सवाल: सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथ होते हैं. बौद्धों के पवित्र ग्रंथ क्या हैं?
जवाब: त्रिपिटक, बौद्धों का पवित्र ग्रंथ हैं. वह प्राचीन भाषा ‘पाली’ में लिखा हैं जो बुद्ध की भाषा से काफी मिलती जुलती हैं. त्रिपिटक एक बहुत बडा ग्रंथ हैं. इसका अंग्रेजी अनुवाद 40 खंडों में हैं.
सवाल: त्रिपिटक का अर्थ क्या हैं?
जवाब: यह दो पाली शब्दों से बना हैं. त्री यानि तीन और पिटक यानि पिटारा (बक्सा). पहले हिस्से का अर्थ हैं की बौद्ध धर्मग्रंथ के 3 भाग हैं. पहले विभाग, सुत पिटक में बुद्ध और उनके संबोधि को प्राप्त हुए शिष्यों के उपदेश हैं. इसमें सत्य को अनेकों ढंगों से विविध प्रकार के लोगों से कहा गया हैं. बुद्ध के कुछ उपदेश धर्म देसना के और कुछ वार्तालाप के रुप में संगृहीत हैं. कुछ हिस्से जैसे धम्मपद में बुद्ध का उपदेश काव्य के रूप में हैं. जातक में प्राणियों के पात्रों से भरी रोचक कहानियाँ हैं. त्रिपिटक का दूसरा हिस्सा हैं विनय पिटक. इसमें भिक्षु/भिक्षुणी के आचार के नियम व अनुशासन, संघ के व्यवस्थापन की पद्धतियाँ और संघ का इतिहास शामिल हैं. अंतिम विभाग हैं अभिधम्म पिटक. यह काफि पेचीदा और विशेष ढंग से व्यक्ति के संपूर्ण मानसिक संरचना का विश्लेषण करता हैं. जबकि अभिधम्म पहले दो पिटकों के बाद आया, फिर भी इनमे कोई विसंगति नहीं दिखाई देती.
अब ‘पिटक’ शब्द को लें. प्राचीन भारत में इमारतों के निर्माण के समय मजदूर एक हाथ से दूसरे हाथ में सामग्री का बक्सा पहुँचाते थे. वे बक्सा अपने सर पर रखते, कुछ दूर चलकर दूसरें के पास पहुँचते और फिर बक्सा उसे थमाते. इस तरह से काम चलता था. बुद्ध के समय लेखन कला अवगत थी, पर प्रचार के माध्यम के रूप में इसकों स्मृति से कम भरोसे का माना जाता था. किताब गीली हो सकती थी या इसे चूहे कुतर सकते थे, पर स्मृति तबतक रहती थी जबतक वह व्यक्ति जीवित रहता. फलस्वरूप बुद्ध की शिक्षा को भिक्षु/भिक्षुणी, स्मृतियों के द्वारा एक दूसरें को सौंपते गए जैसे बांधकाम करने वाले मजदूर ईंटे बक्सों में पहुँचाते थे. इसलिए बुद्ध धर्मग्रंथ के 3 विभाग को पिटक कहा जाता हैं. इस तरह कई सदियों तक संगृहित किये त्रिपिटक को अंतत: 100 BC में श्रीलंका में लिखा गया, शायद भारत में इससे भी पहले लिखा गया होगा.
सवाल: अगर धर्मग्रंथ लम्बे समय से स्मृति में रखे थे तब तो वे काफी अविश्वसनिय हैं. फिर तो बुद्ध की बहुत सी शिक्षा या तो खो गयी होगी या बदली होगी?
जवाब: धर्मग्रंथ संभालने का कार्य भिक्षु/भिक्षुणी संघ का था. वे नियमित रूप से मिलते थे और कुछ हिस्सों का या पूरे त्रिपिटक का पठण करते थे. इससे शिक्षा में कोई भी मिलावट असंभव हुई. इसे ऐसा समझे. अगर कोई सौ लोग मन लगाकर समूहगान कर रहे हैं और किसी ने कोई गलत पंक्ति या नई पंक्ति गाने की कोशिश की तब क्या होगा? सही गाने वालों की संख्या ज्यादा होने से नई पंक्ति जोडना संभव नहीं हो पायेगा. यह ख्याल में लेना चाहिए की ध्यानि भिक्षु/भिक्षुणी की स्मृति बहुत अच्छी थी और आजकल के जमाने के व्यवधान जैसे टेलीविजन, वृतपत्र, इश्तेहार उस समय नहीं थे. आज भी किताबे होने के बावजूद भिक्षु त्रिपिटक का पठण कर सकते हैं. बर्मा के भिक्षु मेंगोंग शायद इसे कर सकते हैं जिससे उनका नाम सर्वोतकृष्ट स्मृति के लिए गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हैं.
सवाल: आपने पाली का जिक्र किया. यह क्या हैं?
जवाब: पाली यह भाषा हैं जिसमें प्राचीन बौद्ध शास्त्र लिखे हैं. कोई निश्चित नहीं जानता की बुद्ध कौनसी भाषा बोलते थे पर लोगों का यह मानना हैं कि वे पाली बोलते थे. अगर वे पाली नही बोलते थे, तो संभवत: उसकी करीबी कोई भाषा बोलते थे. पर चुंकि बुद्ध काफि दूर तक सफर करके धम्म देसना देते थे, इसकी संभावना काफी हैं कि वे उतर भारत में प्रचलित कई भाषाएँ बोलते रहे होंगे.
