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भिक्खुवग्गो

चक्खुना संवरो साधु, साधु सोतेन संवरो
घानेने संवरो साधु
, साधु जिव्हाय संवरो.

हिंदी: चक्षु का संवर (संयम) अच्छा है, अच्छा है श्रोत्र का संवर. घ्राण का संवर अच्छा है, अच्छा है जिव्हा का संवर.

कायेन संवरो साधु, साधु वाचाय संवरो
मनसा संवरो साधु
, साधु सब्बत्थ संवरो
सब्बत्थ संवुतो भिक्खु
, सब्बदुक्खा पमुच्चति.

हिंदी: काय (शरीर) का संवर अच्छा है, अच्छा है वाणी का संवर. मन का संवर अच्छा है, अच्छा है सर्वत्र (इंद्रियों का) सर्वर. सर्वत्र संवर-प्राप्त भिक्खु (साधक) सारे दु:खों से मुक्त हो जाता है.

हत्थसंयतो पादसंयतो, वाचासंयतो संयतुत्तमो
अज्झत्तरतो समाहितो
, एकोसन्तुसितो तमाहु भिक्खुं.

हिंदी: जो हाथ, पैर और वाणी में संयत है, जो उत्तम संयमी है, अपने भीतर की सच्चाइयों को जानने में लगा है, समाधियुक्त, एकाकी और संतुष्ट है, उसे
‘भिक्खु’ कहते है.

यो मुखसंयतो भिक्खु, मन्तभाणी अनुद्धतो
अत्थं धम्मञ्च दीपेति
, मधुरं तस्स भासितं.

हिंदी: जो भिक्खु मुख से संयत है, सोच-विचार कर बोलता है, उद्धत नहीं नहीं है, अथ और धम्म को प्रकाशित करता है, उसका बोल मीठा होता है.

धम्मारामो धम्मरतो, धम्मं अनुविचिन्तयं
धम्मं अनुस्सरं भिक्खु
, सद्धम्मा न परिहायति.

हिंदी: धम्म में रमण करने वाला, धम्म में रत, धम्म का चिंतन करते, धम्म का पालन करते भिक्खु (साधक) सद्धम्म से च्युत नहीं होता.

सलाभं नातिमञ्ञेय्य, नाञ्ञेसं पिहयं चरे
अञ्ञेसं पिहयं भिक्खु
, समाधिं नाधिगच्छति.

हिंदी: अपने लाभ की अवहेलना नहीं करनी चाहिए, दूसरों के लाभ की स्पृहा नहीं करनी चाहिए. दूसरों के लाभ की स्पृहा करने वाला भिक्खु (साधक) चित्त की एकाग्रता को नहीं प्राप्त कर पाता.

अप्पलाभोपि चे भिक्खु, सलाभं नातिमञ्ञति
तं वे देवा पसंसन्ति
, सुद्धाजीविं अतन्दितं.

हिंदी: थोड़ा-सा लाभ मिलने पर भी यदि भिक्खु (साधक) अपने लाभ की अवहेलना नहीं करता है, तो उस शुध जीविका वाले, निरालस की देवता प्रशंसा करते हैं.

सब्बसो नामरूपस्मिं, यस्स नत्थि ममायितं
असता च न सोचति
, स वे “भिक्खु”ति वुच्चति.

हिंदी: नामरूप के प्रति जिसका बिल्कुल ही ‘मैं’ ‘मेरे’ का भाव नहीं, जो उनके नहीं होने पर शोक नहीं करता, वही ‘भिक्खु’ कहा जाता है.

मेत्ताविहारी यो भिक्खु इमं नावं, सित्ता ते लहुमेस्सति
छेत्वा रागञ्च दोसञ्च
, ततो निब्बानमेहिसि.

हिंदी: है भिक्खु! इस आत्मभाव नाम की नाव को उलीचो, उलीचने पर यह तुम्हारे लिए हल्की हो जायगी. राग और द्वेष रूपी बंधनों का छेदन कर, फिर तुम निर्वाण को प्राप्त कर लोगे.

पञ्च छिन्दे पञ्च जहे, पञ्च चुत्तरि भावये
पञ्चसङ्गातिगोभिक्खु
, “ओघतिण्णो” तिवुच्चति.

हिंदी: (सत्काय-दृष्टि, विचिकित्सा, शीलव्रतपरामर्श, कामराग और व्यापाद – इन) पांच (अवरभागीय संयोजनों) का छेदन करे, (रूपराग, अरुपराग, मान, औद्धत्य और अविद्या – इन) पांच (ऊर्ध्वभागीय संयोजनों) को छोड) दें, और तदुपरांत (इनके प्रहाण के लिए श्रद्धा, वीर्य, स्मृति, समाधि और प्रज्ञा – इन) पांच (इंद्रियों) की भावना करे. जो भिक्खु (साधक) पांच आसक्तियों (राग, द्वेष, मोह, मान और दृष्टि) का अतिक्रमण कर चुका हो, वह (काम, भव, दृष्टि तथा अविद्या रूपी चार प्रकार की) बाढ़ों को पार किया हुआ ‘ओघतीर्ण’ कहा जाता है.

