HomeBuddha Dhammaसिंधु घाटी से गंगा तट तक - श्रमण बौद्ध धम्म की यात्रा

सिंधु घाटी से गंगा तट तक – श्रमण बौद्ध धम्म की यात्रा

भारत में इतिहास और इतिहास बोध को बर्बाद करना एक बड़ा प्रोजेक्ट रहा है। अगर भारत में सही इतिहास सामने आ जाये तो वर्तमान में प्रचलित धर्म और उसके सारे आख्यान सिर के बल खड़े हो जाएँगे। भारत मूल रूप से श्रमण धर्मों से शासित देश रहा है। भारत की प्राचीनतम सभ्यता और संस्कृति असल में श्रमण सभ्यता और संस्कृति रही है।

पुरातात्विक खोजों से जब मोएनजोदारो का पता चला तब समझ में आया कि मानव सभ्यता का सबसे पुराना इतिहास भारत में घटित हुआ है। भारत में हड़प्पा सभ्यता दुनिया की सबसे प्राचीन नगरीय सभ्यता है। और मज़े की बात ये है कि ये असल में एक बौद्ध सभ्यता है।

मोएनजोदारो की खोज असल में एक बौद्ध स्तूप की खुदाई करते हुए हुई थी। अंग्रेज अधिकारी जब रेलवे लाइन बिछाने के लिए खुदाई कर रहे थे तब मोएनजोदारो की ईंटें मिलनी शुरू हुईं। वो तो भला हो अंग्रेजों का कि उन्होंने इतिहास और पुरातत्व के महत्व को समझकर इस इलाक़े को सुरक्षित करके सावधानी से पुरातात्विक रिसर्च शुरू की।

इन तस्वीरों को देखिए। इसमें एक बड़ा गुंबद नज़र आता है। छोटा सा बच्चा भी बता सकता है कि ये एक बौद्ध स्तूप है। साथ ही यूनेस्को कहा रहा है कि ये एक बौद्ध स्तूप है। बौद्ध स्तूप शब्द को मैंने लाल रंग से अंडरलाइन किया है इसे देखिए। अगर आपने साँची का बौद्ध स्तूप देखा है तो आपको समझ में आएगा कि बौद्ध स्तूप के चारों तरफ़ विहारों की रचना मिलती है। ये विहार जिस डिज़ाइन पर बनते हैं वैसी डिज़ाइन मोएनजोदारो के बड़े स्तूप के चारों परफ़ मिलती हैं।

लेकिन भारत के महान इतिहासकार इस विषय में मुँह नहीं खोलते। वे डरते हैं कि हड़प्पा अगर बौद्ध सभ्यता साबित हो गई तो फिर वेदों की प्राचीनता का क्या होगा? मैक्सम्यूलर ने वेदों की जो तारीख़ तय की है वह ईसा से 1500 साल पहले जाती है। इसी क्रोनोलॉजी को ज़्यादातर लोग मानते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि ऋग्वेद गौतम बुद्ध से एक हज़ार साल पुराना है। हालाँकि भाषा और लिपि के हिसाब से ऋग्वेद बुद्ध से काफ़ी बाद का सिद्ध होता है। लेकिन अगर मैक्सम्यूलर की बात मान भी लें तो ऋग्वेद गौतम बुद्ध से एक हज़ार साल पहले कंपोज़ होना शुरू हुआ।

अगर लंकावतार सूत्र और महावंश जैसे बौद्ध ग्रंथों में दी गई ‘प्राचीन बुद्ध परंपरा’ की बात करें तो बौद्ध इतिहास हड़प्पा-पूर्व के काल में पहुँच जाता है। बौद्ध ग्रंथों में 28 बुद्धों का ज़िक्र आता है। इसी तरह जैनों के 24 तीर्थंकरों का ज़िक्र आता है। महावीर चौबीसवें तीर्थंकर हैं, उनके पहले भगवान पार्श्वनाथ तीर्थंकर हुए हैं। ये तीर्थंकर पिता पुत्र की तरह नहीं थे, एक के बाद दूसरा तीर्थंकर तत्काल नहीं बल्कि एक दो या तीन या चार सौ साल बाद होता था। इस तरह भगवान महावीर और भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) के बीच 22 तीर्थंकर हुए हैं। अगर इनके बीच 300 साल का अंतर रहा हो तो भी आदिनाथ और महावीर तक का इतिहास लगभग 4800 साल का है।

