HomeBuddha Dhamma क्या गौतम बुद्ध भगवान हैं?

 क्या गौतम बुद्ध भगवान हैं?

भगवा या भगवान शब्द व्यक्ति के गौरव व गरिमा के विराट स्वरूप को दर्शाता है. यह नाम या रंग का प्रतीक नहीं है बल्कि गुण है. भगवान पैदा नहीं होते है, न अवतरित होते है बल्कि अपने सदाचार व सदगुणों के बल पर स्वयं बनते है. लेकिन अब इस गौरवशाली शब्द के अर्थ का अनर्थ हो गया है.

भगवा (पालि), भगवान (संस्कृत).

भगवान, भगवा, भगवतो शब्द तिपिटक (त्रिपिटक) बौद्ध ग्रंथों में हजारों बार आते हैं. जैसे- एक समय भगवा जेतवने विहरते.

बुद्ध की वंदना में ये भाव होते हैं…

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्मबुद्धस्स

अर्थात उस भगवा/भगवत/ भगवान अरहत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार है.

इतिपि सो भगवा सम्मसम्बुद्धो, बाहुल्लिको, सुगतो, तथागतो, लोकविदू..

भग्ग + वान = भगवान या भग्नवान

भग या भग्ग = नष्ट करना, भंग करना

वा = मन के छह विकार (वासना)

जिसने मन के विकारों, वासनाओं को नष्ट कर दिया. जिसने राग- द्वेष -मोह (तृष्णा) को नष्ट कर दिया, जो अरहत हो गए, बुद्ध हो गए. इसलिए तथागत को भगवान कहा गया है.

भग्ग रागो ति..भगवा…

अर्थात – राग भग्न कर लिया इसलिए भगवान.

भग दोसो ति..भगवा…

दोष भग्न कर लिया इसलिए भगवान.

भग्ग मोहो ति.. भगवा…

मोह भग्न कर लिया इसलिए भगवान.

भगवति नेत नाम मातरा, ना पितरा, न भातरा, न समण ब्राह्मणेहि, न देवताहि कत...

अर्थात ‘भगवान’ नाम माता-पिता, भाई-बहन, श्रमण-ब्राह्मण या देवता किसी का दिया हुआ नहीं है बल्कि जिन्होंने परम सत्य का साक्षात्कार कर बुद्धत्व को प्राप्त किया. इसलिए बुद्ध को भगवान कहा जाता है.

भगवा/काषाय रंग का चीवर कैसे बना?

भगवान बुद्ध ने भिक्खु आनंद को प्रकृति के रंगों को प्रकट करता हुआ चीवर का रंग ऐसा करने को कहा जो ज्ञान, श्रम, शौर्य व वैराग्य को प्रकट करता हो. जो मन के विकारों को नष्ट कर मन पर विजय का प्रतीक हो. और वृक्ष की छाल से रंगा हुआ जो रंग सामने आया वह ‘भगवा’ ‘काषाय’ रंग कहलाया.

बौद्ध साहित्य की कई अच्छी शिक्षाओं, पात्रों व शब्दों को चुराकर बाद में हर किसी के साथ चिपका कर विकृत कर दिया. जैसे देवी, देवता, आर्य, साधु, भगवान आदि शब्द और कई उत्सव व पर्व. यही नहीं स्वयं बुद्ध को ही अवतार घोषित कर दिया जिन्होंने अवतारवाद का विरोध किया था.

ताज्जुब यह है कि तथागत की शिक्षाओं को जाने बिना, सच्चाई को जाने बिना दूसरों द्वारा विकृत किए स्वरूप को देखकर ही हमारे कुछ लोग इन शब्दों के प्रयोग से एतराज करते हैं.

आज भगवान का अर्थ माना जाता है ईश्वर या परमात्मा (God). सृष्टि की रचना करने वाला, संसार का पालन और इसका संहार करने वाला. ऐसी शक्ति या ईश्वर जो पूजा पाठ, भजन कीर्तन, जाप मंत्र, तीर्थयात्रा से प्रसन्न होता है. भक्तों के पाप माफ करता है. मन्नतें पूरी करता है आदि.

लेकिन बुद्ध इस तरह के भगवान के विकृत रूप के दायरे में कतई नहीं आते है.

उस काल में ‘भगवान’ सिर्फ बुद्ध और महावीर को ही कहा गया. लेकिन जैसा कि बुद्ध कहते है हर व्यक्ति में बुद्ध या भगवान बनने की क्षमता है इसलिए इस अवस्था को कोई भी प्राप्त कर सकता है.

‘भगवान’ शब्द गौरवशाली इतिहास और गरिमा का प्रतीक है. पराया नहीं, अपना है. इसका परहेज या विरोध करने की बजाए बार-बार प्रयोग करना चाहिए ताकि सच्चाई सामने आ सके और फिर से भगवान बुद्ध की मानव के कल्याणकारी शिक्षाओं से जगत अपना कल्याण कर सकें.

सबका मंगल हो…..सभी प्राणी सुखी हो.

(आलेख: डॉ.एम एल परिहार)

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