बुद्ध के साथ अहिंसा का अति आग्रह भी मूर्खता है. ये भी बौद्धिक आतंक मचाने वाले शोषकों का षड्यंत्र है इससे बाहर निकलिए. जिंदगी में प्रकृति में कहाँ पूर्ण हिन्सा या पूर्ण अहिंसा है? देखकर बताइये जरा? तब बौद्धों को पूर्ण अहिंसक या पूर्ण हिंसक क्यों होना चाहिए?
तिब्बत में परलोक की मूर्खता हावी रही इसीलिये वे मरे. वैसे भी महायान धर्म बुद्ध के मध्यम मार्ग पर नहीं बल्कि भक्ति और व्यक्तिपूजा के अतिवाद पर आधारित रहा है.
इसीलिये भारत के सबसे बड़े ब्राह्मणवादी और वेदांती गुरु ओशो रजनीश ने बुद्ध का ब्राह्मणीकरण करने के लिए महायान को सबसे ज्यादा मूल्य दिया ताकि बुद्ध के मूल नास्तिक धर्म के साथ आत्मा परमात्मा पुनर्जन्म को जोड़ा जा सके.
तिब्बतियों को बौद्ध धर्म या चीन ने नहीं बल्कि उन्हें उनके अपने अन्धविश्वास और पलायन ने मारा है.
एक सच्चे बौद्ध को हिंसा और अहिंसा में सन्तुलन रखना होगा. मध्यम मार्ग और क्या है?
सन्तुलन ही मध्यम मार्ग है. जैसे-जैसे अतियां पुनर्परिभाषित होती हैं वैसे-वैसे सन्तुलन और मध्यम मार्ग भी बार-बार परिभाषित करना होगा.
मध्यम मार्ग हर बार खोजना होगा. वो कोई जमीन में गढा खूंटा नहीं है. वो एक ज़िंदा चीज है खुद भी विकासमान है.
अगर समाज में हिंसा की क्षमता बढ़ रही है तो हमें भी हिंसा का प्रतिकार करना सीखना होगा. भयानक हिंसा और पूर्ण अहिंसा में मध्यम मार्ग क्या है? निश्चित ही थोड़ी हिंसा मध्यम मार्ग होगी.
भुखमरी और अति भोजन में मध्यम मार्ग क्या होगा? निश्चित ही ठीक से भरा पेट मध्यम मार्ग है. भयानक षड्यंत्र और मन्दबुद्धि के आलस्य के बीच मध्यम मार्ग क्या है? निश्चित ही चौकन्नापन या सावधानी मध्यम मार्ग होगी.
बुद्ध कभी कोई अंतिम उत्तर नहीं देते. उनका हर उत्तर मध्यम मार्ग से निकलता है. हर समाज में हर समय में अतियां घटती बढ़ती रहती हैं तो उन अतियों के बीच का मध्यम मार्ग या मध्यम बिंदु कैसे स्थिर रह सकता है?
वह भी बार-बार पुनर्परिभाषित करना होगा. बुद्ध का धर्म कोई मरी हुई आसमानी किताब का धर्म नहीं है. वो ज़िंदा अनुशासन है.
इसीलिए मध्यम मार्ग हर बार नया रूप लेगा.
(लेखक – संजय श्रमण)