सवाल: बाकि धर्म अच्छाईयों व बुराईयों की कल्पना ईश्वर के निर्देशों के अनुसार मानते हैं. बौद्ध अगर ईश्वर में विश्वास नही रखते तब वह अच्छे और बुरे में कैसे भेद करते हैं?
जवाब: काया, वाचा एवं मन से किया गया भी कृत्य लोभ, मोह या द्वेष से चलित हैं, या हमे निर्वाण से दूर ले जाता हैं तब वह अकुशल हैं और काया, वाचा एवं मन अगर अलोभ, मैत्री व प्रज्ञा से उत्पन्न हैं या निर्वाण के करीब ले जाता हैं तब वह कुशल हैं. ईश्वर केंद्रीय धर्म में अच्छाई और बुराई को जानने के लिए जैसा निर्देशित किया हैं वैसे पालन होता हैं. मनुष्य केंद्रित बुद्ध धर्म में हमें गहरी समझ और जागृती विकसित करनी होती हैं. समझ से उत्पन्न शील यह निर्देशोनुसार किये गये आचरण से निश्चित ही बलवान होता हैं. कुशल व अकुशल में भेद करने के लिये बौद्ध तीन बातें परखते हैं:
कर्म का उद्देश्य (चेतना), कृत्य का कर्ता पर होने वाला परिणाम, कृत्य का औरों पर होने वाला परिणाम. अगर उद्देश्य दान, मैत्री और प्रज्ञा से जन्मा हैं, अगर इससे मैं अधिक दानी, मैत्रीपूर्ण व प्रज्ञापूर्ण होता हूँ तब मेरे कर्म कुशल, अच्छे व शुद्ध हैं.
निश्चित ही इसके कई तल हैं. कभी मैं अच्छे उद्देश्यों से कर्म करता हूँ पर इससे मेरा स्वयं का या दूसरों का भला नही होता. कभी मेरे उद्देश्य अच्छे नही पर इससे दूसरों का भला होता हैं. कभी मेरा कृत्य अच्छा हैं, जिससे मुझे लाभ और दूसरों को हानी पहुँचती हैं. बुद्ध इसे मिश्रित कृत्य या बुरा अच्छा और जो बहुत अच्छा नहीं हैं इसका मिश्रण कहते हैं. जब उद्देश्य बुरा हैं और उससे ना मेरा ना दूसरों का हित होता हैं, ऐसा कर्म अकुशल हैं. और जब मेरा उद्देश्य अच्छा हैं तथा मेरे कृत्यों से मेरा और दूसरों का भला होता हैं तब यह कर्म पूर्णत: कुशल हैं.
सवाल: तो क्या बुद्ध धर्म में नैतिकता के कुछ नियम हैं?
जवाब: हाँ, हैं. पंचशील बौद्धों एक चरित्र का आधार हैं. प्रथम शील हैं, हिंसा या जीवों को हानी न पहुँचाना, दूसरा हैं चोरी न करना, तीसरा हैं व्यभिचार न करना, चौथा हैं असत्य न बोलना और पांचवा हैं मादक द्रव्यों का सेवन न करना.
सवाल: पर कभी हिंसा करना अच्छा हैं जैसे बिमारी के किटाणुओं को या किसी हमलावर को मारना?
जवाब: यह आपके लिये अच्छा होगा पर वह किटाणु या वह व्यक्ति जिसकी हत्या होगी उसका क्या? वे भी जीना चाहते हैं ठीक आपकी तरह. जब आप बिमारी के किटाणु मारना चाहते हैं तब आपका उद्देश्य आत्मरक्षा (अच्छा उद्देश्य) और नाश करना (बुरा उद्देश्य) से मिश्रित हैं. तो कभी-कभी हिंसा जरूरी हो सकती हैं पर पूर्णत: कुशल कभी नहीं.
सवाल: आप बौद्ध चिंटियों और कीडों से ज्यादा संबंधित दिखते हैं.
