HomeGood Questions Good Answers13. एक बौद्ध बनना

13. एक बौद्ध बनना

सवाल: आप ने अब तक जो कहा वह मेरे लिए बहुत उपयुक्त हैं. मैं एक बौद्ध कैसे बन सकता हूँ?

जवाब: उपाली नामक एक व्यक्ति बुद्ध कि शिक्षाओं से प्रभावित हुआ और उसने बुद्ध का शिष्य बनने का फैसला लिया. पर बुद्ध ने उसे कहा:

उपाली पहले सत्य की खोज करों. आप जैसे अच्छे व्यक्ति के लिये सत्य की खोज करना उचित होता हैं.” M.II, 379

बौद्ध धर्म में समझ सबसे महत्वपूर्ण बात हैं; जो काफी समय लेती हैं तथा यह एक प्रक्रिया का अंतिम परिणाम हैं. इसलिये आवेश में बौद्ध धर्म ना अपनाये. समय लें, सवाल करें, विमर्श करे फिर फैसला लें. बुद्ध बहुत शिष्यों में उत्सुक नहीं थे. उन्हे लगता था कि लोग उनकी शिक्षा को छानबीन कर व तथ्यों को जानकार, समझकर आचरण करें.

सवाल: यह सब करने पर मुझे अगर बुद्ध कि शिक्षा पसंद आयी तब मुझे बौद्ध बनने के लिए क्या करना चाहिये?

जवाब: किसी अच्छे विहार या बौद्ध संघ से जुडना, उनको मदद देना, उनसे मदद लेना और बुद्ध की शिक्षा अधिकतर आचरण में लाना. फिर जब आप तैयार होंगे तब आप त्रिशरण लेकर बौद्ध बन सकते हैं.

सवाल: त्रिशरण क्या हैं?

जवाब: शरण ऐसी जगह हैं जहाँ लोग तकलीफ से राहत या सुरक्षा पाने जाते हैं. अनेक प्रकार के शरण हैं. जब लोग दुखी होते हैं तब दोस्तों में शरण लेते हैं. बुद्ध ने कहा हैं:

“बुद्ध, धम्म, संघ इन तीन रत्नों की शरण जाकर प्रज्ञा से चार आर्य सत्य देखे – दु:ख, दु:ख का कारण, दु:ख का निरोध व दु:ख निरोधगामी आर्य अष्टांगिक मार्ग. यही उतम शरण स्थान हैं, सुरक्षा हैं; जहां सभी दुखों से मुक्ति मिलती हैं.” Dhp. 189-192

बुद्ध की शरण जाना यानि स्वयं के बुद्ध बनने की क्षमता में विश्वास रखना हैं. धम्म की शरण जाना यानि चार आर्य सत्य को समझ कर आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलना हैं. संघ की शरण जाना यानि आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलने वालों से मदद, प्रेरणा और मार्गदर्शन लेना हैं. ऐसा करने पर व्यक्ति बौद्ध बनता हैं और निर्वाण के पथ पर पहला कदम रखता हैं.

सवाल: त्रिशरण ग्रहण करने से अब तक आपके जीवन में क्या फर्क पडा?

जवाब: पिछ्ले 2500 सालों में लाखों लोगों की तरह मैंने भी देखा कि, बुद्ध ने इस दु:खद अस्तित्व की अर्थवता समझाई. जो जीवन व्यर्थ लगता था उन्होने उसे अर्थ दिया. उन्होने मुझे शील व करुणा के आधार पर मानवी जीवन जीने का रास्ता दिखाया जिसपर चलके मैं (इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में) शुद्धि और पूर्णत्व पा सकता हूँ. प्राचीन भारत के एक कवि ने बुद्ध के बारे में लिखा:

“उनकी शरण जाना, उनके अनेक गुणगान करना, उनका सम्मान करना और धम्म को अपनाना समझदारी की कृति हैं.”

मैं इससे पूर्णत: सहमत हूँ.

