HomeBuddha Dhammaत्रिशरण एवं पंचशील पर शानदार कविता

त्रिशरण एवं पंचशील पर शानदार कविता

बुद्ध शरण होना विज्ञानी, निर्मल बुद्धि सुजानी ।
संस्कार सुंदरता मन की, कुशल कर्म सत्ज्ञानी ।।
धम्म शरण मानवता सीखे, जीव सभी हैं प्यारे ।
नैतिकता करुणाई मनमुख, मिटे भेद सब सारे ।।
संघ शरण हो साधु शामिला, नहीं बचे मजबूरी ।
ज्ञान गगनचुम्बी गरिमामय, गिरिगमनी गमदूरी ।।1

धम्म चक्र नित चलता रहता, समझे दुनिया सारी ।
पंचशील अति पालन करना, हित होता नर नारी ।।
मनुज एक नहि भेद रखो कुछ, जातिवाद से दूरी ।
नर नारी सब कुदरत रचना, सम इज्जत सब पूरी ।।
नही सदा हित अपना केवल, बनें सभी के ध्यानी ।
मिले अमरता सदा सुगत सम, बनें मित्र कल्यानी ।।2

जियो और जीने दो सबको, धम्म चक्र की सत्ता ।
नही जोड़ सकते जो वापस, नही तोड़ तब पत्ता ।।
चोट लगी जस होती पीड़ा, वैसी समझो सबको ।
नहीं अकारण हिंसा करना, सदा ज्ञान है हमको ।।
जीवन सबकी इच्छा रहती, नहीं जीव जग मारो ।
बनें अहिंसक जीवन सबही, सबको कष्ट उबारो ।।3

चोरी करना नहीं जिंदगी, सब प्रकार की ध्यानी ।
धन दौलत के साथ न चोरी, कविता गैर कहानी ।।
चोरी के सब काम घृणित हो, करना सीना ताने ।
नही गैर को क्षति पहुँचे कुछ, कर्म नहीं अंजाने ।।
चोर कभी इज्जत नहि पाता, जाता ही दुत्कारा ।
बुद्ध त्याग सब चोरी जग जो, हो संसार तुम्हारा ।।4

कामग्रस्त मानव को जीवन, श्वान समझते सारे ।
नही द्वार सज्जन रुक पाते, जाते अति दुत्कारे ।।
बुद्धवाद ही कहे विश्व में, निजता में सुख लेखा ।
नहीं गैर में खोज तुष्टि को, पार न लक्ष्मण रेखा ।।
बुद्ध वासना बहुत बुरी है, इज्जत मिलना भारी ।
चाह मान अति दूर वासना, करो सभी नर नारी ।।5

झूँठ बोलना बहुत बुरा है, नहीं कभी तुम बोलो ।
लोग सभी है खाते धोखा, नैन आप सब खोलो ।।
सब निर्दोषी दिखे कैदघर, अपराधी जो निर्भय ।
करे प्रताड़ित दीनदुर्बली, डरे लोग हों अतिशय ।।
चुगली कभी नहीं हो जीवन, लुटे शांति घरबारी ।
हिंसा बढती सदा जिंदगी, मर मिटना बसखारी ।।6

नशा विश्व में सभी चीज का, बुरा बहुत दुखदाई ।
सभी शील जो मिली जिन्दगी, जाती रहें भुलाई ।।
हिंसा करता घर बाहर जग, झूँठ रहा बस बोली ।
कामग्रस्त होता है बहुधा, घृणित कर्म हमजोली ।।
नाश करे निज तन धन इज्जत, रहें संग बीमारी ।
बुद्ध नशा नहि रहे जिंदगी, सुख में दुनिया सारी ।।7

(रचनाकार: बुद्ध प्रकाश बौद्ध)

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