इस युग के सबसे ज़्यादा क़रीब है बुद्ध. वाक़ई यह सदी बुद्ध के लिए है. बुद्ध आज भी ताज़ी हवा के झौंके की तरह हैं. भारत भूमि की माटी में उस लाड़ले बेटे के धम्म की सोंधी सुगन्ध महक रही हैं.
इस ज़माने के लिए बुद्ध सबसे ज़्यादा फ़िट है. कोई और नहीं. दूसरे कहते हैं- पहले श्रद्धा करो, आँख मूँद कर विश्वास करो, सवाल मत करो,अपना दिमाग़ मत लगाओ, बस हाँ में हाँ मिलाओ,जैसा धर्मगुरू व शास्त्र कहते हैं वैसा ही कहो और करो. …वहाँ शुरुआत का पहला ही कदम श्रद्धा से होता है.
बुद्ध कहते है- श्रद्धा की फ़िक्र छोड़ो. संसार के, प्रकृति के सत्य को समझ लो. अपने ज्ञान, विवेक और प्रज्ञा (Wisdom) से सद्-धम्म को जान लो. सत्य को पहचान लो.
एहि पस्सिको! और जब जान लोगे तो धम्म के प्रति अथाह श्रद्धा अपने आप पैदा हो जाएगी. जानोगे नहीं तो मानोगे कैसे? जानोगे तो ही मानोगे. इसलिए पहले जानो फिर मानो.
जबकि दूसरों ने कहा, पहले मानो फिर जानो. और न भी जानोंगे तो कोई ज़रूरी नहीं.
भगवान बुद्ध कहते हैं जो सद्-धम्म को नहीं जानता उसकी श्रद्धा डांवाडोल रहती है. हज़ारो जगह भटकती है फिर भी शांति नहीं मिलती.
बुद्ध ने श्रद्धा पर ज़ोर नहीं दिया, व्यक्ति के विवेक, बोध, प्रज्ञा पर ज़ोर दिया. प्रज्ञा प्रबल होगी तो व्यक्ति अपना सच्चा मार्ग चुन लेगा. अंधविश्वास से दूर बिना भटके सुख शांति का मार्ग ढूँढ लेगा.
वाक़ई यह सदी बुद्ध के लिए हैं. बुद्ध आज भी ताज़ी हवा के झोंके की ख़ुशबू की तरह लगते हैं.
सबका मंगल हों… सभी प्राणी सुखी हो.
(लेखक: डॉ. एम एल परिहार)