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ब्राह्मणवग्गो

छिंद सोतं परक्कम्म, कामे पनुद ब्राह्मण
सङ्खारानं खयं ञत्वा
, अकतञ्ञूसि ब्राह्मण.

हिंदी: हे ब्राह्मण! (तृष्णारूपी) स्रोत को काट दे, पराक्रम कर कामनाओं को दूर कर. संस्कारों के क्षय को जान कर, हे ब्राह्मण! तू अकृत निर्वाण का जानने वाला हो जा.

यदा द्वयेसु धम्मेसु, पारगू होति ब्राह्मणो
अथस्स सब्बे संयोगो, अत्थं गच्छन्ति जानतो.

हिंदी: जब कोई ब्राह्मण दो धम्म (शमश और विपश्यना) में पारंगत हो जाता है, तब उस जानकार के सभी बंधन नष्ट हो जाते हैं.

यस्स पारं अपारं वा, पारापारं न विज्जति
वीतद्दरं विसंयुत्तं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जिसके पार (भीतर के छह आयतन – आंख, कान, नाक, जीभ, काय और मन), अपार (बाहर के छह आयतन – रूप, शब्द, गंध, रस, स्प्रष्टव्य और धम्म) या पार-अपार (ये दोनों ही, अर्थात ‘मैं’ ‘मेरे’ का भाव) नहीं, जो निर्भय और अनासक्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

झायिं विरजमासीनं, कतकिच्चमनासवं
उत्तमत्थमनुप्पत्तं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो ध्यानी, विमल, आसनबद्ध (स्थिर), कृतकृत्य, और आश्रवरहित हो, जिसने उत्तम अर्थ (निर्वाण) को प्राप्त कर लिया हो, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

दिवा तपति आदिच्चो, रत्तिमाभाति चन्दिमा
सन्नद्धो खत्तियो तपति
, झायी तपति ब्राह्मणो.
अथ सब्बमहोरत्तिं
, बुद्धो तपति तेजसा.

हिंदी: दिन में सूर्य तपता है, रात में चंद्रमा भासता है, कवच पहन क्षत्रिय चमकता है, ध्यान करता हुआ ब्राह्मण चमकता है, और सारे रात-दिन बुद्ध अपने तेज से चमकते हैं.

बाहितपापोति ब्राह्मणो, समचरियो समणोति वुच्चति
पब्बाजयमत्तनो मलं
, तस्मा “पब्बजितो”ति वुच्चति.

हिंदी: ब्राह्मण वह कहलाता है जिसने पापों को बहा दिया, श्रमण वह है जिसकी चर्या समतापूर्ण है, और प्रव्रजित वह कहलाता है जिसने अपने चित्त के मैल दूर कर लिये.

न ब्राह्मणस्स पहरेय्य, नास्स मुञ्चेथ ब्राह्मणो
धी ब्राह्मणस्स हन्तारं
, ततो धी यस्स मुञ्चति.

हिंदी: ब्राह्मण (निष्पाप) पर प्रहार नहीं करना चाहिए, और ब्राह्मण को भी उस (प्रहार करने वाले) पर कोप नहीं करना चाहिए. धिक्कार है ब्राह्मण की हत्या करने वाले पर, और उससे भी अधिक धिक्कार है उस पर जो इसके लिए कोप करता है.

न ब्राह्मणस्सेतदकिञ्चि सेय्यो, यदा निसेधो मनसो पियेहि
यतो यतो हिंसमनो निवत्तति
, ततो ततो सम्मतिमेव दुक्खं.

हिंदी: ब्राह्मण के लिए यह कम श्रेयस्कर नहीं होता जब वह मन से प्रियों को निकाल देता है. जहां-जहां मन हिंसा से टलता है, वहां-वहां दु:ख शांत होता ही है.

