HomeGood Questions Good Answers2. बुद्धधम्म की मूल शिक्षाएं

2. बुद्धधम्म की मूल शिक्षाएं

सवाल: बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएँ क्या हैं?

जवाब: इस तरह एक पहिये की आरा (पहिये की तिलि) और हाल (पहिये की गोलाई) धुरी पर केंद्रित होती हैं उसी तरह बुद्ध की सारी शिक्षाएँ चार आर्य सत्यों पर केंद्रित हैं. उन्हे चार कहा जाता हैं क्योंकि उसमे 4 शिक्षाएँ हैं. उन्हे आर्य कहा जाता हैं क्योंकि उसे समझने वाला श्रेष्ठ बनता हैं और उन्हे सत्य कहा जाता हैं क्योंकि वह परिपूर्ण सत्य से मेल रखता हैं.

सवाल: पहला आर्य सत्य क्या हैं?

जवाब: जीवन दु:ख हैं यह पहला आर्य सत्य हैं. जीवित होना दु:ख हैं. दु:ख और पीडा के बगैर जिंदगी असंभव हैं. हमे बिमारी, अपघात, थकान, वृद्धत्व और समय के साथ-साथ मौत के भौतिक दु:खों को झेलना पडता हैं. एवं अकेलापन, हताशा, भय, संभ्रम, निराशा, क्रोध आदि मानसिक क्लेशों को भी सहना पडता हैं.

सवाल: क्या यह थोडा निराशावादी नही हैं?

जवाब: शब्दकोष के अनुसार निराशावाद की व्याख्या हैं; जो होगा वह बुरा होगा ऐसा सोचने की आदत या ऐसा विश्वास की बुराई में भलाई से ज्यादा शक्ति हैं. बौद्ध धर्म इनमे से कुछ भी नही सिखाता. ना ही वह सुख की संभावनाओं को अस्वीकार करता हैं. वह इतना ही कहता हैं कि जन्म ग्रहण करने में शारीरिक व मानसिक दु:ख हैं, जो इतना सत्य और स्वाभाविक हैं कि, कोई इसे अस्वीकार नही कर सकता. बौद्ध अनुभव से शुरु करता हैं, एक ऐसी हकीकत जिससे सभी परिचित हैं, जिस बात को सब जानते हैं, सब अनुभव करते हैं और जिससे बचने के लिए सब उतावले हैं. इस तरह बौद्ध सीधे हर इंसान की प्रमुख समस्या पर पहुँचता हैं – दु:ख और दु:ख का मिटना.

सवाल: दूसरा आर्य सत्य क्या हैं?

जवाब: दूसरा आर्य सत्य हैं – तृष्णा से दु:ख निर्माण होता हैं. मानसिक दु:ख देखकर आसानी से पता चलता हैं कि कैसे यह तृष्णा से जन्मता हैं. जब हमे इच्छित वस्तु नही मिलती तो हम उदास व हताश होते हैं. जब कोई हमारी अपेक्षा के अनुसार नही करता तब हमे क्रोध आता हैं. हम प्रेम चाहते हैं, और जब प्रेम नही मिलता तो हम दु:खी होते हैं. अगर इच्छित वस्तु मिल भी जाये तो भी हम उससे ऊब जाते हैं और दूसरी वस्तु कि आकांक्षा करने लगते हैं. दूसरा आर्य सत्य सरलता से कहता हैं, इच्छा पूर्ती होने से सुख नही मिलता. लगातार कुछ पाने के लिये सघंर्ष करने के बजाय तृष्णा को बदलो. तृष्णा हमे सुख और संतुष्टी से वंचित रखती हैं.

सवाल: लेकिन, इच्छा और तृष्णा कैसे हमे शारीरिक दु:ख देती हैं?

जवाब: जीवन भर इस या उस चीज की चाहत और खास कर अपना अस्तित्व लगातार बना रहे ऐसी तृष्णा खूप शक्ति निर्माण करती हैं जो अगले जन्म का कारण बनती हैं. और जन्म के साथ जैसा हमने देखा, हमे देह प्राप्त होती हैं, जिसमे दुर्घटना, बीमारी, थकान, वृद्धत्व व मृत्यु आती हैं. इस तरह तृष्णा से शारीरिक दु:ख मिलते हैं क्योंकि इसी से हमारा जन्म होता हैं.

सवाल: यह सब तो ठीक हैं. अगर हम लालसा बिल्कुल ही खत्म कर देंगे फिर तो हम कुछ भी प्राप्त नही कर सकेंगे.

जवाब: सच. लेकिन बुद्ध कहते हैं कि हमारी इच्छा, हमारी लालसा, जो हैं उससे असंतुष्टि और ज्यादा से ज्यादा पाने की निरंतर चाह हमे दु:ख देती हैं, ऐसा नही करना हैं. उसने कहा कि हमारी जरूरत और इच्छा में फर्क करें और जरूरतों की पूर्ती के लिए प्रयास करें और इच्छाओं में बदलाव करें. उन्होने हमे सिखाया कि हमारी जरूरतों को पूरा किया जा सकता हैं लेकिन हमारी इच्छाएँ अनंत हैं – एक अथाह गड्ढा. ऐसी जरूरतें हैं जो जरूरी, आधारभूत और प्राप्त की जा सकती हैं और हमे इस दिशा में ही कार्य करना हैं. इससे परे इच्छाएँ धीरे-धीरे कम होनी चाहिए. आखिर जीवन का उद्देश्य क्या हैं? सिर्फ पाना अथवा संतुष्ति और खुशी?