दूसरी तरफ़ यही हिसाब पहले बुद्ध ‘तनहंकर बुद्ध’ और अंतिम बुद्ध ‘गौतम बुद्ध’ के बीच लगाया जाये तो ये इतिहास 5600 साल का निकलता है। सरल शब्दों में इसका अर्थ ये हुआ कि पहले बुद्ध का जन्म गौतम बुद्ध से 5400 साल पहले हुआ होगा। इसका ये भी अर्थ हुआ कि पहले बुद्ध का जन्म ईसा से 5900 साल पहले हुआ होगा।

इसको ध्यान से समझिए। हड़प्पा सभ्यता की शुरुआत का समय भी यही निकलता है। हड़प्पा सभ्यता का काल ईसा पूर्व से 3300 से 1300 ईसा पूर्व का माना जाता है। अगर ठीक से देखें तो ये बौद्ध परंपरा का कालखंड है। पहले बुद्ध (तनहंकर) से लेकर गौतम बुद्ध तक के 5400 सालों में बहुत सारे बड़े बड़े बदलाव हुए। सबसे बड़ा बदलाव ये कि इस पूरे दौर में हड़प्पा की पहली नगरीय सभ्यता नष्ट होती है और दूसरे नगरीकरण की लहर के साथ गंगा तट पर प्रकट होती है। सिंधु तट से गंगा तट तक आते आते श्रमण सभ्यता का बहुत सारा इतिहास नष्ट हो जाता है। उसके बाद आर्यों के आक्रमण और संघर्ष और मिलावट के बाद बचा खुचा इतिहास भी लुप्त होने लगता है। इतिहास का ये लोप इतना योजनापूर्वक होता है कि अठारहवीं शताब्दी तक इतिहासकारों को पता ही नहीं था कि गौतम बुद्ध भारत में जन्में हैं और बौद्ध धर्म भारत में जन्मा है।

इस उदाहरण से आप समझ सकते हैं कि भारत में बौद्ध धर्म को कैसे ख़त्म किया गया है। बौद्ध धर्म का इतिहास और महिमा ख़त्म करने की वह हज़ारों साल पुरानी मानसिकता अभी भी जारी है। भारत का इतिहास और पुरातत्व विभाग अभी भी हड़प्पा और मोएनजोदारो को बौद्ध सभ्यता कहने से घबराता है।

इतने बड़े विस्तार में जब आप जाएँगे तो आपको पता चलेगा कि भारत में जिन धर्मों और दर्शनों का इतिहास खो गया वे वास्तव में इसी श्रमण परंपरा के धर्म और दर्शन थे। बौद्ध और जैन दो प्रमुख श्रमण धर्म रहे हैं। आजीवक धर्म भी नग्न मुनियों/भिक्षुओं का धर्म था। चार्वाक और लोकायत परंपरा का काफ़ी उल्लेख मिलता है। ये सब भौतिकवादी और निरीश्वरवादी भारतीय दर्शन हैं। ये भारत के सबसे पुराने और मौलिक दर्शन हैं।

वेदों के बाद जो उपनिषद् लिखे गये हैं, उन्हें ध्यान से देखिए। आपको साफ़ नज़र आएगा कि ऋग्वेद से उनकी लड़ाई चल रही है। असल में ऋग्वेद लिखने वाले जब भारत में आकर बस गये तब उन्होंने श्रमणों के दर्शनों को अपनी भाषा में लिखना शुरू किया। इसी में एक महान संश्लेषण हुआ और वैदिक परंपरा ने श्रमण सिद्धांतों को अपने अनुकूल बदलकर अपनाना शुरू किया। इसीलिए आपको वेदों और उपनिषदों में हज़ारों विरोध नज़र आयेंगे। रामधारी सिंह दिनकर ने भी कहा है कि उपनिषद् असल में भारत के श्रमण धर्मों से काफ़ी कुछ उधार लेते हैं।

