मनुजस्स पमत्तचारिनो, तण्हा बड्ढति मालुवा विय
सो प्लवती हुरा हुरं, फलमिच्छंव वनस्मि वानरो.
हिंदी: प्रमत्त होकर आचरण करने वाले मनुष्य की तृष्णा मालुवा लता की भांति बढ़ती है, वन में फल की इच्छा से एक शाखा छोड़ दूसरी शाखा पकड़ते बंदर की तरह वह एक भव से दूसरे भव में भटकता रहता है.
यं एसा सहते जम्मी, तण्हा लोके विसत्तिका
सोका तस्स पवड्ढन्ति, अभिवट्ठंव बीरणं.
हिंदी: लोक में यह विषमयी तृष्णा जिस किसी को अभिभूत कर लेती है, उसके शोक (दु:ख) वैसे ही बढ़ने लगते हैं जैसे कि वर्षा ऋतु में ‘बीरण’ नाम का जंगली घास (बढ़ता रहता है).
यो चेतं सहते जम्मिं, तण्हं लोके दुरच्चयं
सोका तम्हा पपतन्ति, उदबिंदुव पोक्खरा.
हिंदी: इस (बार-बार) जन्मने वाली दुरतिक्रमणीय तृष्णा को जो लोक में अभिभूत कर देता है, उसके शोक (वैसे ही) झड़ जाते हैं जैसे पद्म (पत्र) से पानी की बूंद.
तं वो वदामि भद्दं, यावन्तेत्थ समागता
तण्हाय मूलं खणथ, उसीरत्थोव बीरणं
मा वो नळंव सोतोव, मारो भञ्जि पुनप्पुनं.
हिंदी: इसलिए मैं तुम्हें, जितने यहाँ आये हो, कहता हूँ, तुम्हारे कल्याण के लिए कहता हूँ – जैसे खस के लिए (बड़ी कुदाल लेकर) बीरण को खोदते हैं, ऐसे ही तृष्णा को जड़ से उखाड़ डालो. (कहीं ऐसा न हो कि) तुम्हें (देवपुत्र) मार (वैसे ही) बार-बार उखाड़ता रहे जैसे नदी के स्रोत में उगे हुए सरकंडे को (बड़े वेग से आता हुआ) नदी का प्रवाह.
यथापि मूले अनुपद्द्वे दळ्हे, छिन्नोपि रुक्खो पुनरेव रुहति
एवम्पि तण्हानुसये अनूहते, निब्बत्तती दुक्खमिदं पुनप्पुनं.
हिंदी: जैसे जड़ के बिल्कुल नष्ट न होने और उसके दृढ़ बने रहेन पर कटा हुआ वृक्ष फिर उग जाता है, वैसे ही तृष्णा-रूपी अनुशय के जड से उच्छिन्न न होने पर यह दु:ख बार-बार उत्पन्न होता है.
यस्स छत्तिंसति सोता, मनापसवना भुसा
बाहा वहन्ति दुद्दिट्ठिं, सङ्गप्पा रागनिस्सिता.
हिंदी: जिसके छत्तीस स्रोत मन को प्रिय लगने वाली वस्तुओं की ही ओर जाते हों, उस मिथ्या दृष्टि वाले व्यक्ति को उसके राग निश्रित संकल्प बहा ले जाते हैं.
सवन्ति सब्बधि सोता, लता उप्पज्ज तिट्ठति
तञ्च दिस्वा लतं जातं, मूलं पञ्ञाय छिन्दथ.
हिंदी: ये स्रोत सभी ओर बहते हैं (जिसके कार) तृष्णारूपी) लता अंकुरित रहती है. उस उत्पन हुई लता को देखकर प्रज्ञा से उसकी जड़ को काट डालो.
सरितानि सिनेहितानि च, सोमनस्सानि भवन्ति जन्तुनो
ते सातसिता सुखेसिनो, ते वे जातिजरुपगा नरा.
हिंदी: ये तृष्णारूपी नदियां प्राणियों के चित्त को प्रसन करने वाली होती हैं. इस सुख में आसक्त सुख की चाहना करने वाले जन्म, बुढ़ापा, (रोग तथा मृत्यु) के फेर में जा पड़ते हैं.
तसिणाय पुरक्खता पजा, परिसप्पन्ति ससोव बन्धितो
संयोजनसण्ग़्गसत्तका, दुक्खमुपेन्ति पुनप्पुनं चिराय.
हिंदी: तृष्णा से परिवारित प्राणी (जंगल में किसी व्याध द्वारा) बँधे हुए खरहे के समान चक्कर काटते रहते हैं. मन के बंधनों में फँसे हुए लोग लंबे समय तक बार-बार (जन्मादि का) दु:ख पाते हैं.