यस्स कायेन वाचाय, मनसा नत्थि दुक्कटं
संवुतं तीहि ठानेहि
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो शरीर से, वाणी से और मन से दुष्कर्म नहीं करता, जो इन तीनों क्षेत्रों में संयमयुक्त है, उसे ही मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

यम्हा धम्मं विजानेय्य, सम्मासम्बुद्धदेसितं
सक्कच्चं तं नमस्सेय्य
, अग्गिहुत्तंव ब्राह्मणो.

हिंदी: जिस किसी से सम्यक संबुद्ध द्वारा उपदिष्ट धम्म को जाने, उसे वैसे ही सत्कारपूर्वक नमस्कार करें जैसे अग्निहोत्र को ब्राह्मण (नमस्कार करता है).

न जटाहि न गोत्तेन, न जच्चा होति ब्राह्मणो
यम्हि सच्चञ्च धम्मो च
, सो सुची सो च ब्राह्मणो.

हिंदी: न जटा से, न गोत्र से, न जन्म से ही ब्राह्मण होता है. जिसमें सत्य (सोलह प्रकार से प्रतिवेधन किये हुए चार आर्य-सत्य) और (नौ प्रकार के लोकोत्तर) धम्म हैं, वही शुचि (पवित्र) है और वही ब्राह्मण है.

किं ते जटाहि दुम्मेध, किं ते अजिनसाटिया
अब्भन्तरं ते गहनं
, बाहिरं परिमज्जसि.

हिंदी: अरे दुष्प्रभ! जटाओं से तेरा क्या बनेगा? मृगचर्म धारण करने से तेरा क्या लाभ होगा? भीतर तो तेरा चित्त गहन मलीनता से भरा पड़ा है. बाहर-बाहर से तू इस शरीर को क्या रग़ड़ता-धोता है?

पंसुकूलधरं जन्तुं, किसं धमनिसन्थतं
एकं वनस्मिं झायन्तं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मण.

हिंदी: जो फटे चीथड़ों को धारण करता है, जो कृश है, जिसके शरीर की सभी नसें दिखाई पड़ती है, और जो वन में एकाकी ध्यान करने वाला है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

न चाहें ब्राह्मणं ब्रूमि, योनिजं मत्त्तिसम्भवं
भोवादि नाम सो होति
, सचे होति सकिञ्चनो
अकिञ्चनं अनादानं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: यदि वह परिग्रही (आसक्ति युक्त) है और भो वादी है तो (ब्राह्मणी) माता के गर्भ से उत्पन होने पर भी उसे मैं ब्राह्मण नहीं कहता. जो अपरिग्रही है और अनासक्त है उसे ही मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

सब्बसंयोजनं छेत्वा, यो वे न परितस्सति
सङ्गातिगं विसंयुत्तं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो सारे संयोजनों (बंधनों) को काटकर भय नहीं खाता, जो तृष्णा एवं संयोजन के पार चला गया है, और जिसे संसार में आसक्ति नहीं है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

छेत्वा नद्धिं वरत्तञ्च, सन्दानं सहनुक्कमं
उक्खित्तपालिघं बुद्धं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो नद्धा (क्रोध), वरत्रा (तृष्णा रूपी रस्सी), संदान (बासठ प्रकार की दृष्टियां रूपी पहगे), और हनक्रम (मुँह पर बाँधे जाने वाले जाल, अनुशय) को काटकर तथा पटिघ (अविद्या रूपी जूए) को उतार फेंक बुद्ध हुआ, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

अक्कोसं वधबन्धञ्च, अदुट्ठो यो तितिक्खति
खन्तीबलं बलानीकं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो चित्त को बिना दूषित किये गाली, वध (दण्ड) और बंधन (कारावास) को सह लेता है, सहन-शक्ति (क्षमा-बल) ही जिसकी सेना है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

अक्कोधनं वतवन्तं, सीलवन्तं अनुस्सदं
दन्तं अन्तिमसारीरं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो अक्रोधी, (धुत-) व्रती, शीलवान, (तृष्णा के न रहने से) निरभिमानी है, (दंभी नहीं है), (छह इंद्रियों का दमन कर लेने से) दन्त (संयमी) और अंतिम शरीर धारी है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

