सवाल: बौद्ध धर्म अब बडी संख्या में अनेक देशों में फैला हैं. वह कैसे हुआ?
जवाब: बुद्ध के 150 वर्ष बाद बौद्ध धर्म उतर भारत में फैल चुका था. फिर 262 BCE में सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाकर उसका प्रचार, उनके संपूर्ण राज्य में किया. बहुत से लोग बौद्ध धर्म की ऊँची नैतिकता व हिंदु जाती प्रथा विरोध से प्रभावित हुये. अशोक ने विशाल धर्म सभा का आयोजन कर भिक्षुओं को युरोप तक के देशों में प्रचार करने भेजा. इसमें सबसे सफल प्रयास श्रीलंका में हुआ. यह द्वीप बौद्ध धर्मी हुआ और आज तक बौद्ध हैं. और प्रयासों से बौद्ध धर्म दक्षिण तथा पश्चिम भारत, कश्मीर, दक्षिण बर्मा तथा थाईलैंड में पहुँचा. इसके 100 वर्ष बाद बौद्ध धर्म अफगानिसतान, उतर भारत के पहाडी इलाकों में पहुँचा जहाँ भिक्षु तथा व्यापारियों ने इसे मध्य एशिया व चीन में पहुँचाया. वहां से बौद्ध कोरीयो व जापान पहुँचा. बौद्ध धर्म एक मात्र ऐसा धम्म हैं जो विदेश से आकर चीन में जडे जमा सका. 12वीं सदी में श्रीलंका के भिक्षुओं की कोशिशों से बौद्ध धर्म विशेषत: बर्मा, थाईलैंड, लाओस, कंबोडीया में प्रभावशाली रहा.
सवाल: कब और कैसे तिब्बत बौद्ध हुआ?
जवाब: 8वीं शताब्दी में तिब्बत के राजा ने अपना एक दूत भारत से भिक्षु और बौद्ध शास्त्र लाने के लिये रवाना किया था. वहाँ बौद्ध धर्म प्रस्थापित तो हुआ पर बॉन संप्रदाय के पुरोहितों के विरोध के बीच बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म नही बन पाया. 11वीं शताब्दी में बडी तादाद में भारतीय बौद्ध भिक्षुओं तथा गुरुओं के तिब्बत आने से अंतत: बौद्ध धर्म वहाँ अपनी जडे जमा सका. तब से लेकर आज तक तिब्बत एक प्रमुख बौद्ध राष्ट्र बना रहा.
सवाल: तो बौद्ध धर्म तेजी से फैला.
जवाब: इतना ही नही बल्कि बौद्ध धर्म के प्रस्थापित धर्म पर बल या हमले से प्रचार करने के भी बहुत कम उदाहरण हैं. बौद्ध धर्म पहले से ही शांती के मार्ग का पालन करता रहा हैं, ऐसे में बल या तनाव से धम्म का प्रचार करना बौद्धों को कभी उचित नहीं लगा.
सवाल: बौद्ध धर्म के पहुँचने पर उन राष्ट्रों पर इसका क्या असर पडा?
जवाब: जब प्रचार करने वाले भिक्षुगण दूसरे देश पहुँचे तो बौद्ध धर्म के साथ ही उन्होने भारतीय संस्कृति की उतम प्रथाएँ भी वहाँ पहुँचाई. कभी भिक्षुक चिकित्सा शास्त्र के ज्ञाता थे तो उन्होने उस राष्ट्र में नयी उपचार प्रणाली निर्माण की, जो वहाँ पहले नहीं थी. श्रीलंका, तिब्बत तथा मध्य एशिया के कई भागों में लिखने की कला अवगत नहीं थी जिसे पहली बार भिक्षुओं ने उपलब्ध कराया और साथ ही आया नया ज्ञान और नई कल्पनाये. बौद्ध धर्म के आने से पहले तिब्बती और मंगोलियन काफी लडाकु थे जिन्हे बौद्ध धर्म ने शांतिपूर्ण व सुसंस्कृत बनाया. भारत में भी पशुबली की प्रथा पीछे पड गयी और जाती भेद कुछ समय के लिये कम सख्त रहा. आज भी जैसे बौद्ध धर्म युरोप व अमेरिका में फैल रहा हैं वैसे-वैसे पश्चिमी मनोविज्ञान पर उसका काफी प्रभाव पड रहा हैं.
