HomeBuddha Dhammaसांस्कृतिक चेतना का पर्व है - अशोक विजयदशमी और धम्मचक्क अनुप्रवर्तन दिवस

सांस्कृतिक चेतना का पर्व है – अशोक विजयदशमी और धम्मचक्क अनुप्रवर्तन दिवस

आज आश्विन मास की दशमी है जिसका बौद्धों में विशेष महत्त्व है. बौद्धों के द्वारा इस तिथि को पर्व के रूप में मनाए जाने के ऐतिहासिक सन्दर्भ हैं.

अशोक विजयदशमी दिवस (और आज ही चण्डासोक से वह धम्माशोक बन गया)

आज शरद ऋतु में उल्लास भरा हुआ है. आश्विन मास की दशमी में प्रकृति सामान्य जन पर कृपा कर रही है. पाटलिपुत्र का मौसम बहुत सुहावना और हल्की ठंडक लिए हुए है. गंगा की उदात्त लहरे पाटलिपुत्र के राजमहल की आभा को अपने में समेटने की कोशिश कर रही हैं. पूरा पाटलिपुत्र नववधू की तरह सुसज्जित है. देश भर के न केवल भिक्खु संघ वरन सामान्य उपासक-उपासिकाएँ इस महान उत्सव का हिस्सा बनने आए हैं. उपासक-उपासिकाओं के श्वेत वस्त्रों के बीच हरिद्रा व केसरिया रंग के चीवर पहने हुए भिक्खु श्वेत कमलवन के बीच उगे हुए पीत-रक्त कमलों का एहसास करा रहे हैं.

महारानी महादेवी ने रदनिका को कहा कि क्या भंते उपगुप्त मथुरा से सकुशल आ चुके हैं? रदनिका ने कहा कि महारानी आप चिंता न करें. भंते उपगुप्त अपने भिक्खु संघ के साथ सकुशल आ चुके हैं और पाटलिपुत्र में धम्मदेसना कर रहे हैं. इधर राजमहल के अंदर संघमित्रा का दो वर्षीय शिशु सुमन प्रातः से ही माँ के इर्दगिर्द घूम रहा है. सम्राट असोक ने सुमन को अपनी गोद में उठाते हुए संघमित्रा को माँ की सहायता के लिए भेजा. सम्राट की गोद में बैठे हुए सुमन अपनी तोतली आवाज में उनसे पूछ रहें हैं कि नाना आज क्या हो रहा है? नाना, नाना! क्या हमारे महल में कोई आएगा? मां सुबह से ही नानी के साथ लगी हुई हैं? हमें आज माँ और नानी दोनों ही नहीं खेला रहे हैं. छोटे नाना वीताशोक भी दिखाई नहीं दे रहे और मामा महेंद्र तो आज हमने देखे भी नहीं. असोक उस नन्हें बालक की बातों में खोते हुए अपने बचपन को याद कर रहे हैं. जब वो वन-वन भटकते हुए अपनी माँ सुभद्रांगी से अस्त्र-शस्त्र चलाने वाले खेल खेलने की जिद किया करते थे. इतने में एक परिचारिका आती है और सुमन को सम्राट से लेकर चली जाती है.

सम्राट और महादेवी दोनों साथ में अपने पूरे बांधवों व अमात्यों के साथ आचार्य उपगुप्त का स्वागत करने राजमहल के द्वार पर जाते हैं. असोक की एक अन्य रानी पद्मावती और महामात्य खल्लटक इस स्वागत-सत्कार से गायब हैं. आचार्य राधागुप्त चिंतन में हैं कि ये कोई योजना तो नहीं बना रहे. वो अपने गुप्तचरों को सचेत कर देते हैं.

भिक्खु उपगुप्त का भली-भांति स्वागत सत्कार करके सम्राट उन्हें दीक्षा (दिक्खा, पालि में) स्थल तक ले जाते हैं. दीक्षा स्थल इस तरह सजा हुआ है जैसे कभी सम्राट असोक के जन्म के समय प्रकृति ने अपना स्वागत किया था. दारुमयी खम्बों से सुसज्जित, विभिन्न गन्धों-विलेपनों से सुगन्धित, पुष्पों-पत्रों से अलंकृत आदि.

सम्राट ने महादेवी के साथ समस्त शाही पोशाक व आभरणों का त्याग करके साधारण श्वेत वस्त्र धारण किए हैं. राजमहल में अन्य रानियों और उनकी सन्तानों ने, अनेक परिचारिकाओं और परिचारिकों ने भी वैसे वस्त्र धारण किए हुए हैं. नन्हा बालक सुमन भी अपने वस्त्रों के स्थान पर श्वेत वस्त्रों को पहनने की जिद करता है. उन्हें भी वो वस्त्र पहनाए जाते हैं.

ऊपर एक मंच पर सभी भिक्खु आसीन हैं. सम्राट अपने परिवार सहित सामान्य जन की तरह नीचे हाथ जोड़े हुए बैठे हैं. दीक्षा का कार्य आरम्भ होता है. पहले भंते उपगुप्त तिसरण (त्रिशरण, हिंदी में) बोलते हैं और बाद में सम्राट सहित अन्य सभी. तिसरण हैं…

बुद्धं सरणं गच्छामि : मैं बुद्ध की शरण को जाता हूँ.
धम्मं सरणं गच्छामि : मैं धर्म की शरण को जाता हूँ.
संघं सरणं गच्छामि : मैं संघ की शरण को जाता हूँ.