वारि पोक्खरपत्तेव, आरग्गेरिव सासपो
यो न लिम्पति कामेसु
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: पद्म-पत्र पर जल और सूई के सिरे पर सरसों के दाने के समान जो कामभोगों में लिप्त नहीं होता है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

यो दुक्खस्स पजानाति, इधेव खयमत्तनो
पन्नाभारं विसंयुत्तं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो यहीं (इसी लोक में) अपने (खंध) – दु:ख के क्षय को प्रज्ञापूर्वक जान लेता है, जिसमे अपना बोझ उतार फेंका है, और जो आसक्तिरहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

गम्भीरपञ्ञं मेधाविं, मग्गामग्गस्स कोविंद
उत्तमत्थमनुप्पत्तं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: गहन प्रज्ञा वाले, मेधावी, मार्ग-अमार्ग के पंडित, उत्तम अर्थ (निर्वाँ) को प्राप्त हुए (व्यक्ति) को मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

असंसट्ठं गहट्ठेहि, अनागारेहि चूभयं
अनोक सारिमप्पिच्छं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो गृहस्थों तथा गृह-त्यागियों दोनों में लिप्त नहीं होता, जो बिना (ठौर-) ठिकाने के घूमने वाला और अल्पेच्छ है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

निधाय दण्डं भूतेसु, तसेसु थावरेसु च
यो न हन्ति न घातेति
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: स्थावर व जंगम (चर व अचर) सभी प्राणीयों के प्रति जिसने दंड त्याग दिया है (हिंसा त्याग दी है), जो न किसी की हत्या करता है, न हत्या करवाता है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

अविरुद्धं विरुद्धेसु, अत्तदण्डेसु निब्बुतं
सादानेसु अनादानं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो विरोधियों के बीच अविरोधी बन कर रहता है, दंडधारियों के बीच शांति से रहता है, परिग्रह करने वालों में अपरिग्रही होकर रहता है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

यस्स रागो च दोसो च, मानो मक्खो च पातितो
सासपोरिव आरग्गा
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जिसके चित्त से राग, द्वेष, अभिमान और म्रक्ष (डाह) ऐसे ही गिर पड़े हैं जैसे सूरी के सिरे से सरसों के दाने, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

अकक्कसं विञ्ञापनिं, गिरं सच्चमुदीरये
याय नाभिसजे कञ्चि
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो इस प्रकार की अकर्कश सार्थक (विषय को स्पष्ट करने वाली), सच्ची वाणी को बोले जिससे किसी को पीड़ा न पहुँचे, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

योध दीघं व रस्सं वा, अणुं थूलं सुभासुभं
लोके अदिन्नं नादियति
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो यहाँ इस लोक में लम्बी या छोटी, मोटी या महीन, सुंदर या असुंदर वस्तु बिना दिये नहीं लेता, अर्थात उसकी चोरी नहीं करता, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

आसा यस्स न विज्जन्ति, अस्मिं लोके परम्हि च
निरासासं विसंयुत्तं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जिसके मन में इस लोक अथवा परलोक के संबंध में कोई आशा-आकंक्षा नहीं रह गयी है, जो सभी प्रकार की आशाओं-आकांक्षाओं (और आसक्तियों) से मुक्त हो चुका है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

यस्सालया न विज्जन्ति, अञ्ञाय अक थंक थी
अमतोगधमनुप्पतं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जिसको आलय (तृष्णा) नहीं है, जो सब कुछ जान कर संदेह रहित हो गय है, जिसने अवगाहन करके (डुबकी लगा कर) निर्वाण प्राप्त कर लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

योध पुञ्ञञ्च पापञ्च, उभो सङ्गमुपच्चगा
असोकं विरजं सुद्धं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो यहाँ इस लोक में पुण्य और पाप दोनों के प्रति आसक्ति से परे चला गया है, जो शोक रहित, विमल और शुद्ध है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

