दुनिया देखेगी कि बुद्ध भी हाड़ मांस के ही पुतले थे. अवतरित नहीं हुए बल्कि वह भी मां की कोख से जन्मे और एक दिन मृत्यु को प्राप्त हुए.
भगवान बुद्ध के शरीर में बत्तीस महापुरुष लक्षण थे. उन्होंने महापरिनिर्वाण से पहले कहा था कि दाहक्रिया के बाद अस्थि अवशेषों को पात्र में सुरक्षित रखकर उन पर स्तूप बनवाना.
… ताकि भविष्य के मानव जगत के लिए यह प्रमाण रहेगा कि तथागत बुद्ध भी हाड़ मांस मज्जा के ही बने हुए थे. फिर चाहे किसी सम्यक सम्मबुद्ध की बत्तीस लक्षणों, अस्सी अनुव्यंजनों, कंचनवर्णी, परम सौंदर्यमयी काया ही क्यों न हो, वह भी एक दिन जर्जर होकर मृत्यु को प्राप्त होती है क्योंकि सब अनित्य है, नश्वर है.
भगवान बुद्ध के बत्तीस महापुरुष लक्षण
- सुप्रतिष्ठित पाद – पांव के तलवे समतल होते हैं. उनमें खड्डे नहीं होते और इस कारण पांव जमीन पर समतल पड़ते हैं.
- चक्र वरंकित – पैरों के दोनों तलवों में चक्र अंकित होते हैं, जिसमें हजार आरें यानी तिलियां होती हैं.
- आयत-पाष्णि – पांव की एड़ियां सामान्य जन की एड़ियों की तुलना में अधिक लंबी और चौड़ी होती हैं.
- दीर्घ अंगुल – हाथों और पांवों की अंगुलियां लंबी होती हैं.
- मृदु तरुण हस्त-पाद – हाथ और पांव रूखे और कड़े नहीं बल्कि मुलायम और तरुण होते हैं.
- जाल हस्त-पाद – हाथ और पांव की अंगुलियों के बीच थोड़ी सी दूर में ऐसी जालनुमा त्वचा होती है, जैसी हंस, बतख आदि के पंजों में होती है, जिससे दो अँगुलियों के बीच कोई विवर नहीं रहता.
- उस्संख पाद – पांव के टखने यानी गुल्फ ऊपर की ओर होते हैं.
- एणी जंघ – एणी जाति के हिरण की सी सुंदर जांघें होती हैं.
- आजानुबाहु – इतनी लंबी भुजाएं कि सीधे खड़े होने पर जरा भी झुके बिना हथेलियों से अपने घुटनों को थपथपा सकें, मसल सकें, यानी घुटनों तक लंबी भुजाएं होती हैं.
- अच्छी तरह से पीछे हटी हुई पुरुष ग्रंथि – पुरुषेन्द्रीय त्वचा कोष में गुप्त, गुंफित रहता है.
- सुवर्ण-वर्ण – त्वचा कंचनवर्णी होती है.
- सूक्ष्म-छवि – शरीर की चमड़ी पर एक बारीक त्वचा परत चढ़ी होती है, जिस पर धूल आदि नहीं सटती.
- एकैक लोम – प्रत्येक रोम. लोम-कूप में एक-एक लोम होता है.
- ऊर्ध्वांग लोम – सभी लोम बाएं से दाहिनी ओर कुंडलित होते हैं और उनके सिरे ऊपर की ओर स्थित होते हैं.
- ब्राह्मऋजु-गात्र – शरीर लंबा और सीधा होता है जिसके कारण लोग उन्हें ब्रह्म उजु कहते हैं. शरीर के दस फीट तक आभा (ऑरा) मंडल रहता है.
- सप्त उत्सद – दोनों हाथ, दोनों पांव, सामने का सीना, पीछे की धड़ और चेहरे सहित मस्तिष्क. शरीर के ये सातों अंग विशाल और पूरे आकार वाले होते हैं.
- सिंह-पूर्वार्द्ध-काय – छाती सहित काया का ऊपरी भाग सिंह का सा होता है.
- चितांतरांस – दोनों कंधों के बीच का भाग भरा पूरा होता है.
- न्यग्रोध परिमंडल – न्यग्रोध पेड़ जितना ऊंचाई में बढ़ता है उतना ही चौड़ाई में फैलता है. इसी प्रकार खड़े होकर दोनों लंबे हाथों को दोनों ओर फैला देने से जितनी शरीर की चौड़ाई बनती है, उतना ही सिर से पांव तक की ऊंचाई होती है.
- समवर्त स्कंध – समान गोलाकार कंधे होते हैं.
- रस रसाग्रि – सभी रसों का आस्वादन करने वाली जीभ तथा उससे जुड़ी हुई गले तक उभरी हुई एक नस होती है.
- सिंह हनु – सिंह की सी सुंदर, चौड़ी ठोड़ी होती है.
- चत्तालीस दंत – चालीस दांतों से भरा हुआ भव्य चेहरा होता है.
- समदन्त – दांत आगे पीछे न होकर एक समान लाइन में होते हैं.
- अविवर दंत – दांतों के बीच विवर अर्थात खाली जगह नहीं होती.
- सुशुक्ल दाढ़ – दाढ बहुत शुक्ल और लार ऐसी जो हर आहार को स्वादिष्ट बना दें हैं.
- प्रभूत जिव्हा – जीभ बहुत लंबी व चौड़ी होती है.
- ब्रम्ह स्वर – कोयल के स्वर के समान निन्नादि ब्रम्ह स्वर (deep and resonant ) होता है.
- अभिनील नेत्र – अलसी के फूल जैसी सुंदर नीली आंखें (deep blue ) होती हैं.
- गो-पक्ष्म – बैल (रॉयल बुल) की सी बड़ी सुंदर बरौनियां (पलकों के बाल) होती हैं.
- श्वेत ऊर्णा – दोनों भौहों के बीच श्वेत, कोमल, रुई जैसी वर्तुलाकार रोमावली होती है.
- ऊष्णीष शीर्ष – सिर के ऊपर बीचोबीच उभरा हुआ एक छोटा सिर (उपशीश) होता है, मानो सिर पर एक जटामुकुटनुमा पगड़ी बंधी हो.
(लेखक: डॉ. एम एल परिहार, जयपुर)