तसिणाय पुरक्खता पजा, परिसप्पन्ति ससोव बन्धितो
तस्मा तसिणं विनोदये, आकङ्खन्त विरागमत्तनो.
हिंदी: तृष्णा से परिवारित प्राणी (जंगल में किसी व्याध द्वारा बँधे हुए खरहे के समान चक्कर काटरे रहते हैं. इसलिए अपने वैराग्य की आकांक्षा करते हुए (साधक) तृष्णा को दूर करे.
यो निब्बनथो वनाधिमुत्तो, वनमुत्तो वनमेव धावति
तं पुग्गलमेथ पस्सथ, मुत्तो बन्धनमेव धावति.
हिंदी: जो तृष्णा से छूट कर, तृष्णामुक्त हो, तृष्णा की ओर ही दौड़ता है, उस व्यक्ति को वैसे ही जानो जैसे कोई बंधन से मुक्त हुआ पुरुष फिर बंधन की ओर ही भागने लगे.
न तं दळ्हं बन्धनमाहु धीरा, यदायसं दारुजपब्बजञ्च
सारत्तरत्ता मणिकुण्डलेसु, पुत्तेसु दारेसु च या अपेक्खा.
हिंदी: यह जो लोहे, लकड़ी या रस्सी का बंधन है, उसे पंडित जन दृढ़ बंधन नहीं कहते. वस्तुत: दृढ़ बंधन होता है मणीयों, कुंडलों, पुत्रों तथा स्त्री में तृष्णा का होना.
एतं दळ्हं बन्धनमाहु धीरा, ओहारिनं सिथिलं दुप्पमुञ्चं
एतम्पि छेत्वान परिब्बजन्ति, अनपेक्खिनो कामसुखंपहाय.
हिंदी: पंडित जन इसी को दृढ़, पतनोन्मुख, शिथिल और दुस्त्याज्य बंधन कहते हैं. वे अपेक्षारहित हो, कामसुख को छोड़कर, इस दृढ़ बंधन को भी ज्ञान-रूपी खड़ग से काटकर प्रव्रजित हो जाते हैं.
ये रागरत्तानुपतन्ति सोतं, सयंक तं मक्कटकोव जालं
एतम्पि छेत्वान वजन्ति धीरा, अनपेक्खिनो सब्बदुक्खं पहाय.
हिंदी: जैसे मकड़ा स्वयं बनाये हुए जाल में फँस जाता है, वैसे ही राग-रंजित लोग स्वयं बनाये (तृष्णारूपी) स्रोत में गिर जाते हैं. पंडित जन सारे दु:खों का प्रहाण कर इस स्रोत को भी काटकर अपेक्षारहित हो चल देते हैं.
मुञ्च पुरे मुञ्च पच्छतो, मज्झे मुञ्च भवस्स पारगू
सब्बत्थ विमुत्तमानसो, न पुनं जातिजरं उपेहिसि.
हिंदी: आगे (भूत), पीछे (भविष्य) और मध्य (वर्तमान) की सारी बातों को छोड़ दो अर्थात सभी स्कंधों को त्याग दो और उन्हें छोड़कर भव-सागर के पार हो जाओ. सब ओर से विमुक्तचित्त होकर तुम फिर जन्म, बुढ़ापा और मृत्यु को नहीं प्राप्त होगे.
वितक्क मथितस्सजन्तुनो, तिब्बरागस्ससुभानुपस्सिनो
भिय्यो तण्हा पवड्ढति, एस खो दळ्हं करोति बन्धनं.
हिंदी: (कामवितकार्दिसे) ग्रस्त, तीव्र राग युक्त और शुभ (सुंदर ही सुंदर) देखने वाले प्राणी की तृष्णा और भी प्रवद्ध होती है. इससे वह अपने लिए और भी दृढ़ बंधन तैयार करता है.
वितक्कू परमेच यो रतो, असुभं भायवते सदा सतो
एस खो ब्यन्ति काहिति, एस छेच्छति मारबन्धनं.
हिंदी: जो वितर्कों को शांत करने में लगा है और सदा स्मृतिमान रह अशुभ की भावना करता है, वह मार के बंधन को काट देगा, वह निश्चित ही इस तृष्णा का विनाश कर देगा.
निट्ठङ्गतो असन्तासी, वीततण्हो अनङ्गणो
अच्छिन्दि भवसल्लानि, अन्तिमोयं समुस्सयो.
