संस्कृत व्याकरण के विद्वान् पतंजली 150 BCE में अपने ग्रन्थ महाभाष्य में लिखते हैं: “आर्यों की भूमि कौनसी है? यह सरस्वती नदी से पूर्व में है. कालक वन के पश्चिम हिमालय के दक्षिण और परियत्र पर्वत के उत्तर में”
इसका सीधा अर्थ है कि पतंजली के समय में आर्यावर्त (आर्यभूमि) की एक पूर्वी सीमा थी जिसके परे कोई अन्य सभ्यता या धर्म था.
पतंजली के चार शताब्दी बाद मानव धर्म शास्त्र में मनु लिखते हैं “हिमालय और विन्ध्य के बीच प्रयाग पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र के बीच आर्यावर्त भूमि है”
इसका अर्थ हुआ कि चार शताब्दी बादें पतंजली के लिए जो प्रदेश पूर्व में था वह मनु के लिए मध्यदेश बन जाता है. अर्थात यह क्षेत्र आर्यों द्वारा जीत लिया जाता है.
आर्यभूमि के प्रसार के लिए रास्ता अग्नि और यग्य द्वारा बनाया गया इसका अर्थ हुआ ये लोग जंगल जलाते हुए और युद्ध करते हुए आगे बढ़े.
मतलब साफ़ है, मनु तक आते आते वह पूर्वी प्रदेश जो आर्यों का नहीं बल्कि असुरों का था वह आर्यों द्वारा जीत लिया जाता है. पतंजली वर्णित कालक वन मनु द्वारा वर्णित प्रयाग या वर्तमान इलाहाबाद के निकट है.
पतंजली महाभाष्य के ही समान बाद के बौधायन धर्म सूत्र (1.2.9) और वशिष्ठ धर्म सूत्र (1.8-12) कहते हैं कि गंगा और यमुना के बीच का क्षेत्र आर्यावर्त है.
अन्य स्त्रोत से शतपथ ब्राह्मण (13.8.1.5) कहता है कि पूर्व (बिहार की ओर) असुर जन रहते हैं (असुरायः प्राच्यः), ये लोग बड़े बड़े गोल आकार के धर्मस्थल बनाते हैं.
बाद में महाभारत में उल्लेख है कि इश्वर और वेद को न मानने वाले और गोल गुंबद बनाने वाले असुर अभी भी बने हुए हैं. आगे महाभारत ने खराब समय के बारे में लिखा है ऐसे समय में शूद्र लोग द्विजों की सेवा करना छोड़ देंगे.
इसका अर्थ हुआ कि ब्राह्मणों या आर्यों का और उनके धर्म का प्रसार पश्चिम से पूर्व की तरफ हुआ है. शतपथ ब्राह्मण की मानें तो पूर्व की तरफ असुर रहते थे जो सर घुटाये घूमते हैं और गोल गुंबद की तरह धर्मस्थल बनाते थे.
ये गुम्बद असल में बौद्ध स्तूप हैं. ऐसी ही रचनाएं जैनों और आजीवकों की भी होती थीं. ये बौद्ध और जैन अहिंसक थे, युद्ध की भाषा में दक्ष नहीं थे.
बाद में महाभारत काल तक असुर शूद्र बन चुके थें अर्थात आर्यों के गुलाम हो चुके थे और उनका बौद्ध धर्म क्षीण हो चुका था.
अब गहराई से सोचिये, बौद्ध धर्म ब्राह्मण या आर्य आगमन से पहले भी अपने पूर्ण विक्सित रूप में था. इसका मतलब हुआ कि बौद्ध धर्म ब्राह्मण धर्म से न केवल पुराना है बल्कि पूरा ब्राह्मण धर्म बौद्ध धर्म के खिलाफ एक प्रतिक्रान्ति की तरह बुना गया है.
यहाँ अंबेडकर एकदम सही साबित होते हैं.
इससे यह भी सिद्ध होता है कि गौतम बुद्ध अकेले नहीं हैं, जिस तरह वर्धमान महावीर के पहले तेईस तीर्थंकरों की एक लंबी श्रंखला रही है उसी तरह गौतम बुद्ध के पहले भी अन्य बुद्धों की एक लंबी श्रंखला है.
जैनों ने हिन्दू ब्राह्मणों का अधिपत्य स्वीकार कर लिया. जैन मंदिरों और कर्मकांडों में ब्राह्मणों को मुख्य पुजारी की भूमिका बनाकर उनकी सत्ता स्वीकार कर ली इसलिए महावीर सहित अन्य तीर्थंकरों का इतिहास कुछ हद तक बचा रहा.
लेकिन बौद्धों ने ब्राह्मण आधिपत्य स्वीकार न किया इसलिए वे समाप्त कर दिए गये, उनका इतिहास मिटा दिया गया.
लेकिन अब बुद्ध और बौद्ध इतिहास फिर से प्रकट होकर रहेगा, इस भारत को दुबारा सभ्य बनाने के लिए बुद्ध लौट रहे हैं.
लेखक: डॉ संजय जोठे