वण्ण-गन्ध-गुणोपेतं एतं कुसुमसन्ततिं।
पूजयामि मुनिन्दस्स, सिरीपाद सरोरूहे। 1।
पूजेमि बुद्दं कुसुमेन नेन पुञ्ञेन मेत्तेन लभामि मोक्खं।
पुप्फं मिलायति यथा इदं मे, कायो तथा याति विनासभावं। 2।
घनसारप्पदित्तेन, दीपेन तम धंसिना।
तिलोक दीपं सम्बुद्धं पूजयामि तमोनुदं। 3।
सुगन्धि काय-वदनं, अनन्त-गुण-गन्धिना।
सुगंधिना, हं गन्धेन, पूजयामि तथागतं। 4।
बुद्धं धम्मं च संघं सुगततनुभवा धातवो धातुगम्भे।
लंकायं जम्बुदीपे तिदसपुरवरे नागलोके च थूपे। 5।
सब्बे बुद्धस्स बिम्बे सकलदसदिसे केसलोमादिधातुं वन्दे।
सब्बेपि बुद्धं दसबलतनुजं बोधिचेत्तियं नमामि। 6।
वन्दामि चेतियं सब्बं सब्बट्ठानेसु पतिट्ठितं।
सारीरिक-धातु महाबोधि बुद्धरूपं सकलं सदा। 7।
संपूर्ण बुद्धपूजा हिंदी में
इस वर्ण और गन्ध ऐसे गुणो से युक्त इन पुष्पों से गूंथी हुई मालाओं द्वारा मैं भगवान बुद्ध के कमलवत चरणों की पूजा करता हूँ. 1
इन कुसमों से मैं बुद्ध की पूजा करता हूँ, इस पुण्य से मुझे निर्वाण प्राप्त होगा. जिस प्रकार यह फूल कुम्हलाता है उसी प्रकार मेरा शरीर भी विनाश को प्राप्त होता है. 2
अंधकार को नष्ट करने वाले जलते हुए दीप के समान मैं तीनों लोकों के प्रदीप तुल्य अज्ञान-अंधकार को नष्ट करने वाले भगवान बुद्ध की पूजा करता हूँ. 3
मैं सुगंधियुक्त शरीर एवं मुखवाले, अनंत गुण युक्त सुगंधि से तथागत की पूजा करता हूँ. 4
बुद्ध, धम्म तथा संघ एवं सिरिलंका (श्रीलंका), जम्बुदीप, नागलोक और तिरिदसपुर (त्रिदसपुर) में स्थित स्तूपों में भगवान बुद्ध के शरीर के जितने भी अवशेष स्थापित हैं, उन सबको मैं प्रणाम करता हूँ. 5
सर्व दस दिशाओं में व्याप्त बुद्ध के केश, लोम आदि अवशेषों के जितने भी रूप हैं उन सबको, सब बुद्धों को, दसबलतनुजों को और बोधिचैत्यों को मैं नमस्कार करता हूँ. 6
सभी स्थानों में प्रतिष्ठित चैत्य, बुद्ध शरीर के अवशेष, महाबोधिवृक्ष और बुद्ध प्रतिमाओं की सदा वंदना करता हूँ. 7
— भवतु सब्ब मङ्गलं —