सवाल: ध्यान क्या हैं?
जवाब: ध्यान यह जागृती के साथ मन को बदलना हैं. पाली शब्द ध्यान का अर्थ होता हैं ‘भावना’ यानि कि विकसित करना या वृद्धिगत करना.
सवाल: क्या ध्यान आवश्यक हैं?
जवाब: हाँ, ध्यान आवश्यक हैं. हम कितना भी अच्छा होना चाहे, जब तक हमारी आकांक्षाएं नही बदलती तब तक बदलना कठिन हैं. जैसे किसी को लगा की वह गुस्सैल हैं और वह तय करता हो कि ‘आज से वह अपनी पत्नी के साथ गुस्सा नहीं करेगा.’ पर अगले ही घंटे में वह पत्नी पर बरस सकता हैं, क्योंकि अजागृत होने की वजह से गुस्सा उभर सकत आता हैं. ध्यान से जागृती बढती हैं जिससे चित की आदत बदलने कि शक्ति मिलती हैं.
सवाल: मैंने सुना हैं कि ध्यान खतरनाक भी हो सकता हैं. क्या यह सच हैं?
जवाब: भोजन में नमक आवश्यक हैं पर अगर आप एक किलों नमक खाओंगे तो शायद मर जाओंगे. आधुनिक जगत में कार जरूरी हैं पर यातायात के नियम नहीं पालोंगे और शराब के नशे में गाडी चलाओंगे तो कार एक घातक अस्त्र साबित हो सकता हैं. ध्यान ऐसे ही हैं, अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं पर गलत ढंग से करोगे तो हानि होगी. कुछ लोग मानसिक रोग जैसे नैराश्य, डर या भ्रम से पीडित होने पर पर ध्यान करते हैं तब उनकी समस्या बढती हैं. अगर ऐसी समस्या हैं तब उचित चिकित्सा के बाद ही ध्यान करना चाहिये. कुछ लोग बहुत उतावले होते हैं. वे धीरे से आगे बढने के बजाय तेजी से, अधिक समय तक ध्यान करते हैं और थक जाते हैं. सबसे ज्यादा समस्या उन्हे होती हैं जो ‘कंगारू’ ध्यान करते हैं. वे एक गुरू से ध्यान सीखते हैं, फिर दूसरी किताब पढ कर दूसरा ध्यान करते हैं. अगले हफ्ते कोई विख्यात गुरू उनके शहर आता हैं तब उसकी शिक्षा इसमें मिलावट करते हैं, और बुरी तरह संभ्रमित हो जाते हैं. कंगारू की तरह एक गुरू से दूसरे गुरु तक, या एक ध्यान से दूसरे ध्यान की ओर जाना एक बदी मुसीबत हैं. अगर आपको कोई मानसिक बीमारी नहीं और आप एक ध्यान को ढंग से जीवन में उतारते हैं तो यह स्वयं के लिए सर्वोत्तम हैं.
सवाल: कितने प्रकार के ध्यान होते हैं?
जवाब: बुद्धा ने कई प्रकार के ध्यान सिखाये, कुछ विशिष्ट समस्या से निपटने या कुछ विशेष मनोदशा विकसित करने के लिए. पर सामान्यत: उपयोगी हैं सांस की स्मृति ‘अनापन सती’ और मैत्री विकास, ‘मेता भावना’.
सवाल: अनापन सती अथवा सांस की स्मृति ध्यान कैसे किया जाता हैं?
जवाब: आप इन 4 ‘स’ को ध्यान रखें – स्थल, स्थिति, साधना और समस्या. पहले एक सही स्थल चुनिए जहाँ शांति हैं और आप कुछ समय के लिए बैठ सकते हैं. दूसरा, आप सुखद स्थिति में बैठ लें. बैठने के लिए कुल्हों के नीचे तकिया लें, पैरों को मोडे (पालथी मारकर) और रीढ सीधी रखे, हाथों को गोद में रखें और आँखे धीरे से बंद करें, यह बैठने के लिए आरामदायक तरीका हैं. आप रीढ सीधी रखकर एक कुर्सी पर भी बैठ सकते हैं. अब साधना शुरु करें. शांत स्थिति में आँखे बंद किये हुए आप अपने आने-जाने वाले सांस की स्मृति रखें. यह साँसों की गिनती करतए हुए या पेट का उठना और गिरना देखते हुए कर सकते हैं. जब यह हो जाये तो कुछ समस्याएं और अडचने उभर सकती हैं. आपको शरीर में कहीं खुजली, जलन या घुटनों में तकलीफ हो सकती हैं. जब ऐसा होगा तब शरीर को शिथिल रखें और सांस पर ध्यान दें. संबवत: कई विचार आपका ध्यान, सांस से हटा सकते हैं. इसका एक ही उपाय हैं, आप धीरे से अपना ध्यान सांस पर लेते आये. अगर आप इसे करते रहे, तो आपके विचार क्षीण होते जायेंगे और ऐसी घडियां आएगी जब आपको गहरी मानसिक शांति का लाभ होगा.
