“भन्ते नागसेन! क्या भगवान ने बुद्ध होकर अपने सारे पापों को जला दिया था, या कुछ उनमें बचें भी रहे थे?”
“महाराज! सभी पापों को जलाकर ही भगवान बुद्ध हुए थे. उनमें कुछ भी पाप बचा नहीं था.”
भन्ते! उन्हें क्या कोई शारीरिक कष्ट हुआ था?”
“हां महाराज, राजगृह में भगवान के पैर में एक पथ्थर का टुकड़ा चुभ गया था. एक बार उन्हें लाल आंव भी पडने लगा था. पेट गडबडा जाने से जीवक ने उन्हें एक बार जुलाब भी दे दिया था. एक बार वायु के बिगड़ जाने से महाथेर आनन्द ने उन्हें गरम पानी लाकर दिया था.”
“भन्ते! यदि भगवान ने अपने सभी पापों को जला दिया था तो यह बात झूठी उतरतीं हैं कि उन्हें ये शारीरिक कष्ट उठाने पडे थे. और यदि उन्हें यथार्थ में ये शारीरिक कष्ट उठाने पडे थे तो यह बात झूठी ठहरतीं हैं कि उन्होंने अपने सभी पापों को जला दिया था। भन्ते! बिना कर्मों के सुख नहीं हो सकता. कर्मो के होने से ही सुख या दुख होते हैं.
“यह भी एक दुविधा आपके सामने रखी है इसे खोल कर समझावें.”
“नहीं महाराज! सभी वेदनाओं का मूल कर्म ही नहीं है. वेदनाओं के आठ कारण है जिनसे संसार के सभी जीव सुख-दुख भोगते हैं. वे आठ कौन से हैं?
- वायु का बिगड़ जाना
- पित का प्रकोप होना
- कफ का बढ जाना
- सन्निपात का दोष हो जाना
- ऋतुओं का बदलना
- बाह्य प्रकृति के दूसरे प्रभाव
- संक्रमण से और
- अपने कर्मों का फल होना
इन आठ कारणों से प्राणी नाना प्रकार के सुख-दुख भोगते हैं. महाराज! इन्हीं आठ कारणों से.
“महाराज! जो ऐसा मानते है कि कर्म के ही कारण लोग दुख भोगते हैं, इसके अलावा कोई दूसरा कारण नहीं है, उनका यह मानना गलत है.”
“भन्ते नागसेन! तो भी दूसरे सात कारणों का मूल कर्म ही हैं, वे सभी कर्म के कारण होते हैं.”
“महाराज! यदि सभी दुख कर्म के ही कारण से उत्पन्न होते हैं तो उनकों भिन्न-भिन्न प्रकारों में बांटा जा सकता है.
महाराज! वायु बिगड़ जाने के दस कारण होते है:
- सर्दी
- गर्मी
- भूख
- प्यास
- अति ज्यादा भोजन
- अधिक खडा रहना
- अधिक परिश्रम करना
- बहुत तेज चलना
- बाह्य प्रकृति के दूसरे प्रभाव और
- अपने कर्म का फल
इन दस कारणों में पहले नौ पूर्व जन्म या दूसरे जन्म में काम नहीं करते, किंतु इसी जन्म में करते हैं. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि सभी सुख-दुख कर्म के ही कारण से होते हैं.
“महाराज! पित के कुपित होने के तीन कारण है:
- सर्दी
- गर्मी और
- बेवक्त भोजन करना
महाराज! कफ बढ जाने के तीन कारण है:
- सर्दी
- गर्मी और
- खाने-पीने में गोलमाल करना
इन तीनों दोषों में किसी के बिगड़ने से खास-खास कष्ट होते हैं. ये भिन्न-भिन्न प्रकार के कष्ट अपने कारणों से ही उत्पन्न होते है. महाराज! इस तरह, कर्म के फल से होने वाले कष्ट नहीं होते हैं. अधिक तो वे दूसरे और कारणों से होने वाले हैं. मूर्ख लोग सभी को कर्म के फल से ही होने वाले समझ लेते हैं. बुद्ध को छोडकर कोई दूसरा यह बता नहीं सकता कि किसी कर्म का फल कहां तक हैं.
(ग्रंथ :- मिलिंदपंह पृष्ठ सं :- 146/47)