मेरा विश्लेषण यह कहता है कि असल में ‘उपनिषद्’ श्रमण परंपरा के ज्ञान को वैदिक परम्परा में अनुवाद करने का प्रोजेक्ट था। उपनिषद् शब्द ही श्रमणों का शब्द है। जैनों में उपासना और बौद्धों में उपोसथ शब्द आज भी प्रचलित है। इसका अर्थ होता है मुनि या श्रमण के पास बैठकर धम्मज्ञान लेना। वैदिक परम्परा यज्ञ और प्रार्थना की है वहाँ पास बैठकर ज्ञान लेना बहुत बाद में शामिल होता है। गुरु शिष्य परंपरा असल में एक श्रमण परंपरा है। आज भी बुद्ध के संघ और जैनों के समवशरण से जुड़ी मूर्तियाँ साफ़ देखी जा सकती हैं।

प्रथम बुद्ध से अंतिम बुद्ध तक के इस कालखंड में बौद्ध और जैन धर्म मुख्य रहे। इसके अलावा अन्य दार्शनिक संप्रदाय भी उभरे। उन्हीं के केंद्रीय दार्शनिक ग्रंथों को वेद वेदान्त में शामिल करने का ब्राह्मणी प्रोजेक्ट चलाया गया है। प्राचीन श्रमण दर्शनों के प्रतिपादक गुरुओं और संप्रदायों का इतिहास मिटाकर उन्हें ईश्वर वेद और पुनर्जन्म सहित वर्ण व्यवस्था के अनुकूल बनाया गया है। लेकिन ये काम बहुत मुश्किल है, ठीक से नहीं हो पाया।

इसीलिए वेद वेदान्त की परंपरा सैकड़ों उपनिषदों की बात तो करती है लेकिन उन उपनिषदों में आपस में बड़ा विरोध है। इसका साफ़ मतलब ये है कि उपनिषद् असल में दूसरे दार्शनिक संप्रदायों के शास्त्र हैं जिन्हें तोड़ा मरोड़ा जा रहा है। इसीलिए उपनिषदों के विवरण के आधार पर तत्कालीन भारत का सामाजिक और सांस्कृतिक नक़्शा बनाना संभव नहीं हो सका है।

लेकिन हम जैसे ही हड़प्पा, 28 बुद्ध और 24 तीर्थंकरों के नज़रिए से भारत के इतिहास को देखते हैं, वैसे ही भारत का ग्रैंड नैरेटिव और सच्चा इतिहास उभरने लगता है। जातक कथाओं में जिस तरह के राजाओं और राज्यों की कहानी आती है वो बहुत कुछ बताती हैं। साफ़ पता चलता है कि ये कहानियाँ नगरों और राजधानियों की कहानियाँ हैं। इनमें व्यापार, प्रशासन, सेना, पुलिस, गुप्तचर इत्यादि का ज़िक्र आता है। इसका अर्थ ये है कि ये सारी कहानियाँ नगरीय बौद्ध सभ्यता की कहानियाँ हैं।

अब सवाल ये उठता है कि पाँच हज़ार साल पुरानी बौद्ध सभ्यता के साथ गौतम बुद्ध के ठीक एक हज़ार साल पहले क्या हुआ? ऐसा क्या होता है कि मगध और कौशल को छोड़कर शेष भारत ग्रामीण और यज्ञ एवं बलिप्रधान वैदिक एवं हिंसक जीवन शैली में फँस जाती है?

इस विषय पर बहुत सारे प्रमाण मौजूद हैं। लेकिन भारतीय इतिहासकार इसे सामने नहीं ला रहे हैं। इसपर बहुजन शोधकर्ताओं को ही मिल जुलकर काम करना होगा।

(लेखक – संजय श्रमण)

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