जवाब: बौद्ध धर्म में सर्वव्यापी करुणा विकसित करने की कोशिश करते हैं. हम विश्व को एक समिष्ट की तरह देखते हैं. जिसमें हर वस्तु या जीव का अपना स्थान और कार्य हैं. हम मानते हैं कि सृष्टि का संतुलन बिगाडने या नष्ट करने के बारे में हमें सावधान रहना चाहिये. प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक उपयोग, उसे जीत कर अपने अधिकारों में रखने की कोशिश, इससे सृष्टि चक्र बिगड गया. वायु प्रदुषित हो रही हैं, नदियां प्रदुषित या मृत हुई, अनेकों जीव व वृक्ष नष्ट होने को हैं, पहाडों की ढलाने स्खलित होने से उपजाऊ नही रही. यहाँ तक की हवामान भी बदल रहा हैं. अगर लोग तोड-फोड या हिंसा में उत्सुक न होते तो यह भयंकर परिस्थिती न आती. हमें जीवन के प्रती सम्मान का भाव विकसित करना चाहिए. और यही हैं पहला शील.
सवाल: बौद्ध धर्म गर्भपात के बारे में क्या कहता हैं?
जवाब: बुद्ध के अनुसार गर्भ धारणा के समय या तुरंत बाद जीवन शुरु होता हैं और इसलिए गर्भपात हत्या हैं.
सवाल: लेकिन अगर किसी महिला पर बलात्कार होता हैं और वह जानती हैं कि बच्चा व्यंग होगा तो क्या ऐसे गर्भ को रोकना उचित नही हैं?
जवाब: बलात्कार से उत्पन्न बच्चा भी जिने का और प्रेम पाने का उतना ही हकदार हैं जितना की कोई भी बच्चा. उसके पिता अपराधी होने की वजह से बच्चे की हत्या नही होनी चाहिए. व्यंग बच्चे का जन्म धक्कादायी (Shocked) हैं जब इनकी हत्या जायज हैं तो उन्हे क्यों न मारा जाये जों व्यंग या पंगु पैदा हुये हैं? ऐसे हालात हो सकते हैं जिसमें माँ की जान बचाने के लिए गर्भपात ही मानवी होगा. पर सच्चाई यह हैं कि अधिक गर्भपात सहुलियत, लोकलज्जा से बचने के लिये या जन्म में देरी के लिये किये जाते हैं. बौद्धों को यह हत्या के कारण बेतुके लगते हैं.
सवाल: अगर कोई आत्महत्या करता हैं तो क्या वह पहले शील का भंग करता हैं?
जवाब: जब कोई दूसरे की हत्या करता हैं तो वह क्रोध, उद्वीग्नता, लोभ या कुछ नकारात्मक भावनाओं से करता हैं. जब कोई स्वयं की हत्या करता हैं तब वह कुछ ऐसे कारणों से या अन्य नकारात्मक भाव जैसे उदासी या निराशा से कर सकता हैं. जैसे हत्या दूसरे के प्रति नकारात्मक भाव से होती हैं वैसे ही आत्महत्या स्वयं के प्रति नकारात्मक भाव से होती हैं और इसलिए प्रथम शील का भंग होता हैं. जो आत्मघात का विचार करते हैं या कोशिश करते हैं वे गलत करते हैं. उन्हे हमारे सहारे की व मदद की जरूरत हैं. हमें उन्हे समझाना चाहिये की आत्महत्या या हताशा होने से समस्या आगे चलती रहेंगी, हल नही होगी.
सवाल: मुझे दूसरे शील के बारे में बताइये.
जवाब: जब हम यह शील ग्रहण करते हैं तब ऐसा कुछ भी नही स्वीकारते जो हमारा नही हैं. दूसरा शील, अपने लोभ पर काबु और दूसरों की नीजता/संपती का सम्मान करना हैं.
सवाल: तीसरा शील हैं व्यभिचार न करना. व्यभिचार क्या हैं?
