगवान ने अपने दिव्य बल से आनंद का कंधा हिलाकर चेताया था.
भला बुद्ध का आस्थावान व्यक्ति इस पर्वत की उस जगह को कैसे भूल सकता है जहाँ पर शाक्यमुनि बुद्ध को मारने के उद्देश्य से भिक्षु देवदत्त ने एक चट्टान को ऊँचाई से खिसकाया था. चट्टान बीच में अटक गई लेकिन उसके टुकड़े भगवान के पैरों पर लगे, खून बहा और भिक्षु पास ही जीवक के आम्रवन में इलाज के लिए गए थे.
आज हर दिन देश विदेश के हज़ारों धाम्मिक प्रबुद्धजन बहुत श्रद्धा के साथ पर्वत के शिखर तक जाते हैं. इन पावन स्थलों के दर्शन कर ध्यान साधना और सुत्त पठन करते हैं.
शिखर पर जाकर आप एक नज़र चारों ओर घुमाना. इन पाँच रमणीय पर्वतों को सुरक्षा कवच मानते हुए प्राचीन राजग्रह की स्थापना सम्राट बिम्बिसार ने की थी.
जब 29 साल के सिद्धार्थ गृहत्याग कर ऊरुवेला जाते समय राजग्रह के गर्म पानी के सोता वाले पर्वत पर कुछ समय रुके थे. यहीं पर 25 साल के युवा सम्राट बिम्बिसार इनसे मिले थे. और वापस कपिलवस्तु जाने के लिए आग्रह किया था. यही नहीं अपना आधा साम्राज्य सौंपने के लिए भी आग्रह किया था. लेकिन भगवान के परम उपासक सम्राट बिम्बिसार की आख़िर अपने पुत्र के हाथों दर्दनाक मौत कैसे हुई. हम अगली कड़ी में जानेंगे .
सबका मंगल हो.. सभी प्राणी सुखी हो
जारी…
(लेखक: डॉ एम एल परिहार)
— धम्मज्ञान —