Buddhist Antim Sanskar: मृत्यु एक अटल सत्य है. इस पृथ्वी पर सभी जीव-जन्तु जन्म लेते हैं और अन्त में मर जाते हैं. यही हम इंसानों के साथ होता है. इंसान जन्म लेता है और अंत में मर जाता है. मरणोपरांत हम इंसानों के शरीर को नष्ट करने के लिए प्रकृती के हवाले करने के बजाए उसे पहले इंसानों द्वारा ही नष्ट किया है. इस प्रक्रिया को अंतिम संस्कार (Funeral) कहा जाता है, जिसे इंसान अपनी धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार सम्पन्न करते हैं.
बौद्ध धम्म में भी मृत्यु संस्कार (Buddhist Funeral Rites) को लेकर अपनी मान्यताएं और परंपराएं हैं. विभिन्न देशों में परिस्थिति जन्य कारणों से परम्पराओं और मान्यताओं में भिन्नता भी पाई जाती है.
बौद्ध धम्म में शरीर को उत्सर्ग करने की दो-तीन विधियां प्रचलन में हैं. यद्यपि भारतीय बौद्ध समाज में मृत शरीर को जलाने की प्रथा अधिक स्वीकार्य है, जबकि जापान आदि देशों में मृत शरीर को भूमि में गाढ़ देने की परम्परा है. वहीं थाईलैंड में मृत शरीर को जल में प्रवाहित करने की परम्परा है.
तथागत बुद्ध ने ‘तिरोकुड सुत्त’ में कहा है कि, “समय, काल और परिस्थिति को देखते हुए मृत शरीर को चाहो तो जमीन में गाढ़ दो, चाहो तो जल में प्रवाहित कर दो या फिर दाह संस्कार द्वारा उत्सर्ग कर दो.“
बौद्ध धम्म में महिलाओं के शमशान घाट न जाने की बाध्यता नहीं है, जबकि हिन्दुओं में बाध्यता है. बौद्ध धम्म में, यदि मृतक का कोई पुत्र आदि नहीं है, तो पुत्री भी दाह संस्कार कर सकती है.
बौद्ध धम्म में ऐसा वर्णित है कि यदि कोई व्यक्ति मरणासन्न अवस्था में है तो उसके चित्त को प्रसन्न करने के लिए तथा चित्त में पश्चाताप उत्पन्न न हो, इसके लिए परित्राण पाठ कराना चाहिए तथा मरणासन्न व्यक्ति के हाथों से चीवर दान एवं भोजन दान आदि कराना चाहिए.
इस कृत्य से मरणासन्न व्यक्ति का मन प्रसन्न होगा. मरणोपरांत शव को श्वेत कपड़े से ढक कर रखना चाहिए. शमशान ले जाने से पूर्व शव को स्वच्छ जल से स्नान कराना चाहिए. मृत शरीर को दुर्गन्ध से बचाने के लिए समुचित उपाय किए जाएं. मृत शरीर को सुगन्धित धूपबत्ती, अगरबत्ती आदि लगाना चाहिए और पुष्प मालाओं से सुसज्जित कर किसी पलंग या ऊंचे स्थान पर रखना चाहिए. यह मृतक के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का प्रतीक है. तत्पश्चात बौद्ध भिक्खु को बुलाया जाना चाहिए. भिक्खु संघ को फिर वहां उपस्थित व्यक्तियों को त्रिशरण सहित पंचशील प्रदान करना चाहिए. तत्पश्चात अनित्थ गाथा और प्रतीत्य समुत्पाद का पाठ किया जाना चाहिए.
अनित्थ देसना के बाद मृतक की अर्थी शमशान भूमि ले जाते समय अनित्त्थ भाव से मौन रहकर संयत भाव से ‘बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि’ का बार-बार उच्चारण किया जाना चाहिए. शमशान भूमि पहुंचकर शव को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके चिता पर रखना चाहिए. दाह संस्कार से पूर्व बौद्ध भिक्खु को वहां उपस्थित जनों को त्रिशरण सहित पंचशील ग्रहण करवाना चाहिए और अनित्थ भावना का उपदेश करना चाहिए.
बुद्ध धम्म और संघ के गुणों का स्मरण करते हुए तीन बार चिता की प्रदक्षिणा करके, यदि घर पर मृत्यु वस्त्र दान नहीं किया गया है तो यहां पर किया जाना चाहिए. तत्पश्चात कपूर, चन्दन आदि कुछ सुगन्धित वस्तुओं के साथ चिता में आग लगाई जानी चाहिए.
अगले दिन परिवार के लोगों को शमशान भूमि जाकर जले हुए शव की राख (अस्थियों) को एकत्र करके किसी नदी, तालाब या नहर में प्रवाहित कर देना चाहिए या भूमि में गाढ़ देना चाहिए.
शान्ति पाठ के लिए निश्चित दिन को भिक्खुओं को बुलाकर परित्रान पाठ और धम्म देशना करानी चाहिए. तत्पश्चात उपासक भिक्खु संघ को भोजन दान, चीवर दान तथा परिष्कार दान करना चाहिए. बिना काम की वस्तुओं का दान बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए. शांतिपाठ के पश्चात श्रद्धानुसार एक माह बाद अथवा एक वर्ष तक प्रत्येक माह या हर साल परित्राण पाठ कराया जा सकता है.
नमो बुद्धाय.
(लेखक: वी. आर. ‘कुढ़ावी’)