हिंदी: जिसने लक्ष्य (अर्हत्व) पा लिया हो, जो निर्भय, तृष्णा रहित और मलविहीन हो गया हो, जिसने भव (प्राप्त कराने वाले) शल्यों को काट दिया हो, उसका यह अंतिम जीवन होता है.
वीततण्हो अनादानो, निरुत्तिपदकोविदो
अक्खरानं सन्निपातं, जञ्ञा पुब्बापरानि च
स वे “अन्तिमसारीरो, महापञ्ञो महापुरिसो”ति वुच्चति.
हिंदी: जो तृष्णारहित अपरिग्रही, निरुक्ति और पद (चार प्रतिसभिदाओं) में निपुण हो, और अक्षरों को पहले पीछे (के क्रम से) रखना जानता हो, वही अंतिम देहधारी, महाप्रज्ञ और महापुरुष कहा जाता है.
सब्बाभिभू सब्बविदूहमस्मि, सब्बेसु धम्मेसु अनूपलित्तो.
सब्बञ्जहो तण्हक्खये विमुत्तो, सयं अभिञ्ञाय क मुद्दिसेय्यं.
हिंदी: मैं सबको अभिभूत (परास्त) करने वाला, सर्वज्ञ, सभी धम्म से अलिप्त, सर्वत्यागी हूँ, तृष्णा का क्षय हो जाने से विमुक्त हूँ. परम ज्ञान को स्वयं की अभिज्ञा से जान कर मैं किसको अपना उपाध्याय या आचार्य बतलाऊँ?
सब्बदानं धम्मदानं जिनाति, सब्बरसं धम्मरसो जिनाति
सब्बरतिं धम्मरति जिनाति, तण्हक्खयो सब्बदुक्खं जिनाति.
हिंदी: धम्म का दान सब दानों को जीत लेता है (सब दानों में श्रेष्ठ हैं). धम्मर का रस सब रसों को जीत लेता है (सब रसों में श्रेष्ठ है). धम्म में रमण करना सभी रमण-सुखों को जीत लेता है (सब रतियों में श्रेष्ठ है). तृष्णा का क्षय सब दु:खों को जीत लेता है (अर्थात सबसे श्रेष्ठ है).
हनन्ति भोगा दुम्मेधं, नो च पारगवेसिनो
भोगतण्हाय दुम्मेधो, हन्ति अञ्ञेव अत्तनं.
हिंदी: (संसार को) पार करने का प्रयत्न न करने वाले दुर्बुद्धि को भोग नष्ट कर देते हैं. भोगों की तृष्णा में पड़कर वह दुर्बुद्धि पराये के समान अपना ही हनन कर लेता है.
तिणदोसानि खेत्तानि, रागदोसा अयं पजा
तस्मा हि वीतरागेसु, दिन्नं होति महप्फलं.
हिंदी: खेतों का दोष है (इनमें उगने वाले भांति-भांति के) तृण (क्योंकि ऐसे खेत बहुत नहीं उपजते). इस प्रजा का दोष है (इसके अंदर जागने वाला) राग. (ऐसे लोगों को दान देने से कोई बड़ा फल प्राप्त नहीं होता). इसलिए वीतराग (व्यक्तियों) को (ही दान देना चाहिए) जिससे महान फल प्राप्त होता है.
तिणदोसानि खेत्तानि, दोसदोसा अयं पजा
तस्मा हि वीतरागेसु, दिन्नं होति महप्फलं.
हिंदी: खेतों का दोष तृण है. इस प्रजा का दोष है द्वेष. इसलिए वीतद्वेष व्यक्तियों को दान देने से महान फल प्राप्त होता है.
तिणदोसानि खेत्तानि, मोहदोसा अयं पजा
तस्मा हि वीतरागेसु, दिन्नं होति महप्फलं.
हिंदी: खेतों का दोष तृण है. इस प्रजा का दोष है मोह. इसलिए वीतमोह व्यक्तियों को दान देने से महान फल प्राप्त होते है.
तिणदोसानि खेत्तानि, इच्छादोसा अयं पजा
तस्मा हि वीतरागेसु, दिन्नं होति महप्फलं.
तिणदोसानि खेत्तानि, तण्हादोसा अयं पजा
तस्मा हि वीतरागेसु, दिन्नं होति महप्फलं.
हिंदी: खेतों का दोष तृण है. इस प्रजा का दोष है इच्छा. इसलिए इच्छारहित व्यक्तियों को दान देने से महान फल प्राप्त होते है. खेतों का दोष तृण है. इस प्रजा का दोष है तृष्णा. इसलिए तृष्णारहित व्यक्तियों को दान देने से महान फल प्राप्त होते है.
ओडियो सुने
— भवतु सब्ब मङ्गलं —