HomeBuddha Dhammaबौद्धों में फाल्गुन पूर्णिमा का महत्त्व

बौद्धों में फाल्गुन पूर्णिमा का महत्त्व

बौद्धों में अन्य पूर्णिमाओं की भांति ही फाल्गुन पूर्णिमा का भी बड़ा महत्त्व है. जहाँ तक संभव हो इस दिन विहारों में जाकर और संभव न हो तो घर पर ही किसी भी भन्ते से (मोबाइल पर भी) अष्टशील ग्रहण करके उपोसथ करना चाहिए. ज्यादातर देखा जाता है कि लोग अपने सांस्कृतिक पर्वों को मनाने की अपेक्षा दूसरों के पर्व-त्यौहारों की मीन-मेख निकालने में, आलोचना-प्रत्यालोचना करने में समय बर्बाद ज्यादा करते हैं. मिथकों में हारे हुए लोगों को जबरदस्ती अपना नायक स्वीकार करते हैं और एक अथाह दुःख और निराशा से भरकर द्वेष को बढ़ाते रहते हैं. राजनीतिक चीजें और किताबी बातें कई बार वर्तमान को भी दुःखमय अनायास बना देती हैं, अतः समझदारी के साथ में विद्वान का ध्येय हितकारी व लाभकारी वचन को वर्तमान के अनुकूल बनाना होना चाहिए न कि उस वचन से द्वेष को बढ़ाना. अस्तु ये चर्चा का विषय है, आज की फाल्गुन पूर्णिमा के वैशिष्ट्य पर चर्चा करते हैं.

1. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन ही 823 ई. में पहली बार चीनी भाषा में धम्मपद का अनुवाद हुआ था और इस ग्रन्थ का हमारे बौद्ध धम्म में महत्त्वपूर्ण स्थान है. वहीं से धम्मपद महोत्सव मनाने की परम्परा का आरम्भ हुआ, अतः आज का दिन धम्मपद महोत्सव के रूप में स्मृत किया जाता है.

2. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन राजकुमार सिद्धार्थ सम्यक सम्बुद्ध होकर पहली बार 20 हजार भिक्खुओं के साथ कपिलवस्तु पधारे थे. नगर में भिक्षाटन करते हुए लोगों को उन्होंने देशना दी. महाराज शुद्धोदन ने भिक्खु संघ को भोजन के लिए आमंत्रित किया. उन्हें देखकर यशोधरा ने राहुल से ‘नरसीह गाथा‘ के माध्यम से उनकी शारीरिक और चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन किया और नरों में सिंह उन सम्यक सम्बुद्ध से राहुल का उत्तराधिकार माँगा. कपिलवस्तु के राजप्रासाद में ही राहुल की प्रव्रज्या हुई और भदन्त सारिपुत्र राहुल के आचार्य बनाए गए. विगत कई वर्षों से उत्तर भारत के कुछ राजनीतिक लोग कपिलवस्तु आगमन की घटना को कार्त्तिक अमावस्या से जोड़ रहे हैं, जो निहायत ही दूसरी परम्पराओं के पर्व-त्यौहारों को जबरदस्ती बौद्ध परम्परा में मिलावट करने का कुत्सित प्रयास मात्र है. हमारे यहाँ उपोसथ के अलावा कोई धार्मिक पर्व नहीं है, बाकि समय-समय पर विभिन्न बौद्ध राजाओं द्वारा बड़े-बड़े जलसे, धम्म जुलूस निकाले जाते थे जो भारत में आज अन्य परम्पराओं ने आत्मसात कर लिए हैं.

3. भाद्रपद पूर्णिमा को भिक्खुणी संघ बना और फाल्गुनी पूर्णिमा को महाप्रजापति गौतमी की प्रव्रज्या हुई और विश्व में पहली भिक्खुणी बनने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ.

4. राजकुमार सिद्धार्थ के भाई और महाप्रजापति गौतमी के पुत्र नन्द की प्रव्रज्या भी फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन ही हुई थी, उसके बारे में विवेचना से सुंदरता के साथ आप महाकवि अश्वघोष के सौंदरनन्द नाटक में पढ़ सकते हैं.

5. आज जिस पालि साहित्य को हम देख और पढ़ पा रहे हैं, उसे पहली बौद्ध संगीति में भन्ते उपालि और भन्ते आनन्द के नेतृत्व में संगायित किया गया था. भन्ते आनन्द की प्रव्रज्या भी आज ही के दिन हुई.

6. आज के दिन को हमारी भोटी/तिब्बती परम्परा महाप्रातिहार्य पर्व के रूप में मनाती है. इस दिन भगवान बुद्ध द्वारा प्राणियों के कल्याण के लिए महाप्रातिहार्य को प्रदर्शित किया गया.

ऐसी बहुविध पावनी फाल्गुनी पूर्णिमा की आप सभी को कोटिशः मंगलकामनाएँ.

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