सवाल: भारत के बाहर बौद्ध धर्म क्यों नही जीवित रहा?
जवाब: आज तक किसी ने इस दुर्भाग्यपुर्ण घटना का संतुष्टिकारक जवाब नही दिया. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि बौद्ध धर्म ऐसा भ्रष्ट हुआ कि इसे माननेवाले ही इसके विरोधक हुये, कुछ कहते हैं कि बौद्ध धर्म ने हिंदु धर्म की अधिकतम संकल्पनाये अंगीकृत की जिससे की वह हिंदु धर्म से भिन्न न रह सका. कुछ कहते हैं कि भिक्षु राजाओं पर निर्भर हो बडी संख्या में मठों में रहने लगे और फलस्वरूप सामान्य जन से दूर चले गये. कारण कुछ भी हो, 8वीं या 9वीं शताब्दी में भारत में बौद्ध धर्म गंभीर रूप से निचले स्तर तक पहुँच गया था. 13वीं सदी के मुगल आक्रमणों के दौरान बौद्ध धर्म नष्ट हो चुका था.
सवाल: पर भारत में क्या आज भी कुछ बौद्ध नहीं हैं?
जवाब: कुछ बौद्ध आज भी भारत में हैं. और 20वीं सदी से उनका फैलाव शुरु हुआ. 1956 में हिंदू जाती प्रथा से तंग आकर अस्पृश्यों के नेता डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली. तब से 80 लाख लोग बौद्ध हुये और उनकी संख्या बढती ही जा रही हैं.
सवाल: बौद्ध धर्म पश्चिम में कब पहुँचा?
जवाब: तीसरी शताब्दी में सिकंदर महान के भारत जीतने पर जो ग्रीक लोग भारत में स्थलांतरीत हुये वे शायद पश्चिम के पहले बौद्ध थे. मिलिंद-प्रश्न, जो बौद्धों का एक महान प्राचीन ग्रंथ हैं उसमें इंडों-ग्रीक राजा मिलिंद का भिक्षु नागसेन से हुआ संवाद शामिल हैं. 19वीं सदी के अंत तक जब पंडितों ने बौद्ध साहित्य का संस्करण व भाषांतर करना शुरु किया तब बौद्ध धर्म को पश्चिम में विशेष आदर एवं प्रशंसा प्राप्त हुई. 1900 की शुरुआत में कुछ पश्चिमी, स्वयं को बौद्ध कहलाने लगे और 1-2 भिक्षु भी हुये. 1960 से पश्चिमी बौद्धों की संख्या लगातार बढती रही और आज वो अधिकतर पश्चिमी राष्ट्रों में भले ही अल्पसंख्यक हैं मगर महत्वपूर्ण हैं.
सवाल: क्या आप विभिन्न बौद्ध धर्मों के बारे में कुछ कहेंगे?
जवाब: अपनी चरम ऊँचाई पर बौद्ध धर्म मंगोलिया से मालदीव, बल्ख से बाली तक फैला था, जिसमें उन्हे भिन्न संस्कृति के लोगों तक प्रचार करना पडा. यह सदीयों तक बना रहा जिसमें बौद्ध धर्म को लोगों के सामाजिक व बौद्धिक विकास के साथ समायोजित होना पडा. फलस्वरूप धम्म का सार बना रहा पर उसकी बाह्य अभिव्यक्ति बहुत भिन्न हुयी. आज बौद्ध धर्म की तीन प्रमुख शाखाएँ हैं – थेरवाद, महायान और वज्रयान.
सवाल: थेरवाद क्या हैं?
जवाब: थेरवाद का अर्थ हैं बडे लोगों की शिक्षा जो बुद्ध का सबसे प्राचीन व परिपूर्ण शास्त्र त्रिपिटक पर आधारित हैं. थेरवाद अधिक पारंपरिक व विहारों में केंद्रित शिक्षा हैं जो धम्म की मूल शिक्षा पर जोर देकर सादगी और तपस्या का रास्ता अपनाता हैं. आज थेरवाद मुख्यत: श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और उतरपूर्व में माना जाता हैं.
