HomeDhammapadधम्मट्ठवग्गो

धम्मट्ठवग्गो

न तेन होति धम्मट्ठो, येनत्थं साहसा नये
यो च अत्थं अनत्थञ्च
, उभो निच्छेय्य पण्डितो.

हिंदी: जो व्यक्ति सहसा किसी बात का निश्चय कर लें, वह धर्मिष्ठ नहीं कहा जाता. जो अथ और अनर्थ दोनों का चिंतन कर निश्चय करे वह पंडित कहलाता है.

असाहसेन धम्मेन, समेन नयती परे
धम्मस्स गुत्तो मेधावी
, “धम्मट्ठो”ति पवुच्चति.

हिंदी: जो व्यक्ति धीरज के साथ, धम्मपूर्वक, निष्पक्ष होकर दूसरों का मार्गदर्शन करता है, वह धम्मरक्षक मेधावी “धमिष्ठ” कहा जाता है.

न तेन पण्डितो होति, यावता बहु भासति
खेमी अवेरी अभयो
, “पण्डितो”ति पवुच्चति.

हिंदी: संघ के बीच बहुत बोलने से कोई पंडित नही हो जाता. कुशल-क्षेम से रहने वाला, वैर-रहित तथा निर्भय व्यक्ति ही “पंडित” कहा जाता है.

न तावता धम्मधरो, यावता बहु भासति
यो च अप्पम्पि सुत्वान
, धम्मं कायेन पस्सति
स वे धम्मधरो होति
, यो धम्मं नप्पमज्जति.

हिंदी: बहुत बोलने से कोई धम्मधर नहीं हो जाता. जो कोई थोड़ी सी भी धम्म की बात सुन कर काय से धम्म का दर्शन करने लगता है अर्थात, विपश्यना करने लगता है और जो धम्म के आचरण में प्रमाद नहीं करता, वही नि:संदेह “धम्मधर” होता है.

न तेन थेरो सो होति, येनस्स पलितं सिरो
परिपक्कोवयो तस्स
, “मोघजिण्णो”ति वुच्चति.

हिंदी: सिर के बाल पकने से कोई स्थविर नहीं हो जाता, केवल उसकी आयु पकी है, वह तो “मोघजीर्ण” व्यर्थ का वृद्ध हुआ कहा जाता है.

यम्हि सच्चञ्च धम्मो च, अहिंसा संयमो दमो
स वे वन्तमलो धीरो
, “थेरो” इति पवुच्चति.

हिंदी: जिसमें सत्य, अहिंसा, संयम और दम है, वही वगतमल, धृतिसंपन स्थविर कहा जाता है.

न वाक्क रणमत्तेन, वण्णपोक्खरताय वा
साधुरुपों नरो होति
, इस्सुकी मच्छरी सठो.

हिंदी: जो ईर्ष्यालु, मत्सरी और शठ है, वह वक्तामार होने से अथवा सुंदर-रूप होने से “साधुरूप” मनुष्य नहीं हो जाता.

यस्स चेतं समुच्छिन्नं, मूलघच्चं समूहतं
स वन्तदोसो मेधावी
, “साधुरुपो”ति वुच्चति.

हिंदी: जिसके भीतर से ये ईर्ष्या, मात्सर्य आदि जड़मूल से सर्वथा उच्छिन्न हो गये हैं, वह निगतदोष मेधावी पुरुष “साधुरूप” कहा जाता है.

न मुण्डके न समणो, अब्बतो अलिकं भणं
इच्छालोभसमापन्नो
, समणो किं भविस्सति.

हिंदी: जो शीलव्रत और धुतांगव्रत न करने से) अव्रती है और जो झूठ बोलने वाला है, वह सिर मुंड़ा लेने मात्र से श्रमण नहीं हो जाता. इच्छा और लोभ से ग्रस्त भला क्या श्रमण होगा?

यो चो समेति पापानि, अणुं थूलानि सब्बसो
समितत्ता हि पापानं
, “समणो”ति पवुच्चति.

हिंदी: जो छोटे-बड़े पापों का सर्वश: शमन कर लेता है, पापों के शमित होने के कारण वह ‘श्रमण’ कहा जाता है.

न तेन भिक्खु सो होति, यावता भिक्खते परे
विस्सं धम्मं समादाय
, भिक्खु होति न तावता.

हिंदी: दूसरों से भिक्खा (भीक्षा) मांगने मात्र से कोई भिक्खु नहीं हो जाता, और न ही भिक्खु होता है विषम धम्म को ग्रहण करने से.

योध पुञ्ञञ्च पापञ्च, बाहेत्वा ब्रह्माचरियवा
सङाखाय लोके चरति
, स वे “भिक्खु”ति वुच्चति.

हिंदी: जो यहाँ इस शासन में पुण्य और पाप को दूर रखकर, ब्रह्मचारी बन, विचार करके लोक में विचरण करता है, वही वस्तुत: भिक्खु कहा जाता है.

न मोनेन मुनी होति, मूळ्हरूपो अविद्दसु
यो च तुलंव पग्गय्ह
, वरमादाय पण्डितो.

हिंदी: अविद्वान और मूढ़-समान पुरुष केवल मौन रहने से मुनि नहीं हो जाता. जो पंडित तराजू के समान तोक कर शील, समाधि, प्रज्ञा, विमुक्ति, विमुक्तिज्ञानदर्शन-रूपी उत्तम तत्व को ग्रहण कर.

पापानि परिवज्जेति, स मुनि तेन सो मुनि
यो मुनाति उभो लोके
, “मुनि” तेन पवुच्चति.

हिंदी: पापकर्मों का परित्याग कर देता है, वह मुनि होता है – इस बात से वह मुनि होता है. चूंकि वह दोनों लोकों का मनन करता है, इस कारण वह ‘मुनि’ कहा जाता है.

न तेन अरियो होति, येन पाणानि हिंसति
अहिंसा सब्बपाणानं
, “अरियो”ति पवुच्चति.

हिंदी: प्राणियों की हिंसा करने से कोई आर्य नहीं हो जाता. सभी प्राणीयों की हिंसा न करने से वह “आर्य” कहा जात है.

न सीलब्बतमत्तेन, बाहुसच्चेन वा पन
अथ वा समाधिलाभेन
, विवित्तसयनेन वा.

हिंदी: केवल शील पालने और व्रत करने से, या बहुश्रुत होने से, या समाधि के लाभ से, या एकांत में शयन करने से.

फुसामि नेक्खम्मसुखं, अपुथुज्जनसेवितं
भिक्खु विस्सासमापादि
, अप्पत्तो आसवक्खयं.

हिंदी: ‘पृथग्जन (अज्ञ) जिसे सेवन नहीं कर सकते मैंने उस नैष्क्रम्य-सुख को प्राप्त कर लिया है’ ऐसा सोच है भिक्खुओं! आश्रवों का क्षय न हो जाने तक तुम आश्वस्त होकर (अर्थात चैन से) मत बैठे रहो.


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— भवतु सब्ब मङ्गलं —

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