सवाल: मेरा एक मित्र मुझे बदलने की अक्सर कोशिश करता हैं. मैं उसके धर्म में उत्सुक नहीं हूँ और मैंने उसे यह साफ भी किया पर पीछा नहीं छोडता. मुझे क्या करना चाहिये?

जवाब: पहले तो साफ ख्याल में लेना चाहिये की यह व्यक्ति आपका मित्र नहीं हैं. एक सच्चा मित्र आपको जैसे आप हैं वैसे स्वीकारता हैं और आपकी इच्छाओं का सम्मान करता हैं. मुझे शक हैं कि, यह व्यक्ति आपको बदलने के लिये आपका मित्र होने का ढोंग करता हैं. जब लोग उनकी अपेक्षाएँ आप पर थोपते हैं तब वे निश्चित आपके मित्र नहीं हैं.

सवाल: मगर वह कहता हैं कि वह अपना धर्म मेरे साथ बाँटना चाहता हैं.

जवाब: धर्म बाँटना अच्छा हैं पर आपके मित्र को बाँटने और थोपने का फर्क नही समझा. मेरे पास एक सेव हैं और मैं आपको आधा देता हूँ और अगर आप स्वीकारते हैं तब यह बाँटना हुआ पर यदि आप कहते हैं, ‘धन्यवाद मैं अभी खा चुका’ फिर भी मैं आपको जबरन खिलाता हूँ, तो यह बाँटना नहीं हुआ. आपके मित्र जैसे लोग अपने गलत व्यवहार को बाँटना, प्रेम आदी कहकर स्वयं को धोखा देते हैं. वे चाहे जो नाम दें पर उनका बर्ताव कठोर, स्वार्थी और दुर्व्यवहार होता हैं.

सवाल: तो मैं उसे कैसे रोकुं?

जवाब: यह आसान हैं. पहले, स्वयं से साफ करें कि आप क्या चाहते हैं. दूसरा, संक्षेप में उसे साफ कहे. तीसरा, जब वह पूछता हैं, आपका क्या ख्याल हैं, या आप उनके साथ सभा में क्यों आना नहीं चाहते, तब सानुरोध और नम्रता के साथ अपनी पहली बात कहे, ‘ निमंत्रण के लिये धन्यवाद पर मैं नही चलुंगा.’

‘क्यों नहीं?’

यह मेरी मर्जी हैं. मैं नही चलुंगा.

वहां बहुत काम के लोग मिलेंगे.

मैं जानता हूँ पर मैं नही चलुंगा.

मैं आपका आदर करता हूँ इसलिये निमंत्रण देता हूँ.

आप आदर करते हैं इससे प्रसन्न हूँ पर मैं नहीं चलुगां.

अगर आप संयम के साथ व सानुरोध अपनी बात बारबार साफ करके स्वयं को विवाद से दूर रखते हैं, तब वह मान जायेगा. यह खेदजनक हैं, पर कुछ लोगों को यह सीखना जरूरी भी हैं कि वे अपने विश्वास दूसरों पर नहीं थोप सकते.

सवाल: क्या बौद्धों को अपना धर्म औरों के साथ बाँटना चाहिये?जवाब: हाँ. अगर लोग बौद्ध धर्म के बारे में जानना चाहत हैं तब उन्हे बताईये. उनके बिना पूछे भी आप उन्हे बौद्ध धर्म के बारे में बता सकते हैं. पर अगर उनकी कृती या शब्दों से जाहिर होता हैं कि वे सुनना नहीं चाहते तब उनकी इच्छा का सम्मान करें. यह जरूरी हैं कि, हम अपनी कृति से; धर्म प्रभावी ढंग से प्रसारित करें, बजाय धर्म देसना के. लोगों को धर्म अनुभव कराये अपनी प्रमाणिकता, करुणा, शांती, समझदारी के गुणों से. धम्म अपनी वाणी और कृति से प्रसारित हो. अगर हम धम्म अच्छे से जानते हैं, आचरण करते हैं, सदा औरों के साथ बाँटते हैं, तो हम स्वयं के लिये तथा औरों के लिये बहुत लाभकारी हो सकते हैं.

Must Read

spot_img