जवाब: अगर हम चालबाजी, मानसिक दबाव या बल से किसी को अपने साथ कामभोग करवाते हैं तब उसे व्यभिचार कहा जा सकता हैं. जारकर्म (Adultery) भी व्यभिचार हैं क्योंकि विवाह में हमने अपने जीवनसाथी से वफादारी निभाने का वायदा किया होता हैं. जब हम परपुरुष/परस्त्री के साथ संबंध बनाते हैं तब हम अपने साथी से किया वायदा व विश्वास तोडते हैं. कामभोग हमारे प्रेम और अपनेपन की अभिव्यक्ति हो, और जब ऐसा होता हैं तब वह हमें शारीरिक व मानसिक आरोग्य प्रदान करता हैं.
सवाल: क्या विवाह से पहले कामभोग करना व्यभिचार हैं?
जवाब: अगर दो व्यक्तियों के बीच प्रेम व सहमति हैं तब कामभोग व्यभिचार नही हैं. मगर इसे नही भूलना चाहिए कि कामभोग से प्रजोत्पादन होता हैं और जब कोई कुँआरी लडकी गर्भवती होती हैं तो उसे बहुत समस्याये झेलनी पडती हैं. कई प्रोढ व समझदार लोग शादि के बाद ही कामभोग करते हैं.
सवाल: एक विवाहित मनुष्य अविवाहित स्त्री से संबंध बनाता हैं तो वह तीसरें शील का भंग हैं. पर स्त्री का क्या? उसका शील भंग हुआ?
जवाब: कोई एक कर्म अच्छा हैं या बुरा हैं यह उद्देश्य पर निर्भर करता हैं. अगर स्त्री को पत नही कि पुरुष विवाहित हैं तब उससे शील भंग नही हुआ. लेकिन अगर उसे पुरुष के विवाहित होने का अंदाजा हैं पर वह इसे स्वीकारना टालती हैं ताकि वह जिम्मेदार ना रहे, तब वह शील भंग भले ही न हो पर उसके लिए नकारात्मक कर्म अवश्य हैं. जैसे की पहले कहा गया, कोई भी कर्म शत प्रतिशत अच्छा, बुरा और ना-अच्छा ना-बुरा का मिश्रण होता हैं. हमने हमेशा प्रमाणिक, सत्य और सरल ढंग से कृती करनी चाहिये.
सवाल: बौद्ध धर्म गर्भ निरोध पर क्या कहता हैं?
जवाब: कुछ धर्म मानते हैं कि कामभोग का प्रजोत्पादन के सिवा कोई कारण होना अनैतिक हैं, अतएव वे गर्भनिरोध के सभी उपायों को गलत मानते हैं. बौद्ध धर्म कामभोग के अन्य कई कारणों को स्वीकारता हैं – जैसे प्रजोत्पादन, आनंद, प्रेम व अपनेपन की अभिव्यक्ति आदि. इस वजह से बौद्ध धर्म गर्भपात को छोड सभी गर्भनिरोध के उपायों को सही समझता हैं. वास्तव में बौद्ध धर्म कहता हैं कि जिस दुनिया में जनसंख्या विस्फोट एक बडी समस्या बन चुका हैं वहां गर्भनिरोध एक सच्चा वरदान हैं.
सवाल: मगर चौथे शील का क्या? क्या झूठ बोले बगैर जीना संभव हैं?
जवाब: अगर समाज में या व्यापार में झूठ के बगैर चलना संभव नही हैं तो ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था को बदलना चाहिए. बौद्ध व्यक्ति वह हैं जो सरलता और प्रमाणिकता से व्यवहारिक समस्याओं को सुलझाने का संकल्प लेता हैं.
सवाल: आप एक बगीचे में बैठे हैं और एक घबराया सा व्यक्ति वहा से दौडता आगे जाता हैं और कुछ मिनटों में दूसरा आदमी छुरा लिये उसके पीछे दौडता हैं और आपसे पूछता हैं कि वह पहला आदमी किस रास्ते गया; तब आप सच बोलेंगे या झूठ?