सवाल: बौद्ध धर्म में ग्रथों का क्या महत्व हैं?
जवाब: बौद्ध, त्रिपिटक को ईश्वर निर्मित नहीं मानते, जिसका हर शब्द मानना चाहिये. अपितु यह एक महामानव की शिक्षा का संग्रह हैं, जिसमे मार्ग दर्शन, सलाह, स्पष्टीकरण, प्रेरणा आदि बातें उपलब्ध हैं, जिसे विचारपूर्वक एवं आदर पूर्वक पढना चाहिये. हमारा उद्देश्य त्रिपिटक पर विश्वास रखने का ना रहकर बुद्ध की शिक्षा को स्वानुभूती की कसौटी पर कसने का हो. आप कह सकते हैं कि बौद्धों की बौद्ध शास्त्रों की तरफ देखने की दृष्टि वैज्ञानिक हैं. ठीक उसी तरह जिस तरह एक वैज्ञानिक की अपने शोध प्रबंधों के प्रति होती हैं. वैज्ञानिक प्रयोग करता हैं उसके पश्चात उसकी निष्पति वैज्ञानिक मुखपृष्ठों में छापता हैं. बाकि वैज्ञानिक उसे सम्मान के साथ पढते हैं, पर तब तक नहीं मानते जब तक की उनके प्रयोग की भी निष्पति नहीं होती.
सवाल: आपने पीछे धम्मपद का जिक्र किया. वह क्या हैं?
जवाब: त्रिपितक का सबसे छोटा हिस्सा धम्मपद हैं. इसका अनुवाद ‘सत्य का मार्ग या सत्य के सूत्र’ ऐसा भी किया जा सकता हैं. इसमें 423 गाथायें हैं जिनमे कुछ गहरे, सुंदर, मन को छू जाने वाले बुद्ध के उदान हैं. परिणामत: धम्मपद बुद्ध का सबसे प्रसिद्ध साहित्य हैं. यह कई मुख्य भाषाओं में उपलब्ध हैं और विश्व के एक अद्भुत साहित्य के तौर पर माना गया हैं.
सवाल: किसी ने मुझे कहा की धर्म ग्रथों को कभी जमीन पर या बगल में दबाये ना रखें, बल्कि कोई ऊँची जगह रखें. क्या यह सच हैं?
जवाब: मध्य कालीन युरोप से अब तक बौद्ध राष्ट्रों में किताब दुर्लभ तथा मूल्यवान हुआ करती थी. इसलिए धर्मग्रथों को उसी सम्मान से संभाला जाता था, जैसा आपने अभी बताया, यह कुछ उदाहरण हैं. माना कि प्रथाओं के अनुसार ग्रथों को संभालना उचित हैं फिर भी अधिकतर लोग मानते हैं कि धम्म आचरण करना ही बौद्ध ग्रथों का सही सम्मान करना हैं.
सवाल: मुझे बौद्ध शास्त्र पढना कठिन लगता हैं वह लंबे, पुनरुती करने वाले तथा उबाऊ होते हैं.
जवाब: जब हम धर्म ग्रंथ पढते हैं तब अपेक्षा करते हैं कि, उसमें कुछ रोचक, मजेदार व खुशी देनेवाला होगा. तब बौद्ध धर्म ग्रंथ पढनेवाला निराश होगा. बुद्ध के कुछ प्रवचन रोचक व सुंदर हैं पर अधिकतर प्रवचन तात्विक परिभाषाएँ, तर्कनिष्ठ विचार, ध्यान पर विस्तृत निर्देश और सत्य की सटीक चर्चा से भरे हैं. यह ह्रदय से ज्यादा बुद्धी को लुभाने वाले होते हैं. जब हम बौद्ध ग्रंथों की और धर्मों ग्रंथों से तुलना करेंगे तब हम उसकी सुंदरता देख सकेंगे – स्पष्टता, गहराई तथा प्रज्ञा की सुंदरता.
सवाल: मैंने सुना हैं कि, बौद्ध शास्त्र शुरुआत में नारियल के पत्तों पर लिखे गये. यह क्यों किया गया?
जवाब: जब शास्त्र लिखे जा रहे थे तब तक भारत या श्रीलंका में कागज की खोज नही हुई थी. साधारण पत्र, करारनामा, हिसाब-किताब आदि सब जानवरों की चमडी, धातु का पतला या नारियल पत्तों पर लिखा जाता था. बौद्ध लोग, जानवरों की चमडी ना पसंद करते तथा धातु के पत्रे महेंगे एवं लिखने में कठीनाई पैदा करते थे. इसलिए नारियल पत्तों का इस्तेमाल होता रहा. पत्तों को विशेष रुप से तैयार कर, लकडी के आवरण में रस्सी से जकडकर, लिखने के लिये आधुनिक किताब की तरह बनाया जाता था. जब बौद्ध धर्म चीन में पहुँचा तब शास्त्रों को रेशम या कागज पर लिखा जाता था. 500 वर्ष बाद अनेक प्रतियाँ बनाने के लिये छपाई का आविष्कार हुआ. विश्व की सबसे पुरानी छपाई हुई किताब चीनी भाषा में बुद्ध के 828 CE के समय का प्रवचन हैं.