झाय भिक्खु मा पमादो, मा ते कामगुणे रमेस्सु चित्तं
मालोहगुळंगिलीपमत्तो
, माकन्दि “दुक्खमिद”न्ति ड्यहमानो.

हिंदी: है भिक्खु! ध्यान करो, प्रमाद में मत पड़ो. तुम्हारा चित्त (पांच प्रकार के) कामगुणों (भोगों) के चक्कर में मत पड़े. प्रमत्त होकर मत लोहे के गोले को निगलों. ‘हाय’ यह दु:ख कहकर जलते हुए तुम्हे कहीं क्रदनन करना पड़े.

नत्थि झानं अपञ्ञस्स, पञ्ञा नत्थि अझायतो
यम्हि झानञ्च पञ्ञा च
, स वे निब्बानसन्तिके.

हिंदी: प्रज्ञाविहीन पुरुष का ध्यान नहीं होता, ध्यान न करने वाले को प्रज्ञा नहीं होती. जिसके पास ध्यान और प्रज्ञा दोनों हैं, वहीं निर्वाण के समीप होता है.

सुञ्ञागारं पविट्ठस्स, सन्तचित्तस्स भिक्खुनो
अमानुसी रति होति
, सम्मा धम्मं विपस्सतो.

हिंदी: किसी शून्यागार में प्रवेश करके कोई शांत-चित्त साधक जब सम्यक रूप से धम्मानुपश्यना करता है, तब उसे लोकोत्तर सुख प्राप्त होता है (जो कि सामान्य मानवीय लोकीय सुखों से परे होता है.

यतो यतो सम्मसति, खन्धानं उदयब्बयं
लभती पीतिपामोज्जं
, अमतं तं विजानतं.

हिंदी: साधक सम्यक सावधानता के साथ) जब-जब शरीर और चित्त स्कंधों के उदय-व्यय रूपी अनित्यता की विपश्यना द्वारा अनुभूति करता है, तब-तब उसे प्रीति-प्रमोद (रूपी अध्यात्म-सुख) की उपलब्धि होती है. ज्ञानियों के लिए यह अमृत है.

तत्रायमादि भवति, इध पञ्ञस्स भिक्खुनो
इन्द्रियगुत्ति सन्तुट्टि
, पातिमोक्खे च संवरो.

हिंदी: यहाँ (इस धम्म में) प्रज्ञावान भिक्खु को आरंभ में करना होता है इंद्रियों का संवर, संतोष और प्रतिमोक्ष (भिक्खु-विनय के नियमों) में संवर.

मित्ते भजस्सु कल्याणे, सुद्धाजीवे अतन्दिते
पटिसन्थारवुत्यस्स
, आचारकुसलो सिया
ततो पामोज्जबहुलो
, दुक्खस्सन्तं करिस्सति.

हिंदी: (वह इसके लिए) शुद्ध जीविका वाले, निरालस, कल्याणकारी मित्रों का साथ करे. वह मैत्रीपूर्ण स्वागत करने वाला हो, आचार-पालन में कुशल हो. उससे वह प्रमोद की बहुलता के साथ दु:ख का अंत कर लेगा.

वस्सिका विय पुप्फानि, मद्दवानि पमुञ्चति
एवं रागञ्च दोसञ्च
, विप्पमुञ्चेथ भिक्खवो.

हिंदी: (जैसे) जूही (अपने) कुम्हलाये हुए फूलों को छोड़ देती है, वैसे ही है भिक्खुओं! तुम राग और द्वेष को छोड़ दो.

सन्तकायो सन्तवाचो, सन्तवा सुसमाहितो
वन्तलोका मिसोभिक्खु
, “उपसन्तो”ति वुच्चति.

हिंदी: शरीर अरु वाणी से शांत, शांतिप्राप्त, सुसमाहित, लोक के आमिष (लौकिक भोगों) को वमन किये हुए भिक्खु को ‘उपशांत’ कहा जाता है.

अत्ता हि अत्तनो नाथो, कोहि नाथो परो सिया
अत्ता हि अत्तनो गति
तस्मा संयममत्तानं
, अस्सं भद्रंव वाणिजो.

हिंदी: व्यक्ति स्वयं ही अपना स्वामी है, स्वयं ही अपनी गति है. इसलिए अपने आपको संयत करे, वैसे ही जैसे कि अच्छे घोडों का व्यापारी अपने घोड़ों को करता है.

पामोज्जबहुलो भिक्खु, पसन्नो बुद्धसासने
अधिगच्छे पदं सन्तं
, सङ्खारूपसमं सुखं.

हिंदी: बुद्ध के शासन में प्रसन रहने वाला परमोदबहुल भिक्खु साधक सभी संस्कारों के उपशमन से प्राप्त होने वाले सुखमय शांत पद निर्वाण को प्राप्त करे.

यो हवे दहरो भिक्खु, युञ्जति बुद्धसासने
सोमं लोकं पभासेति
, अब्भा मुत्तोव चन्दिमा.

हिंदी: जो कोई तरुण साधक भी बुद्ध शासन में लग जाता है, वह (अर्हत्व-प्राप्ति के मार्ग के ज्ञान से) मेघमुक्त चंद्रमा के समान इस (खंधादिभेद) लोक को प्रकाशित करता है.


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— भवतु सब्ब मंगलं —

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