सवाल: मुझे कितनी देर तक ध्यान करना चाहिए?
जवाब: शुरुआत में 1 हफ्ते तक 15 मिनट रोज करें, फिर हर हफ्ते 5 मिनट बढाते हुए 45 मिनट किया करें. कुछ हफ्तों में आप देखेंगे की आपकी एकाग्रता काफी बढ गई हैं.
सवाल: मेता भावना अथवा मैत्री विकास ध्यान कैसे करें?
जवाब: जब आप अनापान सती ध्यान में नियमित होने लगे तब आप मेता भावना की शुरुआत कर सकते हैं. हफ्ते में 3-4 बार अनापान सती के बाद मेता भावना कर सकते हैं. पहले स्वयं पर केंद्रित करें और स्वयं से कहें “मैं सुखी बनु. शांत रहूँ. मेरा खतरों से रक्षण होता रहें. मेरा चित द्वेष से मुक्त रहें. मेरा ह्रदय प्रेम से भरा रहे. मैं आंनदी रहुँ.” इसके पश्चात अपना मित्र, तटस्थ वयक्ति और अंत में जिसे आप पसंद नही करते ऐसा व्यक्ति ध्यान में लें और उनके प्रती यही शुभ भावना करें.
सवाल: मेता भावना करने से क्या लाभ होता हैं?
जवाब: अगर आप इसे नियमित और सही तरीके से करते हैं तब आप अनुभव करेंगे की आप में काफी सकारात्मक परिवर्तन आने शुरू हुए हैं. आप देखेंगे की आप स्वयं के प्रति काफि सहनशील और स्वीकृतिपूर्ण हुए हैं. आप जीनसे प्रेम करते हैं उनके प्रति आपका प्रेम और बढ जागेगा. आप अधिक मित्र बनाना शुरु करेंगे और आप शत्रुओं से भी कम नफरत करने लगेंगे, को क्रमश: पूर्णत: विनष्ट हो जाएगी. कभी आप किसी को पीडा, बीमारी या दु:ख उन पा यह ध्यान करेंगे तो आप पाऐंगे की उनके दु:ख दूर हुए हैं.
सवाल: यह कैसे संभव हैं?
जवाब: विकसित चित महा शक्तिशाली होता हैं. अगर हम अपनी मानसिक ऊर्जा को केंद्रित कर किसी की तरफ प्रवाहित करते हैं तो उसके परिणाम आ सकते हैं. आपको कभी अनुभव आया होगा. आप किसी भीड में मौजूद हैं और अचानक महसूस होता हैं की कोई आपको घूर रहा हैं. हुआ ये कि आप ने उस व्यक्ति की मानसिक ऊर्जा को पकड लिया. मेता भावना ध्यान ठीक ऐसा हैं. हम अपनी सकारात्मक मानसिक ऊर्जा किसी की तरफ प्रवाहित कर उनमें परिवर्तन ला सकते हैं.
सवाल: क्या कुछ और प्रकार के ध्यान भी हैं?
जवाब: हाँ. सबसे आखिरी और महत्वपूर्ण हैं ‘विपस्सना.’ इसका मतलब होता हैं ‘देखना’ या गहरे देखना.’ इसे ‘अंतर्दृष्टि ध्यान’ भी कहते हैं.
सवाल: यह ‘अंतर्दृष्टि ध्यान’ क्या हैं?
जवाब: इस ध्यान में हमे जो कुछ भी होता हैं उसे कोई प्रतिक्रिया दिए बिना तटस्थता व निर्विचार के साथ देखते हैं.
सवाल: इसका उद्देश्य क्या हैं?
जवाब: हम अपनी अनुभुतियों को पसंद या नापसंद करते हैं और फिर विचार, दिवास्वपन या स्मृतियों की श्र्खंला को जन्म देते हैं. यह प्रतिक्रियाएं सत्य को विच्छिन्न कर देती हैं और हम ठीक से कुछ समझ नही पाते. जागृति बढाने से हमें पता चलता हैं कि कैसे हम कोई, कृति, संवाद या विचार करते हैं. और निश्चित ही स्वयं का ज्ञान हमें और सकारात्मकता से भर देता हैं. अंतर्दृष्टि ध्यान से दूसरा लाभ ये हैं कि हमें यह दिखता हैं की हमारी अनुभूति में और हम में अंतराल हैं. इस अंतराल के पता चलने से हम किसी भी पल प्रतिक्रिया देने की बजाय होश से और सही फैसला या कृति कर लेते हैं. इससे हमें अपने पर काबु मिलता हैं, जो किसी संकल्प से नहीं बल्कि साफ दृष्टि की वजह से होता हैं.
सवाल: तो क्या हम कह सकते हैं कि ध्यान हमें बेहतर और सुखी मनुष्य बनाता हैं?