सवाल: महायान बौद्ध धर्म क्या हैं?
जवाब: BCE की पहली शताब्दी में बुद्ध की शिक्षा के कुछ परिणाम गहराई तक खोजे गये. तब समाज के विकास के साथ नये और संयुक्तिक ढंग से धर्म प्रचार जरूरी होता गया. इस नये विकास व व्याख्या से कई नई शाखाएँ बनी जिन्हे इकट्ठा महायान, यानि महामार्ग कहलाया जो सबके लिये हैं; न केवल गृहत्यागी, भिक्षु या भिक्षुणी के लिये हैं. समय के साथ महायान भारतीय बौद्ध धर्म का प्रधान रूप बना जो चीन, कोरिया, तायवान, वियतमान व जापान में माना जाता हैं. कुछ थेरवादी कहते हैं कि महायान यह बौद्ध धर्म का विकृत रूप हैं. जब की महायानी कहते हैं कि बुद्ध ने अनित्यता की प्रमुख शिक्षा दी हैं और उनकी व्याख्या उसी तरह विकृतिकरण नहीं हैं जैसे वृक्ष अपने फल का विकृतिकरण नहीं हैं.
सवाल: मैं अक्सर हीनयान शब्द देखता हूँ. इसका क्या अर्थ हैं?
जवाब: जब महायान विकसित हुआ तब वह स्वयं को बौद्ध धर्म की पुरानी शाखाओं से पृथक रखना चाहता था. तो उन्होने स्वयं को महायान (महामार्ग) और पुरानी शाखाओं को हिनयान (छोटा मार्ग) कहा. अतएव हिनयान एक साप्रदायिक संज्ञा हैं जो महायानियों ने थेरवादियों के लिए इस्तेमाल की हैं.
सवाल: वज्रयान के बारे में क्या कहेंगे?
जवाब: इस प्रकार का बौद्ध धर्म भारत में छटी और 7वीं सदी में उभरा जब भारत में हिंदु धर्म का पुनरुद्धार हो रहा था. फलस्वरूप कुछ बौद्धों पर हिंदु धर्म के कुछ पहलुओं का; खास कर देवताओं की पूजा व अनुष्ठान का प्रभाव पडा. 11वीं शताब्दी में तिब्बत में वज्रयान अच्छे से प्रस्थापित हुआ जिसमें समय के साथ सुधारणाये हुई. वज्रयान का अर्थ होता हैं हिरक मार्ग; एक कठिन तर्क, जिसका इस्तेमाल वज्रयानी अपनी कुछ शिक्षाओं के समर्थन में करते हैं. वज्रयाना पारंपरिक बौद्ध शास्त्रों के बजाय तंत्र पर अधिक निर्भर करते हैं जिससे इसे तंत्रयान भी कहा जाता हैं. वज्रयान अब मंगोलिया, तिब्बत, लद्दाख, नेपाल, भुतान और भारत में बसे तिब्बति लोगों में प्रचलित हैं.
सवाल: यह काफि संभ्रम पैदा करता हैं. अगर मैं बौद्ध धर्म का आचरण करना चाहता हूँ, तब इनमें से किस शाखा को अपनाऊँ?
जवाब: हम इसकी एक नदी से तुलना कर सकते हैं. अगर आप नदी की धाराओं से मुख को खोजेंगे तो काफि विभिन्न मुख पाओंगे. पर अगर आप मुख से उसकी धाराओं की तरफ चलेंगे तो आपको पता चलेगा की उनमें इतनी भिन्नता कहाँ से हैं. अगर आप बौद्ध धर्म का आचरण करना चाहते हैं तो आप मूल बौद्ध शिक्षा से शुरुआत करें – चार आर्य सत्य, आर्य अष्टांगिक मार्ग, ऐतिहासिक बुद्ध की जीवन कथा आदि. फिर यह शिक्षाएँ व संकल्पनाएँ कैसे विकसित हुई इसका अभ्यास करें और अपनी पसंद के अनुसार बौद्ध धम्म अपनाये. फिर आपको यह कहना असंभव होगा कि नदी की धाराएँ मुख से कम मूल्य की हैं या फिर मुख ही धाराओं का बिगडा हुआ रूप हैं.