और अब सम्राट असोक बुद्ध के धम्म को अंगीकार करके भिक्खु संघ और सामान्य जनों को मुक्त हस्त से दान करते हैं. और समस्त प्रजा में घोषणा करते हैं कि आज से मेरे राज्य में सभी सदाचरण और सील (शील, हिंदी में) का पालन करें. और भिक्खु संघ को आभार प्रकट करते हुए 84000 स्तूपों के निर्माण की उद्घोषणा करते हैं जिससे सत्य, अहिंसा व करुणा जैसे विचारों को लोगों तक पहुंचाया जाए.

धम्मचक्क अनुप्रवर्तन दिवस (बोधिसत्व डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर जी का धम्मांतरण)

इसी तिथि (तदनुसार 14 अक्टूबर 1956) पर अर्थात् असोक विजयादशमी के दिन ही ज्ञानप्रतीक, आधुनिक भारत के निर्माता, भारतीय संविधान के शिल्पी तथा स्वतंत्र भारत को गौतम बुद्ध से पुनः परिचित करवाने वाले बोधिसत्व डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर जी ने 22 प्रतिज्ञाओं से समन्वित बौद्ध धम्म की दीक्षा लेकर भारत को पुनः उसकी गरिमा और गौरव को लौटाया, तथागत गौतम बुद्ध के धम्मचक्क को पुनः गतिमान किया, जिसे हम भारतीय धम्मचक्क अनुप्रवर्तन दिवस के रूप में भी याद करते हैं. जिन सप्तवर्गीय भिक्खु संघ ने 1956 में नागपुर में बाबासाहेब की दीक्षा करवाई, वे हैं – भदन्त चन्द्रमणि महाथेर, भन्ते प्रज्ञा तिस्स, भन्ते एम. संघ रत्न महाथेर, भिक्खु धम्मरक्खित, भन्ते एच. सद्धा तिस्स, भन्ते थम्म नन्द महाथेर और भिक्खु गल्गेदर प्रज्ञानन्द.

आश्विन दशमी का महत्त्व

आश्विन मास की दशमी अर्थात् असोक विजयदशमी अर्थात् धम्मचक्क अनुप्रवत्तन दिवस ऐसा पर्व है जो बतलाता है कि तुम्हारे पूर्वज तुमसे कई गुणा समझदार थे. अखंड भारतवर्ष पर उन्होंने शासन ऐसे ही नहीं किया था. उन्होंने सदैव अपनी संस्कृति को स्वीकार किया और आगे बढ़ाया तथा स्वयं भी उसी से विश्व विश्रुत हुए. आपकी तरह वे कभी भी मानसिक गुलामी में नहीं जिए. उनका उद्देश्य और लक्ष्य स्पष्ट था और भारत के लिए सदैव वंदनीय था. हिमालय से हिन्द महासागर तक फैले विशाल भारत और उसमें निवास करने वाली भारतीय जनता ने सदैव याद रखा है अपने सृजनकारो को.

अखण्ड भारतवर्ष में आश्विन मास की दशमी को असोक विजयदशमी मनाई जाती है. जो वास्तविक अर्थों में अपने अंदर की बुराई को खत्म करके अच्छाई के प्रवेश का पर्व है. सम्राट असोक जो कभी चण्ड थे आज ही के दिन धम्मासोक बने थे. आज ही के दिन बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी धम्मदीक्षा लेकर हमें भारत की उस महान विरासत को वापस दिया था जो सही अर्थों में बुराई का खात्मा करती है. अन्यथा कुछ लोग हर साल एक पुतला जलाकर बुराई के खात्मे का जश्न ही मनाते आ रहे हैं. बुराई तो मानव के अंदर है उसे खत्म करने के लिए भैषज्यगुरू बुद्ध की वाणी ही काम आएगी जो आपको अपना दीपक स्वयं बनने की ओर प्रेरित करेगी. आओ मनाएँ असोक विजयदशमी और बताएं सत्य अपने नौनिहालों को.

असोक विजयदशमी के अवसर पर आओ कुणाल जातक की इस गाथा से प्रतिज्ञा करें-

न तं जितं साधुजितं,
यं जितं अवजीयति.
तमेव जितं साधुजितं,
यं जितं नावजीयति..

अर्थात वह विजय अच्छी विजय नही होती, जिस विजय की पुनः पराजय हो जाय. वही विजय अच्छी विजय है, जिस विजय की पुनः विजय न हो.

सम्राट असोक और बाबासाहेब के वंशज हम आओ दृढ़ प्रतिज्ञ करें स्वयं को कि उनकी इस महान वैचारिकी को अनवरत आगे बढ़ाएंगे और भारत को पुनः धम्ममय बनाएंगे. किसी दूसरे धर्म की आलोचना – प्रत्यालोचना में समय गंवाने की अपेक्षा, आओ समता, बंधुता, न्याय और मानवीय गुणों से युक्त उदात्त धम्म के विचारों को आगे बढ़ाएं. आओ असोक विजयादशमी / धम्मचक्क अनुप्रवर्तन दिवस मनाएं. अस्तु, पुनः आप सभी को सपरिवार असोक विजयादशमी की हार्दिक मंगलकामनाएं.

धम्मचक्क-अनुप्पबतनस्स एवं असोकविजयादसमि च तुम्हाकं सब्बानं हदयंम्हा मंगलकामना

लेखक: डॉ. विकास सिंह, संस्कृत विभागाध्यक्ष, मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा)

— भवतु सब्बमंगलं —

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