जवाब: हाँ, यह शुरुआती तौर पर अच्छा हैं; बहुत अच्छा हैं. पर ध्यान का गंतव्य इससे बहुत आगे हैं. जैसे हम ध्यान में गहरे जाते हैं वैसे हमें दिखता हैं कि हमारा अनुभव “मैं” के बिना हैं, हर अनुभव “मैं” के सिवा घट रहा हैं, और इसे अनुभव करने वाला “मैं” भी यहाँ नहीं हैं. शुरुआत में इसकी कुछ झलके मिलेंगी पर समय के साथ यह गहरा होता जायेगा.
सवाल: यह डरावना लगता हैं?
जवाब: हाँ, यह डरावना हैं. दरअसल कुछ लोग यह अनुभव पहली बार आने पर डरते हैं. पर बाद में उन्हे पता चलता हैं कि वे, वैसे नहीं हैं जिसे वो हमेशा, मैं समझते थे. धीरे-धीरे अहंकार कमजोर होता हैं और साथ ही “स्व”, “मैं” और “मेरा” भी पुर्णत: विलीन हो जाता हैं. जरा सोचिये, कितने व्यक्तिगत, सामाजिक और अंतर्राष्ट्रिय झगडों का मूल, अंहकार हैं, जिसमें दुर्व्यवहार, अपनापन, दहशत का दंश और एक चीख छुपी होती होती हैं कि ‘यह मेरा हैं,’ ‘यह हमारा हैं!’ बौद्ध धर्म के अनुसार हमें सही मायने में खुशी और शांती तभी मिलती हैं जब हमें स्वयं का ज्ञान होता हैं. इसी को निर्वाण कहते हैं.
सवाल: यह काफि सुहावनी कल्पना हैं पर साथ ही चेतानेवाली भी. एक प्रबुद्ध व्यक्ति कैसे ‘मैं’ या ‘अपने’ के भाव के बिना कार्यरत होता हैं?
जवाब: जैसे एक प्रबुद्ध व्यक्ति हमसे पूछ सकता हैं कि “कैसे आप ‘मैं’ के साथ काम कर सकते हैं.” आप कैसे स्वयं के तथा औरों के भय, क्रोध, ईर्ष्या और अभिमान को सह सकते पाते हैं? क्या आप निरंतर अधिक से अधिक पाने की प्रतिस्पर्धा, औरों से बेहतर होने की होड, सब कुछ खो जाने के डर से उकत नहीं जाते? ऐसा लगता हैं कि प्रबुद्ध व्यक्ति काफी सुगमता से इस जिंदगी से गुजर जाते हैं. अप्रबुद्ध व्यक्ति को ही, तुम्हे-हमें ऐसी समस्या हैं और तुम-हम से ही समस्या हैं.
सवाल: आपकी बातों में तथ्य हैं. लेकिन बुद्धत्व पाने के लिए कितना ध्यान करना होगा?
जवाब: यह बताना असंभव हैं और जरूरी भी नहीं. क्यों न ध्यान शुरु किया जाए और अनुभव लिया जाये? अगर आप समझ और नियमितता से साधना करते हैं तो आप जीवन में सकारात्मक परिवर्तन अनुभव कर सकते हैं. समय के साथ हो सकता हैं आप ध्यान और धम्म में और गहरें जाना चाहेंगे. बाद में यह जीवन की सबसे प्रथामिक बात होगी. पहला कदम उठाने से पहले, बहुत आगे की ऊँची अवस्था के सिर्फ अंदाज न लगाये. एक समय एक कदम उठाइये.
सवाल: क्या मुझे ध्यान सीखने के लिए गुरु जरूरी हैं?
जवाब: गुरु जरूरी नहीं हैं पर ध्यान का अनुभव प्राप्त व्यक्ति का मार्गदर्शन सहायक हो सकता हैं. दुर्भाग्यवश कुछ भिक्षु और सामान्यजन स्वयं को ध्यान शिक्षक की तरह पेश करते हैं जब की वे कुछ नही जानते. जिस गुरू का नाम मशहूर और व्यक्तित्व संतुलित हैं और जो बुद्ध की शिक्षा का सबसे अच्छा आचरण करता हो ऐसे किसी गुरु को चुन लें.
सवाल: मैंने सुना हैं कि मनोचिकित्सा और मनोवैज्ञानिक ध्यान का खूब इस्तेमाल करते हैं. क्या यह सच हैं?
जवाब: हाँ, यह सच हैं. ध्यान का मनोचिकित्सा में उपयोग काफि मान्यताप्राप्त हैं जिससे कई डॉक्टर डर से छुटकारा, विश्राम पाने और जागृति बढाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं. बुद्ध की मनुष्य के मन की समझ आधुनिक सभ्यता में उतनी ही उपयुक्त हैं जितनी कभी प्राचीन समय में थी.