जवाब: अगर मुझे विश्वास हैं कि दूसरा आदमी पहले की हत्या करेगा तो एक विवेकवान बौद्ध की तरह मैं झूठ बोलने में नही कतराउंगा. जैसा हमने कहा कि, अच्छा या बुरा, यह उद्देश्य से तय होता हैं. ऐसी हालत में प्राण बचाने का अच्छा कर्म असत्य वाणी के बुरे कर्म से कई गुना अच्छा हैं. अगर असत्य वाणी, चोरी या मादक द्र्व्यों के सेवन से मैं प्राण बचा सकता हूँ तब ऐसा करना चाहिये. मेरे बिखरे हुये शील को मैं दुबारा साध सकता हूँ, पर जो किसी के प्राण गये उसे वापिस नही ला सकता. लेकिन इस बात को शील भंग करने की सहुलियत के लिये कभी इस्तेमाल ना करें. शील को बहुत सतर्कता के साथ साधना होता हैं जिसे केवल अपवादात्मक परिस्थितियों में ही बदल सकते हैं.
सवाल: पांचवा शील कहता हैं कि हम मादक द्रव्यों का सेवन न करें. क्यों न करें?
जवाब: लोग आमतौर से स्वाद के लिये नही पीते. अकेले में वे तनाव से छुटकारा पाने के लिये और समूह में साथ निभाने के लिये पीते हैं. पर शराब की छोटी-सी मात्रा भी स्व-जागृती और चेतना की दशा बिगाड देती हैं. अधिक मात्रा में तो वह पीनेवाले को बुरी तरह डगमग़ा देती हैं. बौद्ध कहते हैं कि अगर आप पांचवा शील भंग करते हैं तब आप सभी शील भंग कर सकते हैं.
सवाल: पर थोडी सी शराब पीना शील भग नही होगा. यह छोटी सी तो बात हैं.
जवाब: सच में यह छोटी सी बात ही हैं पर अगर आप छोटी सी बात नहीं कर सकते तब आपका संकल्प ज्यादा मजबूत नहीं हैं, हैं ना?
सवाल: क्या धुम्रपान करना पांचवे शील का भंग होगा?
जवाब: धुम्रपान से शरीर पर निश्चित ही बुरा असर पडता हैं लेकिन इसका असर ज्यादा नहीं होता. आप धुम्रपान करते हुए जागृत, स्मृतिमान तथा केंद्रित रह सकते हैं. तो धुम्रपान उचित तो नहीं हैं पर इससे शील भंग भी नही होगा.
सवाल: पंचशील नकारात्मक हैं. इसमे क्या नहीं करना यह बताया गया हैं. इसमें क्या करना चाहिए यह नही बताया गया.
जवाब: पंचशील बौद्ध नैतिकता का आधार हैं. पर यही सब कुछ नहीं हैं. अपनी नकारात्मकता को पहचानते हैं और उसे रोकने की कोशिश करते हैं. पंचशील इसलिए हैं. गलत करना रोकने पर हम अच्छे कार्य का प्रयास करते हैं. उदाहरण के तौर पर चौथे शील को ले. बुद्ध कहते हैं शुरुआत में हमें असत्य वाणी से विरत रहना हैं. इसके पश्चात हमे सत्य, मधुर, विनम्रता से तथा सही समय पर बोलना चाहिए.
“अस्त्य वाणी को त्याग वह सत्यवचनी, विश्वसनीय, भरोसेमंद और दूसरों को धोखा न देनेवाला होता हैं. निंदाजनक वाणी को त्यागने से वह यहाँ जो सुना उसे वहाँ नहीं दोहराता और वहाँ जो सुना उसे यहाँ नहीं दोहराता जिससे की लोगों में विवाद हो. वह बिखरे हुए लोगों की दूरियां कम करता हैं और जो पहले से मित्र हैं उनकों और करीब लाता हैं. वह सामंजस्य उसका आनंद हैं, सामंजस्य उसकी खुशी हैं, सामंजस्य उसका प्रेम हैं, इसी उद्देश्य से वह वाणी का उपयोग करता हैं. कठोर वाणी को त्याग वह निर्दोष, मधुर, सहमत होने जैसी, ह्रदय तक पहुँचने वाली, शिष्ट और सबकों पसंद आने वाली वाणी का उपयोग करता हैं.” M.I. 179