सवाल: तीसरा आर्य सत्य क्या हैं?

जवाब: तीसरा आर्य सत्य यह हैं कि दु:ख दूर हो सकता हैं और खुशी प्राप्त हो सकती हैं. यह शायद चार आर्य सत्यों में सबसे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसमें बुद्ध ने हमे आश्वस्त किया कि सच्ची खुशी और संतुष्टि संभव हैं. जब हम बेकार लालसा छोड देते हैं और हर पल को जीना सीखते हैं, अशांत इच्छाओं के बिना जीने का आनंद लेते हैं, जीवन में शामिल समस्याओं को डर, नफरत और क्रोध के बिना धीरता से भोगते हैं, तब हम खुश और आजाद होते हैं. तब और केवल तभी, हम पूरी तरह से जीने में सक्षम हैं. क्योंकि अब हमें अपनी स्वार्थी इच्छाओं को संतुष्ट करने का बंधन नही हैं, हम पाते हैं कि दूसरों को उनकी जरूरतों को पूरा करने में उनकी सहायता करने के लिए हमारे पास बहुत समय हैं. इस स्थति को निर्वाण कहा जाता हैं.
सवाल: आपने पुनर्जन्म की बात कि, लेकिन क्या इस घटना का कोई प्रमाण हैं?

जवाब: इसके पर्याप्त सबूत हैं कि इस तरह की घटना होती हैं. पर हम इस बारे में ज्यादा बात आगे करेंगे.

सवाल: क्या और कहाँ हैं निर्वाण?

जवाब: विचार और शब्द सिर्फ स्थल-काल के दायरे में समाहित घटनाओं के बारे में कह सकते हैं और चूंकि निर्वाण स्थल-काल से परे हैं उसपर कुछ कहा या सोचा नही जा सकता. निर्वाण समय से परे होने की वजह से वहा कोई गती, सघंर्ष, वृद्धत्व या मृत्य नही हैं. ऐसे निर्वाण शाश्वत हैं. आकाश से परे होने से ना उसकी निर्मिती का कोई कारण हैं, ना वह मर्यादित हैं, ना आत्मा/अनात्मा की संकल्पना में आबद्ध हैं, और इस तरह निर्वाण अनंत हैं. बुद्ध ने हमे आश्वस्त किया कि निर्वाण अति सुखदायी अनुभव हैं. उन्होने कहा:

 निर्वाण में सुख हैं.” Dhp. 204

सवाल: ऐसी कोई दशा होती हैं इस बात का क्या कोई प्रमाण हैं?

जवाब: नही, इसका कोई प्रमाण नही. पर इसका अंदाजा लगाया जा सकता हैं. जो दुनिया हम अनुभव करते हैं वह अगर स्थल-काल बध अस्तित्व हैं, तो हम अंदाजा लगा सकते हैं कि ऐसा आयाम संभव हैं को स्थल-काल से परे हैं, वो निर्वाण हैं. फिर यदि यह प्रमाण काफी नही हैं तब हमे बुद्धवचन का सहारा हैं. उन्होने कहा:

     “कुछ हैं जो अजन्मा, अघटा, अनिर्मित, असंस्कारीत हैं. अगर ऐसा कुछ ना होता जो अजन्मा, अघटा, अनिर्मित, असंस्कारीत हैं तब उससे मुक्ति कभी न होती जो जन्मा हैं, घटा हैं, निर्मित हैं, संस्कारीत हैं. चूंकि कुछ, जो अजन्मा, अघटा, अनिर्मित, असंस्कारीत हैं, इसलिए उससे मुक्ति संभव हैं, जो जन्मा हैं, घटा हैं, निर्मित हैं, संस्कारीत हैं.” Ud, 880

उसे पाने पर हमे उसका पता चलेगा. तब तक हम बुद्ध की शिक्षाओं के वे पहलू आचरण में ला सकते हैं जो हमें निर्वाण का प्रमाण दे सकते हैं.

सवाल: अगर निर्वाण का गुण वासना से मुक्ति हैं तो मुक्ति की वासना करने से निर्वाण कैसे उपलब्ध होगा?

जवाब: किसी भी ध्येय प्राप्ती की तरह निर्वाण प्राप्ती के लिये भी अपनी शक्ति और प्रयासों को इकट्ठा करना होता हैं. समय के साथ जैसे समझ गहरी होती हैं वैसे पता चलता हैं कि निर्वाण कोई वस्तु नही हैं जो वहा हैं; जिसे आप प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि ऐसी दशा हैं जिस में कोई वासना नही, बल्कि संपूर्ण ज्ञान, संतुष्ति एवं तृप्ती हैं. इस समझ के साथ आपकी वासना क्रमश: तिरोहित होती हैं. यही निर्वाण की प्राप्ती हैं.

सवाल: चौथा आर्य सत्य क्या हैं?

जवाब: चौथा आर्य सत्य हैं मार्ग सत्य. यह आर्य अष्टांगिक मार्ग हैं जिसमे सम्यक दृष्टी, सम्यक संकल्प, सम्यक वाचा, सम्यक व्यायाम, सम्यक कर्मांत, सम्यक आजीविका, सम्यक स्मृती व सम्यक समाधी समाविष्ट हैं. बौद्ध जीवन इन आठ अंगों के आचरण में पूर्णता लाना हैं. आप देखेंगे कि आर्य अष्टांगिक मार्ग जीवन के हर अंग को छुते हैं; बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक, आर्थिक, मानसिक और ऐसी हर बात जो मनुष्य की बेहतर जिंदगी और आध्यात्मिक विकास के लिये आवश्यक हैं.

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