चन्दंव विमलं सुद्धं, विप्पसन्नमनाविलं
नन्दीभवपरिक्खीणं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो चंद्रमा के समान विमल, शुद्ध, निखरा हुआ और मलरहित है और जिसकी भवतृष्णा पूरी तरह क्षीण हो गयी है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

योमं पलिपथं दुग्गं, संसारं मोहमच्चगा
तिण्णो पारगतो झायी
, अनेजो अक थंक थी
अनुपादाय निब्बुतो
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जिसने इस दुर्गम संसार (जन्म-मरण) के चक्कर में डालने वाले मोह-रूपी उल्टे मार्ग को त्याग दिया है, जो तरा हुआ, पार गया हुआ, ध्यानी, (तृष्णाविरहित होने से) स्थिर, संदेहरहित और बिना किसी उपादान के निर्वाणलाभी हो गया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

योथ कामे पहन्त्वान, अनागारो परिब्बजे
कामभवपरिक्खीणं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो यहाँ इस लोक में कामभोगों का परित्याग कर, घर-बार छोड़कर प्रव्रजित हो जाये, और जिसका कामभव पूरी तरह क्षीण हो गया हो, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

योध तण्हं पहन्तवान, अनागारो परिब्बजे
तण्हाभवपरिक्खीणं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो यहाँ इस लोक में तृष्णा का परित्याग कर, घर-बार कर प्रव्रजित हो जाय और जिसकी (भवतृष्णा) पूरी तरफ क्षीण हो गयी हो, उसे मैं ब्रह्मण कहता हूँ.

हित्वा मानुसकं योगं, दिब्बं योगं उपच्चगा
सब्बयोगविसंयुत्तं
, तमहं ब्रूमि ब्राहमणं.

हिंदी: जो मानुषिक बंधन और दैवी बंधन से परे चला गया है, जो सब प्रकार के बंधनों से विमुक्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

हित्वा रतिञ्च अरतिञ्च, सीतिभूतं निरुपधिं
सब्बलोकाभिभुं वीरं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो (पंचकामगुणरूपिणी) रति और (अरण्यवास की उत्कंठास्वरूप) अरति को छोड़कर शांत और क्लेश रहित हो गया है, और जो सारे लोकों को जीतकर वीर (बना) है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

चुतिं यो वेदि सत्तानं, उपपत्तिञ्च सब्बसो
असत्तं सुगतं बुद्धं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो सत्वो (प्राणियों) की च्युति और उत्पत्ति को पूरी तरह से जानता है, और जो अनासक्त, अच्छी गति वाला और बोधिसंपन है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

यस्स गतिं न जानन्ति, देवा गन्धब्बमानुसा
खीणासवं अरहन्तं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जिसकी गति देव, गंघर्व और मनुष्य नहीं जानते और जो क्षीणाश्रव अरहंत है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

यस्स पुरे च पच्छा च, मज्झे च नत्थि किञ्चनं
अकिञ्चनं अनादानं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जिसके आगे, पीछे और बीच में कुछ नहीं है अर्थात जो अतीत, अनागत, और वर्तमान की सभी कामनाओं से मुक्त है, जो अकिंचन और अपरिग्रही है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

उसभं पवरं वीरं, महेसिं विजिताविनं
अनेजं न्हातकं बुद्धं
, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो श्रेष्ठ, प्रवर, वीर, महर्षि, विजेता, अकंप्य, स्नातक और बुद्ध है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.

पुब्बेनिवासं यो वेदि, सग्गापायञ्च पस्सति,
अथो जातिक्खयं पत्तो, अभिञ्ञावोसितो मुनि
सब्बवोसितवोसानं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं.

हिंदी: जो अपने पूर्व-निवास को जानता है, और स्वर्ग तथा नरक को देख लेता है, और फिर जन्म के क्षय को प्राप्त हुआ अपनी अभिज्ञाओं को पूर्ण किया हुआ मुनि है और जिसने जो कुछ करना था वह सब कर लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ.  


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— भवतु सब्ब मंगलं —

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